
हर साल विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है। पर्यावरण के प्रति सरकार और लोगों की बढती लापरवाही के कारण पर्यावरण संतुलन नहीं बन पा रहा है। गाडियों की हर रोज बढती संख्या और लोगों द्वारा पॉलीथिन के बढते प्रयोग के कारण पर्यावरण असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है। पर्यावरण का मतलब केवल पेड-पौधे लगाना ही नहीं है बल्कि, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। पर्यावरण असंतुलन से व्यक्ति का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है और कई प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं।
क्या है विश्व पर्यावरण दिवस
पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1972 में स्वीडन में विश्व के 119 देशों के साथ पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। यूएनए ने नवंबर, 1976 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को लागू किया। इसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित किए गए। पर्यावरण असंतुलन के कारण ही सुनामी और भयंकर आंधी तूफान आते हैं। धरती का तापमान लगातार बढ रहा है जिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार 
भूमि प्रदूषण – पर्यावरण संतुलन के लिए भूमि प्रदूषण को रोकना बहुत जरूरी है। वनों का कटाव, खदानों, रसायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग और कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण भूमि प्रदूषण फैलता है। इसके कारण हम जो खाद्य-पदार्थ खाते हैं वह शुद्ध नहीं होता है। इसके कारण पेट से जुडी हुई कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं।
जल प्रदूषण – पूरी पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्से में पानी है, लेकिन केवल 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही पीने के योग्य है। फैक्ट्रियों और घरों से निकलने वाले कूडे का पानी सीधे नदियों में छोडा जाता है जिसके कारण कई नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। जल प्रदूषण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं।

वायु प्रदूषण – आदमी की जिंदगी के लिए ऑक्सीजन बेहद आवश्यक है। पेडों की कटाई और बढ रहे वायु प्रदूषण के कारण हवा से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है। घरेलू ईंधन, वाहनों से निकलते धुएं और वाहनों के बढते प्रयोग इसके लिए जिम्मेदार हैं।
ध्वनि प्रदूषण – ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। आए दिन मशीनों, लाउडस्पीकरों और गाडियों के हॉर्न ने ध्वनि प्रदूषण को बढाया है। पारिवारिक और धर्मिक कार्यक्रमों में लोग लाउडस्पीकर बहुत तेजी से बजाते हैं। जिसके कारण कई लोगों की नींद उड जाती है। ध्वनि प्रदूषण के कारण कान से जुडी बीमारियां होने का खतरा होता है।
पर्यावरण प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव 
- हमारे शरीर के कुछ हिस्से पर्यावरण परिवर्तन के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। पर्यावरण में फैले प्रदूषण के कारण कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण आदमी को सांस लेने में दिक्कत होती है और फेफडे से जुडी बीमारियां होती हैं।
- दूषित पानी पीने से पेट और त्वचा संबंधित बीमारियां होती हैं। जल प्रदूषण के कारण – हैजा, खुजली, पीलिया, पेचिस आदि रोग शुरू होते हैं।
- पर्यावरण में परिवर्तन के कारण टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा होता है।
- अशुद्ध खाद्य-पदार्थों का सेवन करने से मानसिक विकार होते हैं, जिससे दिमाग में तनाव रहता है।

बढती जनसंख्या, कटते पेड, बढते उद्योग-धंधे, वाहनों के प्रयोग, जानकारी का अभाव, बढती गरीबी ने पर्यावरण असंतुलन को बढाया है। पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर हम इस पर्यावरण असंतुलन को कम कर सकते हैं।
Image Source : muslimheritage.com
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