ऑटो इम्‍यून डिजीज है त्‍वचा पर होने वाले सफेद दाग, जानें क्‍या है इसके कारण और उपचार

जिसकी वजह से व्यक्ति को भले ही कोई शारीरिक कष्ट न हो लेकिन इसे लेकर प्रचलित कुछ सामाजिक मान्यताओं और अंधविश्वासों की वजह से ऐसी समस्या से ग्रस्त लोग खुद को उपेक्षित और अकेला महसूस करते हैं। इस समस्या से जुड़ी भ्रांतियों और सच्चाई के बारे में हम आप

Atul Modi
Written by: Atul ModiUpdated at: Apr 12, 2019 10:25 IST
ऑटो इम्‍यून डिजीज है त्‍वचा पर होने वाले सफेद दाग, जानें क्‍या है इसके कारण और उपचार

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विटिलिगो यानी सफेद दाग एक दीर्घकालिक समस्या है जिसमें त्वचा के बढ़ते पैच अपना रंग खो देते हैं। यह किसी भी उम्र, लिंग या जातीय समूह के लोगों को प्रभावित कर सकता है। पैच तब दिखाई देते हैं जब त्वचा के भीतर मेलेनोसाइट्स मर जाते हैं। मेलानोसाइट्स त्वचा के रंगद्रव्य, मेलेनिन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं हैं, जो त्वचा को अपना रंग देती हैं और इसे सूरज की यूवी किरणों से बचाती हैं। विटिलिगो से प्रभावित होने वाली त्वचा का कुल क्षेत्र व्यक्तियों के बीच भिन्न होता है। यह आंखों, मुंह के अंदर और बालों को भी प्रभावित कर सकता है।  इस समस्या से जुड़ी भ्रांतियों और सच्चाई के बारे में हम आपको इस लेख के माध्‍यम से बता रहे हैं।

क्या है सफेद दाग

यह एक ऑटो इम्यून डिज़ीज़ है, जिसमें व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता उसकी त्वचा को नुकसान पहुंचाने लगती है। यह शरीर के इम्यून सिस्टम की कार्य प्रणाली में होने वाली गड़बड़ी का परिणाम है। ऐसी स्थिति में त्वचा की रंगत निर्धारित करने वाले मेलेनोसाइट्स  नामक सेल्स धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं, नतीजतन त्वचा पर सफेद धब्बे नज़र आने लगते हैं। आमतौर पर यह समस्या होंठों और हाथ-पैरों पर दिखाई देती है। इसके अलावा शरीर के कई अलग-अलग हिस्सों पर भी ऐसे दाग नज़र आ सकते हैं।

क्या है वजह

  • आनुवंशिकता, अर्थात अगर माता-पिता को यह डिज़ीज़ हो तो बच्चों में भी इसकी आशंका बढ़ जाती है। हालांकि ज़रूरी नहीं है कि इससे पीडि़त हर व्यक्ति की संतान को भी ऐसी समस्या हो।
  • कुछ लोगों के शरीर पर छोटे-छोटे गोल धब्बे बनने लगते हैं और उस स्थान से रोएं गायब होने लगते हैं। इसे एलोपेशिया एरियाटा  कहा जाता है। भविष्य में यही समस्या विटिलिगो का भी कारण बन सकती है।
  • कई बार बर्थ मार्क या मस्से के आसपास की त्वचा की रंगत में भी बदलाव शुरू हो जाता है, जिससे विटिलिगो की समस्या हो सकती है।
  • बिंदी में लगे गोंद, सिंथेटिक जुराबें, घटिया क्वॉलिटी के ब्यूटी प्रोडक्ट्स या फुटवेयर की वजह से भी लोगों को ऐसी समस्या हो सकती है। इसलिए ऐसी चीज़ें खरीदते समय उनकी गुणवत्ता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
  • अधिक केमिकल एक्सपोज़र की वजह से भी मिथको डिज़ीज़ हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति ऐसी फैक्ट्री में काम करता हो, जहां प्लास्टिक, रबर या केमिकल्स का बहुत अधिक मात्रा में इस्तेमाल होता हो तो ऐसे व्यक्ति को भी विटिलिगो की समस्या हो सकती है।       

प्रमुख लक्षण

त्वचा की रंगत में सफेदी नज़र आने के साथ अगर वहां के रोएं भी सफेद होने लगें तो यह इस रोग की शुरुआत हो सकती है। प्राय: ऐसे दाग पर खुजली या दर्द जैसे लक्षण नहीं दिखते और त्वचा की संवेदनशीलता भी बनी रहती है। हां, गर्मी के मौसम में पसीने की वजह से प्रभावित हिस्से में कुछ जलन हो सकती है।

