दुनिया में अजीब-अजीब तरह की बीमारी है जिसके बारे में सोच कर ही इंसान की रुहें कांप जाती हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि जब ये किसी को हो तो उसकी क्या हालत होगी? इन्हीं अजीब बीमारियों की गिनती में सबसे पहले फाइलेरिया की गिनती होती है जिसे आम भाषा में हाथी का पांव भी कहा जाता है। दरअसल इसमें इंसान के शरीर का कोई भाग हाथी या हाथी के पांव की तरह मोटा होने लगता है। इस लेख में इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानें।
क्या है फाइलेरिया या हाथी पांव
- फाइलेरिया या फाइलेरियासिस (Filariasis या philariasis) परजीवी के कारण होने वाला रोग है।
- ये परजीवी धागे के समान दिखता है जिसे 'फाइलेरिओडी' (Filarioidea) कहते हैं।
- यह एक तरह का संक्रामक उष्णकटिबन्धीय रोग है मतलब ये गर्म प्रदेशों में अधिक होता है।
- इसलिए यह बीमारी पूर्वी भारत, मालाबार और महाराष्ट्र के पूर्वी इलाकों में बहुत अधिक फैली हुई है।
क्यूलैक्स मच्छर इसका कारक
- सामान्य तौर पर क्यूलैक्स मच्छर को इस बीमारी का कारक माना जाता है।
- यह कृमिवाली बीमारी है जिसमें कृमि शरीर के लसिका तंत्र की नलियों में होते हैं और इन नलियों को बंद कर देते हैं।
- इसके संक्रमण से लसीका अपना कार्य करना बंद कर देते हैं।
- ये कृमि बहुत छोटे आकार के होते हैं जो क्यूलैक्स मच्छर के काटने से शरीर में प्रवेश करते हैं।
- यह व्यस्क कृमि में लाखों की संख्या में छोटी-छोटी कृमि पैदा करने की क्षमता होती है।
- बीमार इंसान से मच्छर खून चूसकर इस कृमि को दूसरे स्वस्थ मनुष्य तक पहुंचाते हैं।
इस बीमारी होने का पूरा चक्र
क्यूलैक्स मच्छर मलखाने, नालियों और गड्ढों के गंदे पानी में पनपते हैं। इस मच्छर को इसके पीठ के कूबड़ और इसकी विशेष गूँज द्वारा इसे पहचाना जा सकता है। पानी में टेढ़े होकर इस मच्छर के लार्वे तैरते हैं। जब क्यूलैक्स मच्छर किसी इंसान को काटता है तो फाइलेरिया के छोटे कृमि उस इंसान के अंदर पहुँच जाते हैं। इंसान की लसिका तंत्र में ये छोटे कृमि कुछ ही दिनों में बड़े होकर पुरुष और मादा जीवों में बदल जाते हैं और लसिका नलियों को संक्रमित कर देते हैं जिससे लसिका तंत्र बंद हो जाता है।
शरीर के अंदर एक वयस्क कृमि लसिका वाहिकाओं में समागम करके खूब सारे सूक्ष्म फाइलेरिया बनाता है। ये सूक्ष्म फाइलेरिया का जीवन 2 से 3 साल तक होता है और वयस्क कृमि लगभग बारह साल तक इंसान के शरीर में रहते हैं।
ये सूक्ष्म फाइलेरिया शरीर के अंदर खून में घूमते हैं। ये कृमि विशेष तौर पर रात में खून में घूमते हैं। क्यूलैक्स मच्छर जब अस्वस्थ इंसान का खून चूसता है तो वह उसके दूषित खून के द्वारा इन सूक्ष्म फाइलेरिया को अपने अंदर ले लेता है। ये सूक्ष्म फाइलेरिया 10 से 15 दिनों के अंदर संक्रमण पैदा करने वाले लार्वा के रुप में विकसित होते हैं। जिसके बाद ये मच्छर बीमारी पैदा कर पाने में समर्थ हो जाते हैं और दूसरे स्वस्थ वाला होता है। इस तरह यह चक्र चलता रहता है।
इसके लक्षण
फाइलेरिया रोग में इंसान के शरीर का कोई भाग बहुत अधिक फूलने लगता है। अकसर ये हाथ या पैरो में ही होता है लेकिन कई बार ये स्तनों और गुदा के हिस्से में भी होता है। इसके लक्षण निम्न हैं-
- शरीर के संक्रमित होने के कुछ सालों बाद इसके लक्षण दिखते हैं।
- इसमें गुप्तांग एवं जांघों के बीच गिल्टी हो जाती है जो बहुत अधक फूल जाती है और इसमें काफी दर्द रहता है।
- एक या दोनों हाथ व पैरों में बहुत अधिक सूजन होना। लेकिन ये अधिकतर पैरों में ही होता है जिस कारण इसे हाथी पांव कहते हैँ।
- गले में बहुत अधिक सूजन आ जाती है।
- स्तनों में सूजन होना।
- पैरों व हाथों की लसिका वाहिकाएं लाल हो जाती हैं जिससे पैरों में लाल धारियां पड़ जाती है।
- इस बीमारी में पुरूषों के अंडकोष संक्रमित होकर फूल जाते हैं।
- शरीर में कंपकंपी आना और बुखार होना।
हाथी पांव का इलाज
- इस बीमारी का इलाज इसके प्रारंभिक चरण में ही शुरू कर देना चाहिए।
- फाइलेरिया फैले हुए क्षेत्र में जाने से बचें। अगर उस क्षेत्र में आप रहते हैं तो मच्छरों से दूर रहने के पूरे उपाय करें और शरीर को ढकने वाले पूरे कपड़े पहनें।
- अपने क्षेत्र में मच्छरों को मारने के लिए छिड़काव करें।
- क्यूलैक्स मच्छर सुबह और शाम को काटता है इसलिए सुबह और शाम को विशेष तौर पर मच्छरों से बचकर रहें।
- फाइलेरिया की गोली लें।
फाइलेरिया के लिए घरेलू उपाय
फाइलेरिया के घरेलू उपचार के लिए काले अखरोट का तेल रामबाण है। फाइलेरिया ग्रस्त इंसान को गर्म पानी में काले अखरोट के तेल की तीन से चार बूंद डालकर पीना चाहिए। इस मिश्रण को दिन में सुबह-शाम दो बार पिएं। अखरोट के अंदर मौजूद गुण फाइलेरिया के कृमि को मारने में सक्षण हैं। जल्दी से जल्दी राहत पाने के लिए छह हफ्तों तक ये मिश्रण पिएं।
image source @ cnn
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