शॉकवेव लीथोट्रिप्सी ट्रीटमेंट (Shock Wave Intravascular Lithotripsy) हाल ही में भारत में लॉन्च किया गया टेक्नीक है, जिसकी मदद से कोरोनरी आर्टरी से जुड़ी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। हाल ही में इस इस थेरेपी का इस्तेमाल 80 वर्षीय मरीज को गंभीर एंजिना की बीमारी के साथ उसकी एलएडी कोरोनरी आर्टरी में 90% ब्लॉकेज की समस्या को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया गया। दिल्ली का यह केस दूसरा मामला था, जहां इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया। आइए जानते हैं क्या है ये शॉकवेव लीथोट्रिप्सी ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है।
क्या है शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी टेक्नीक?
शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी एक अनोखी तकनीक है, धमनियों में कैल्शियम की कड़ी परत को हटाने के लिए ये दिल की धमनियों में तेज रफ्तार वाली सोनिक प्रेशर वेव्स बनाती है। इस तरह ये धमनियों के बॉल्केज को खत्म करके इसे एक सफल और सुरक्षित इलाज बनाती है। इसके परिणाम दिल की जुड़ी ऐसी कई बीमारियों के लिए सफल है। वहीं इस मामले में, केवल 35 मिनट में मरीज का इलाज पूरा हो गया और अगले दिन ही मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
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अल्ट्रा-हाई-प्रेशर बैलून और रोटेटरी ड्रिल जैसी तकनीकों का इस्तेमाल
शॉकवेव लीथोट्रिप्सी ट्रीटमेंट 20-25 फीसदी उन मरीजों में काम आता है, जो खासतौर पर अधिक उम्र, डायबिटीज, कोरोनरी किडनी डिजीज से पीड़ित होते हैं। इसमें इंट्रावास्कुलर लिथोट्रिप्सी (IVL) सिस्टम (शॉकवेव मेडिकल) कम दबाव वाले गुब्बारा मुद्रास्फीति के दौरान विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल देता है हालांकि, अल्ट्रा-हाई-प्रेशर बैलून और रोटेटरी ड्रिल जैसी तकनीकों का इस्तेमाल आज भी कुछ मामलों में भी किया जाता है लेकिन इनके इस्तेमाल में भारी खतरा भी हो सकती है। लेकिन इन तकनीकों में कई सारे खतरों का डर होता है, जिसमें रक्त वाहिकाओं के फटने या कटने का खतरा रहता है, जिससे मरीज की जान तक जा सकती है।
शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी के चार स्टेप होते हैं:
स्टेप-1: IVL कैथेटर को 0.014 तार पर एक कैल्सीफाइड घाव के पार पहुंचाया जाता है और कुशल ऊर्जा हस्तांतरण की सुविधा के लिए एकीकृत गुब्बारे को 4atm तक विस्तारित किया जाता है।
स्टेप-2: एमिटर से एक विद्युत निर्वहन गुब्बारे के भीतर द्रव को वाष्पित करता है, जिससे तेजी से विस्तार और ढहने वाला बुलबुला बनता है, जो ध्वनि नियंत्रण तरंगों को उत्पन्न करता है।
स्टेप-3: शॉकवेव एक स्थानीयकृत क्षेत्र प्रभाव पैदा करती हैं, जो नरम टिशूज के माध्यम से यात्रा करती हैं और चुनिंदा रूप से आर्टरी दीवार के भीतर कैल्शियम को तोड़ती है।
स्टेप-4: कैल्शियम संशोधन के बाद, एकीकृत गुब्बारा बाद में कम दबाव पर घाव को पतला करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि अधिक से अधिक लाभ हो सके।
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शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी के फायदे?
- -हार्ट ब्लॉकेज को खोलने के लिए पुरानी तकनीकों में अल्ट्रा-हाई-प्रेशर बैलून या रोटेटरी ड्रिल शामिल हैं। इन तकनीकों का इस्तेमाल बेहद मुश्किल और जोखिम भरा होता है। वहीं शॉकवेव कोरोनरी लीथोट्रिप्सी एक एडवांस तकनीक है, जो हार्ड ब्लॉकेज को आसानी से खोल देती है।
- - ये कोरोनरी आर्टरी डिजीज (coronary artery disease) के एडवांस चरण वाले मरीज का भी इलाज कर सकता है।
- - ये धमनी में कैल्शियम इकठ्ठा होने के कारण हुई हार्ड ब्लॉकेज को भी ठीक करने में मदद करता है।
- - एंजियोप्लास्टी के कुछ चरणों में भी ये इलाज के दौरान इस्तेमाल होता है।
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कैल्सीफाइड घावों के पर्कुटेयस कोरोनरी हस्तक्षेप (PCI) सबसे चुनौतीपूर्ण हस्तक्षेपों में से एक है, जिसके लिए भी शॉकवेव लीथोट्रिप्सी जैसे इलाज माध्यमों का इलाज किया जा रहा है। यह उम्मीद की जाती है कि रोगी की लंबी उम्र बढ़ने के साथ शरीर में कैल्सीफाइड सीएडी का बोझ बढ़ जाएगा, इसलिए इन घावों के लिए प्रभावी उपचार महत्वपूर्ण है। वहीं किडनी स्टोन के इलाज में भी शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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