जानें क्या है सच

  • विटिलिगो के बारे में भारतीय समाज में कई तरह की ऐसी भ्रामक धारणाएं प्रचलित हैं, जो पूरी तरह निराधार हैं। आइए जानें कुछ ऐसी ही भ्रांतियों के बारे में, जो इससे पीडि़त व्यक्तियों के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं
  • त्वचा संबंधी अन्य बीमारियों की तरह सफेद दाग भी एक ऐसी स्किन डिजीज़ है, जिसका उपचार संभव है। यह समस्या किसी को भी हो सकती है। इसलिए इसे पूर्वजन्म के बुरे कर्मों का फल समझना गलत है।
  • वैज्ञानिक दृष्टि से यह धारणा भी तथ्यहीन है कि मछली खाने के बाद मिल्क प्रोडक्ट्स का सेवन करने से यह समस्या होती है।
  • कुछ लोग इसे कुष्ठ रोग यानी लेप्रेसी की शुरुआती अवस्था मानकर इससे बहुत ज्य़ादा भयभीत हो जाते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। लेप्रेसी से इसका कोई संबंध नहीं है।
  • इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि यह स्किन कैंसर का शुरुआती लक्षण है और इससे व्यक्ति की जान भी जा सकती है। यह धारणा पूरी तरह गलत है। यह बीमारी कैंसर से बिलकुल अलग है और इससे मरीज़ की जान को कोई खतरा नहीं होता।
  • सबसे दुखद बात यह है कि कुछ लोग इसे संक्रामक रोग समझकर इसके मरीज़ों के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह रोग किसी भी दृष्टि से संक्रामक नहीं है। इसके मरीज़ों की त्वचा के स्पर्श या उनके साथ खाने-पीने से दूसरे व्यक्ति तक इसका संक्रमण नहीं पहुंचता। इसलिए इस बीमारी से पीडि़त लोगों को खुद से अलग न समझें और उनके साथ सहज व्यवहार करें।

बचाव एवं उपचार

  • अगर आपकी त्वचा अधिक संवेदनशील है तो तेज़ गंध वाले साबुन, परफ्यूम, डियो, हेयर कलर और कीटनाशकों से दूर रहें।
  • कुछ लोग दाग को छिपाने के लिए उस पर टैटू भी बनवाते हैं। ऐसा कभी न करें। इससे उसके फैलने का डर बढ़ जाता है।
  • कई बार उपचार के एक-डेढ़ साल के बाद त्वचा पर फिर से दाग नज़र आने लगते हैं तो ऐसे में दोबारा दवाओं के सेवन की ज़रूरत पड़ सकती है। अगर दो साल तक सफेद निशान वापस न दिखाई दे तो इस बात की संभावना है कि अब ऐसी कोई समस्या नहीं होगी।   
  • इसके उपचार के लिए स्किन ग्राफ्टिंग की तकनीक अपनाई जाती है। इसमें किसी एक जगह की त्वचा को निकालकर दाग वाले हिस्से पर लगाया जाता है, जिससे दाग छिप जाते हैं।

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  • एक और तकनीक है- सेक्शन ब्लिस्टर एपिडर्मल ग्राफ्टिंग, इसके ज़रिये सामान्य त्वचा को वैक्यूम के माध्यम से दो अलग हिस्सों में विभाजित करके उसे दाग वाले हिस्से के ऊपर रखा जाता है, इससे त्वचा की रंगत बनाने वाला तत्व मेलेनिन दाग वाली जगह में समा कर धीरे-धीरे वहां की सफेद रंगत को बदलना शुरू कर देता है। इसमें स्टिच लगाने की ज़रूरत नहीं होती और तीन-चार महीने के बाद त्वचा की रंगत सामान्य हो जाती है।
  • मेलेनोसाइट एपिडर्मल सेल तकनीक में सामान्य त्वचा के एक छोटे टुकड़े को लेकर उससे मेलेनिन निकाला जाता है, फिर उसे लिक्विड में परिवर्तित करके इन्जेक्शन के माध्यम से दाग वाले हिस्से में पहुंचाया जाता है। इससे जल्द ही त्वचा अपनी सामान्य रंगत में वापस लौट आती है। समस्या को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं भी दी जाती हैं।
  • फोटो थेरेपी विधि द्वारा सूरज की यूवीए और यूवी अल्ट्रावॉयलेट किरणों की मदद से त्वचा की रंगत दोबारा वापस लौटाने की कोशिश की जाती है। इसमें मरीज़ को काला चश्मा पहनने को दिया जाता है, ताकि उसकी आंखों को सूर्य की किरणों से नुकसान न पहुंचे। प्रभावित हिस्से पर खास तरह का लोशन लगाने के बाद मरीज़ को रोज़ाना सुबह 11 से 12 बजे के बीच धूप में बैठने को कहा जाता है।    
  • इन तरीकों से दाग को शुरुआती दौर में नियंत्रित करना आसान होता है। इसलिए अगर त्वचा की रंगत में ज़रा भी बदलाव नज़र आए तो तत्काल स्किन स्पेशलिस्ट से संपर्क करें।

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