आंखों को भी धूप से बचाना आवश्यक है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सूर्य की रोशनी का कुछ अदृश्य भाग होता है, जिन्हें अल्ट्रावायलेट किरणें (यू-वी रेज) कहते हैं। इन किरणों के कारण त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचता है। आमतौर पर यू-वी किरणें तीन प्रकार की होती हैं- यू-वी ए, यू-वी बी और यू-वी सी। यू-वी सी किरणें वातवरण से रुक जाती हैं, परंतु यू-वी ए और यू-वी बी दोनों ही किरणें नुकसानदायक हैं। यू-वी किरणें चाहें बादल हो या सर्दी हमेशा उपस्थित होती हैं।
वातावरण में इनकी मात्रा गर्मी में बढ़ जाती है तथा पहाड़ों पर और भी अधिक हो जाती है। सीधी धूप के अलावा चिकनी सतह, बर्फ, पानी की सतह, रेत आदि से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली रोशनी यू-वी किरणों की तीव्रता को 50 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। घटती ओजोन परत के कारण यू-वी किरणें अब पहले से भी अधिक दुष्प्रभाव छोड़ती हैं। वेल्डिंग मशीन की चमक में भी यू-वी किरणें होती हैं।
किरणों का आंखों पर प्रभाव
- यू-वी किरणों के आंखों में जाने के गंभीर प्रभाव इस प्रकार हैं...
- कुछ प्रकार के मोतियाबिंद यू-वी किरणों के कारण होते हैं।
- आंख के पर्दे का क्षीण होना।
- फोटोकेरेटाइटिस (रोशनी से आंख में सूजन होना)।
- टेरेजियम (नाखूना) और पलकों का कैंसर होना।
यू-वी किरणों का प्रभाव इन पर ज्यादा
- दिन का अधिक समय खुले में बिताने वाले लोगों पर।
- मोतियाबिंद ऑपरेशन में लगाया गया कृत्रिम लेंस यदि यू-वी किरणों से बचाव में असमर्थ है।
- आंख के पर्दे के रोगियों में।
- कुछ दवाएं जैसे टेट्रासाइक्लीन, डाक्सी-साइक्लीन, सल्फा दवाएं, गर्भ निरोधक दवाएं आंखों की संवेदनशीलता को बढ़ा देती हैं।
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बचाव के उपाय
- काला चश्मा सर्वोत्तम उपाय है।
- यू-वी किरणों से बचाव के लिए काले रंग के चश्मे के अलावा यू-वी ए और यू-वी बी दोनों को ही रोकने वाली यू-वी सुरक्षा परत का होना आवश्यक है। 99 से 100 प्रतिशत तक रोकने वाली क्षमता वाला चश्मा अनिवार्य है।
- शीशों का साइज बड़ा हो और चश्मे की फिटिंग आंखों से सटकर हो।
- चश्मा पहनने में आरामदायक हो।
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- यदि चकाचौंध कम करना चाहें तो पोलराइज्ड शीशे लें।
- चश्मे का धूप में काला होना इस बात की गारंटी नहीं है कि इसमें यू-वी सुरक्षा परत भी होगी।
- दोनों शीशों का रंग एक समान होना चाहिए।
- कोई स्क्रेच नहीं होना चाहिए।
- खेलकूद संबंधित व्यक्ति पॉलीकार्बोनेट शीशे वाले चश्मे लें।
इनपुट्स- डॉ. दिलप्रीत सिंह, नेत्र सर्जन
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