जानिये कैसे होता है सीटी स्कैन और जांच से पहले किन बातों का रखना है ध्यान

सीटी जांच सामान्य एक्स-रे जैसी ही होती है लेकिन एक्सरे की तुलना में ये ज्यादा आधुनिक है और इससे ज्यादा जानकारियां मिलती हैं। कई बार रोग के सही निदान के लिए शरीर के अंदरूनी अंगों की स्थिति जानना जरूरी होता है।
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जानिये कैसे होता है सीटी स्कैन और जांच से पहले किन बातों का रखना है ध्यान

सीटी स्कैन शरीर के अंगों की जांच करने की एक प्रक्रिया है। इसका पूरा नाम कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन) या कंप्यूटेड एक्सिअल टोमोग्राफी (केट) है। ये जांच सामान्य एक्स-रे जैसी ही होती है लेकिन एक्सरे की तुलना में ये ज्यादा आधुनिक है और इससे ज्यादा जानकारियां मिलती हैं। कई बार रोग के सही निदान के लिए शरीर के अंदरूनी अंगों की स्थिति जानना जरूरी होता है। सीटी स्कैन के माध्यम से शरीर के अंदर की हड्डियों, नसों और सॉफ्ट टिशूज की जांच की जाती है। पहले सीटी स्कैन सिर्फ सिर की जांच के लिए प्रयोग किया जाता था लेकिन अब इससे शरीर के लगभग सभी अंगों की जांच की जाती है।

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कैसे जांच करता है सीटी

सीटी स्कैन के लिए रोगी को मशीन के अंदर लिटाया जाता है। इस मशीन का आकार सुरंग जैसा होता है। इस मशीन के अंदर के हिस्से घूम-घूमकर अलग-अलग एंगल से जांच किये जाने वाले अंगों की जांच करते हैं। जांच में स्कैनर या सीटी मशीन से शरीर के अंदर के हिस्सों का अलग-अलग लेवल पर कई चित्र लिया जाता है और बाद में कंप्यूटर की सहायता से इन्हें मिलाकर अंगों की मल्टी डाइमेंशनल इमेज बनाई जाती है और बीमारी की जांच की जाती है। जांच से निकले परिणाम को डॉक्टर द्वारा कंप्यूटर पर या एक्सर-रे कार्ड जैसी फिल्म पर प्रिंट करके देखा जाता है। सामान्य एक्स-रे जहां सिर्फ ये बताते हैं कि अंग किस स्थिति में हैं वहीं सीटी स्कैन के माध्यम से अंगों की स्थिति के अलावा बीमारी किस स्टेज में है, ये भी पता लगाया जा सकता है।

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किन बातों का रखें ध्यान

  • मशीन में लेटते समय डरें नहीं और चिकित्सक या जांचकर्ता जैसा बताए वैसा करते जाएं।
  • सीटी में एक अंग की स्कैनिंग में 15-20 मिनट का समय लग सकता है।
  • सीटी स्कैन से 4 घंटे पहले से रोगी को कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।
  • पानी पीने से पहले भी एक बार चिकित्सक से पूछ लेना चाहिए।
  • अगर जांच किये जाने वाले रोग के अतिरिक्त शरीर में कोई रोग है या किसी रोग की दवा चल रही है तो डॉक्टर से ये बात पहले ही बता देना जरूरी है।
  • कई बार पेट या गर्भाशय की जांच के लिए जांच से पहले मरीज को डाई पिलाई जाती है। इससे मरीज को बेचैनी या एलर्जी हो सकती है। ऐसी स्थिति में घबराएं नहीं और इसकी सूचना चिकित्सक या जांच करने वाले स्टाफ को दें। ये डाई शरीर के लिए हानिकारक नहीं है। वास्तव में ये आयोडीन का घोल होती है।
  • अन्य अंगों की जांच के लिए नसों में डाई डाली जा सकती है लेकिन इससे घबराना चाहिए। ये डाई तीन-चार दिन में शरीर से खुद-ब-खुद निकल जाती है।
  • जांच के दौरान आपको कई बार सांस छोड़ने और रोकने के लिए कहा जा सकता है।
  • जांच के दौरान अगर मरीज के लेटने की टेबल थोड़ी बहुत हिले-डुले तो उसे घबराना नहीं चाहिए।
  • मरीज को अपनी तरफ से बिल्कुल हिलना-डुलना नहीं चाहिए और चिकित्सक के कहे बिना मुंह नहीं खोलना चाहिए।
  • अगर किसी दवा या आयोडीन से एलर्जी है तो जांच से पहले जांचकर्ता को बात दें।
  • अगर कोई औरत प्रेगनेंट है तो उसे ये बात जांचकर्ता को जांच से पहले बतानी चाहिए।

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