कैंसर का एक प्रकार जो कि रक्त के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, उसे ल्यूकीमिया कैंसर कहते है। दूसरे शब्दों में, ल्यूकीमिया ब्लड कैंसर का ही एक प्रकार है, इसके होने के बाद कैंसररोधी सेल्स ब्लड के बनने में रूकावट पैदा करने लगते हैं। ल्यूकीमिया का प्रभाव खून के साथ-साथ शरीर के लिम्फेटिक सिस्टम और बोन मैरो पर भी होने लगता है। ल्यूकीमिया की वजह से मरीज को खून की कमी हो जाती है। ल्यूकीमिया एक्यूट या क्रोनिक हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि यह या तो अचानक से या फिर धीरे-धीरे क्रोनिक होता है। ल्यूकीमिया ज्यादातर बच्चों को ही प्रभावित करता है, पर एक्यूट ल्यूकीमिया युवाओं और बच्चों को प्रभावित करता है।
ल्यूकीमिया सामान्यत व्हाइट ब्लड सेल्स जो बोन मैरो में बनते हैं, उनको प्रभावित करता है। यह पूरे शरीर में संचालित होते हैं और वायरस और दूसरे संक्रमण से लड़ने में प्रतिरक्षा प्रणाली की मदद करते हैं। दो मुख्य प्रकार के व्हाइट ब्लड सेल्स हैं लिम्फोसाइट्स और ग्रैन्यूलोसाइट्स। ल्यूकीमिया जो कि लिम्फोसाइट्स से होते हैं उन्हें लिम्फोसाइटिक या लिम्फेटिक ल्यूकीमिया कहते हैं। कुछ दुर्लभ प्रकार के ल्यूकीमिया को मोनोसाइटिक ल्यूकीमिया कहते हैं। एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकीमिया के होने की सम्भावना बचपन में अधिक रहती है। एक्यूट माइलोसाइटिक ल्यूकीमिया अक्सर बच्चों और युवाओं को प्रभावित करता है। क्रोनिक माइलोजीन्स और क्रोनिक लिम्फोमसाइटिक ल्यूकीमिया मुख्यत: युवाओं को प्रभावित करता है।
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ल्यूकीमिया सेल्स सीधे तौर पर रक्त को बहुत प्रभावित करते हैं। हालांकि ल्यूकीमिया के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन जो लोग ल्यूकीमिया के लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं और ल्यूकीमिया का समय पर इलाज नहीं करवाते उनका जीवन अधिकतम चार साल ही होता है। हालांकि यह भी मरीज की उम्र, प्रतिरोधक क्षमता और ल्यूकीमिया के प्रकार पर निर्भर करता हैं। क्या आप जानते हैं ल्यूकीमिया यानी रक्त कैंसर का इलाज ल्यूकीमिया के प्रकारों के आधार पर ही होता है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि ल्यूकीमिया कितने तरह का होता है, ल्यूकीमिया की अवस्थाएं कौन-कौन सी हैं। इसके साथ ही यह भी सवाल उठता है कि क्या सभी प्रकार के ल्यूकीमिया का इलाज संभव है। इन सब बातों को जानने के लिए ल्यू्कीमिया के प्रकारों को जानना जरूरी है।
ल्यूकीमिया के लक्षण
- बार-बार एक ही तरह का संक्रमण होना।
- बहुत तेज बुखार होना।
- रोगी का इम्यून सिस्टम कमजोर होना।
- हर समय थकान और कमजोरी महसूस करना।
- एनीमिया होना।
- नाक-मसूड़ों इत्यादि से खून बहने की शिकायत होना।
- प्लेटलेट्स का गिरना।
- शरीर के जोड़ों में दर्द होना।"
- हड्डियों में दर्द की शिकायत होना।
- शरीर के विभिन्न हिस्सों में सूजन आना।
- शरीर में जगह-जगह गांठों के होने का महसूस होना।
- लिवर संबंधी समस्याएं होना।
- अकसर सिरदर्द की शिकायत होना। या फिर माइग्रेन की शिकायत होना।
- पक्षाघात यानी स्ट्रोक होना।
- दौरा पड़ना या किसी चीज के होने का बार-बार भ्रम होना। यानी कई बार रोगी मानसिक रूप से परेशान रहने लगता हैं।
- उल्टियां आने का अहसास होना या असमय उल्टियां होना।
- त्वचा में जगह-जगह रैशेज की शिकायत होना।
- ग्रंथियों/ग्लैंड्स का सूज जाना।
- अचानक से बिना कारणों के असामान्य रूप से वजन का कम होना।
- जबड़ों में सूजन आना या फिर रक्त का बहना।
- भूख ना लगने की समस्या होना।
- यदि चोट लगी है तो चोट का निशान पड़ जाना।
- किसी घाव या जख्म के भरने में अधिक समय लगना।
कितने प्रकार का होता है ल्यूकीमिया
आमतौर पर ल्यूकीमिया दो प्रकार का होता है लेकिन फिर भी ल्यूकीमिया के कई और प्रकार भी हो सकते हैं।
लिंफोसाईटिक ल्यूकीमिया: ल्यूकीमिया का यह प्रकार लिम्फोसाइट्स यानी लिंफॉईड कोशिकाओं के शरीर में अधिक विकसित या फिर इनकी असामान्य उत्पत्ति के कारण होता है।
माइलोसाईटिक ल्यूकीमिया: ल्यूकीमिया का यह प्रकार माइलोसाईट यानी मोनोसाईट्स सेल्स की मात्रा के बढ़ने से होता है। जब शरीर में बहुत अधिक मोनोसाईट्स उत्पन्न हो जाती है या फिर इनकी असीमित वृद्घि होने लगती है तो माइलोसाईटिक ल्यूकीमिया विकसित होने लगता है।
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