जीका वायरस से निपटने के लिए डॉक्टर्स ने बनाएं एंटीबॉडी, जानें कितने असरदार हैं ये

इबोला के बाद एक और खतरनाक वायरस सामने आया है जो धीरे-धीरे मुसीबत बनता जा रहा है। मच्छर से फैलने वाले इस वायरस का नाम जीका है। 
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जीका वायरस से निपटने के लिए डॉक्टर्स ने बनाएं एंटीबॉडी, जानें कितने असरदार हैं ये


इबोला के बाद एक और खतरनाक वायरस सामने आया है जो धीरे-धीरे मुसीबत बनता जा रहा है। मच्छर से फैलने वाले इस वायरस का नाम जीका है। यह सीधे नवजात को अपना शिकार बनाता है। इस वायरस से प्रभावित होने वाले बच्चे की सारी जिंदगी विशेष देखभाल करनी पड़ती है, क्‍योंकि विषाणुओं के प्रभाव से वहां के नवजात छोटे सिर के साथ पैदा हो रहे हैं। जीका वायरस एंडीज इजिप्टी नामक मच्छर से फैलता है। यह वही मच्‍छर है जो पीला बुख़ार, डेंगू और चिकुनगुनिया जैसे विषाणुओं को फैलाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। संक्रमित मां से यह नवजात में फैलती है। यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन और यौन सम्बन्धों से भी फैलती है।

हालांकि, अब तक यौन सम्बन्धों से इस विषाणु के प्रसार का केवल एक ही मामला सामने आया है। जीका को पहचानना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसके कोई विशेष लक्षण नहीं हैं। लेकिन मच्छरों के काटने के तीन से बारह दिनों के बीच चार में से तीन व्यक्तियों में तेज बुखार, रैशेज, सिर दर्द और जोड़ों में दर्द के लक्षण देखे गये हैं। फिलहाल तक इसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इससे निपटने के लिए कुछ एंटीबॉडी तैयार किए हैं।

भारतीय मूल के अमेरिकी चिकित्सक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने छह जीका वायरस एंटीबॉडी विकसित किए हैं जो मच्छर से पैदा होने वाली बीमारी के इलाज में मददगार हो सकते हैं। जीका से पिछले कुछ वर्षों में दुनियाभर के 15 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं।

शिकागो की लोयोला यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक रवि दुर्वासुला ने कहा, "एंटीबॉडी दो तरह से उपयोगी हो सकता है, पहला तो इसमें जीका वायरस संक्रमण को पहचानने की क्षमता है और दूसरा कि यह आगे चलकर संक्रमण के इलाज के लिए भी उपयोगी हो सकता है।"

उन्होंने कहा कि उत्पादन में किफायती इस एंटीबॉडी को जीका वायरस का पता लगाने के लिए एक साधारण फिल्टर पेपर टेस्ट में इस्तेमाल किया जा सकता है जो अभी भी मौजूद है। परीक्षण के दौरान अगर फिल्टर पेपर का रंग बदल जाता है तो इसका मतलब जीका का प्रभाव है। एंटीबॉडी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा बनाई गई वाई-आकार वाली प्रोटीन है। इस शोध के लिए रीबोसम डिस्प्ले तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। इस दौरान छह तरह के सिंथेटिक एंटीबॉडी को विकसित किया गया है जो जीका वायरस से जुड़े हैं। गर्भावस्था के दौरान जीका वायरस से संक्रमित महिला का गर्भपात होने, बच्चा मरा हुआ पैदा होने या फिर जन्मजात माइक्रोसेफली नामक रोग के साथ संतान पैदा होने का खतरा होता है। यह शोध 'पीएलओएस वन' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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बचाव है बेहतर उपाय

इसकी रोकथाम के लिये अब तक दवाई नहीं बनी और न ही इसके उपचार का कोई सटीक तरीका सामने आया है। ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे अप्रत्याशित बताया और कहा कि विज्ञान ने अभी इसे रोकने में सफलता हासिल नहीं की है। इसलिए बचना ही बेहतर है। अमेरिका की सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार समूचे विश्व में इस तरह के मच्छरों के पाये जाने के कारण इस विषाणु का प्रसार दूसरे देशों में भी हो सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। 

जीका वायरस का कोई इलाज नहीं है, इससे बचने का एकमात्र विकल्‍प इसके जोखिम को कम करना है। इसके लिए स्वास्थ्य अधिकारी कीट नाशकों का उपयोग, पूरी बाजू के कपड़े जिससे शरीर कवर हो और खिड़कियों और दरवाजों को बंद करने की सलाह देते हैं। इसके साथ ही उनका कहना है कि ऐसे मच्‍छर रूके पानी में अपने अंडे देते हैं इसलिए पानी को इकट्ठा होने से रोकें। इसके अलावा यूएस सेंट्रर ऑफ डिजीज कंट्रोल गर्भवती महिलाओं को प्रभावित क्षेत्रों में यात्रा न करने की सलाह देते हैं। 

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