सर्दियों में बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए आजमाएं ये टिप्स

सर्दियों में छोटे बच्‍चों को बीमारियों का सबसे ज्‍यादा खतरा रहता है। और आपके सर्दियों को जो बीमारी सबसे ज्‍यादा परेशान करती है, वह निमोनिया है। आइए सर्दियों में बच्चों को निमोनिया से बचाने के उपायों के बारे में जानें।
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सर्दियों में बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए आजमाएं ये टिप्स


सर्दियों की शुरुआत के साथ ही बीमारियों की शुरुआत हो जाती है। इस मौसम में सबसे ज्‍यादा परेशानियां आपके नन्‍हें मुन्‍ने को झेलनी पड़ती है। क्‍योंकि सर्दियों में उन्‍हें बीमारियों का ज्‍यादा खतरा रहता है। और आपके नवजात को जो बीमारी सबसे ज्‍यादा परेशान करती है, वह निमोनिया है। निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से फेफड़ों में होने वाले संक्रमण के कारण होती है, यह फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके ब्‍लड और ऑक्सीजन के बहाव में रुकावट पैदा करता है। इसलिए अपने बच्‍चे को सुरक्षित रखने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि बच्चों को निमोनिया से कैसे बचाया जाये। आइए सर्दियों में बच्चों को निमोनिया से बचाने के उपायों के बारे में जानें। लेकिन इससे पहले हम निमोनिया के कारण और उस पर हुए शोध पर एक नजर डालते हैं।

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क्‍या कहता है शोध

जिस देश में 4.30 करोड़ लोग निमोनिया से पीड़ित हैं, वहां पर इसकी रोकथाम और जांच के बारे में, खास कर सर्दियों में जागरूकता फैलाना बेहद आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि आम फ्लू, छाती के संक्रमण और लगातार खांसी के लक्षण इससे मेल खाने के कारण लोग निमोनिया की पहचान ही नहीं कर पाते। डब्ल्यूएचओ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्ट्रेप्टोकोक्स निमोनिया पांच साल से छोटी उम्र के बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने व मृत्यु होने का प्रमुख कारण है। डब्लयूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक पांच साल से छोटी उम्र के 1,20,000 बच्चों की मौत निमोनिया की वजह से होती है और भारत में हर एक मिनट पर एक बच्चे की निमोनिया की वजह से मौत हो जाती है।

निमोनिया कई तरीकों से फैल सकता है। वायरस और बैक्टीरिया अक्सर बच्चों के नाक या गले में पाए जाते हैं और अगर वे सांस से अंदर चले जाएं तो फेफड़ों में जाकर खांसी या छींक की बूंदों से हवा नली के जरिए भी फैल सकते हैं। इसके साथ ही जन्म के समय या उसके तुरंत बाद रक्त के जरिए भी यह फैल सकते हैं। इसके अलावा छोटे बच्चे के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं, हवा नली तंग होती है, इसलिए कमजोर पौष्टिकता और रोगप्रतिरोधक प्रणाली वाले बच्चों को निमोनिया होने का ज्यादा खतरा होता है। अस्वस्थ व गंदा वातावरण, कुपोषण और स्तनपान की कमी की वजह से निमोनिया से पीड़ित बच्चों की मौत हो सकती है। इस बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद आवश्यक है।

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बच्‍चों को निमोनिया से बचाने के उपाय

  • अगर बच्चों को सर्दियों में ठीक तरह से कपड़े ना पहनाए जाएं या फिर अधिक देर ठंडी हवा में रखा जाए तो बच्‍चो को निमोनिया हो सकता है। कई बार बच्‍चों में पोषण की कमी के कारण भी निमोनिया के बैक्टीरिया बच्चे को अपनी चपेट में ले लेते हैं। इसके अलावा छोटे बच्चों में निमोनिया के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है। जब नवजात की सांसे तेजी से चलने लगे, दस्‍त पतले हो जाएं, बच्चे को बुखार आ जाए या फिर बच्चे की नाक बंद हो जाए तब भी आपको समझना चाहिए कि आपका शिशु निमोनिया की चपेट में आ गया है।
  • उचित पौष्टिक आहार और पर्यावरण की स्वच्छता के जरिए निमोनिया को रोका जा सकता है।
  • निमोनिया के बैक्टीरिया का इलाज एंटीबायॉटिक से हो सकता है, लेकिन केवल एक-तिहाई बच्चों को ही एंटीबायॉटिक्स मिल पाते हैं।
  • इसलिए जरूरी है कि सर्दियों में ‍बच्चों को पूरी तरह से ढंक कर रखना चाहिए ताकि ठंडी हवा ना लग सकें। इसके लिए एक साल से छोटे बच्चे को ऊनी कपड़े, मोजे, कैप आदि पहनाकर रखें।
  • अपने बच्‍चों को धूप में बिठाये और खुले हवादार कमरों में रखें।
  • रात में ज्यादा ठंड होने पर कमरे को गर्म रखने का उपाय करें।
  • सर्दी-खांसी होने पर अगर बच्चा दूध नहीं पी रहा हो या तेज बुखार हो तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें।
  • जिस बच्चे की तेज सांस चल रही हो, सुस्त हो, कमजोर हो, उल्टियां कर रहा हो, दौरे आ रहे हों, नीला पड़ रहा हो, कुपोषित हो तो उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती कर इलाज शुरू कराएं।
  • बच्चो में निमोनिया होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए न कि इसका उपचार घर में करना चाहिए। बच्चे को पैदा होने के शुरूआती छह महीने तक मां का ही दूध दें। बच्‍चों को सभी जरूरी टीके लगावाएं।


Image Source : Getty
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