
कैंसर जैसी घातक बीमारी का एक बहुत ही ज्यादा खतरनाक किस्म है - सारकोमा। इस तरह के कैंसर से पीड़ित मरीज के इलाज के लिए पहले हाथ-पैर काटने के अलावा कोई अन्य इलाज नहीं था। लेकिन हाल ही में एम्स के डॉक्टरों ने एक नाड़ी संबंधी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरु की है जिससे अब मरीजों के हाथ-पैर काटे बिना इलाज हो सकेगा।
सारकोमा के बारे में एम्स के निदेशक एमसी मिश्रा ने बताया कि सारकोमा एक-दूसरे से जुड़े टिश्यूज (ऊतकों) में हो जाने वाले घातक ट्यूमरों का परिणाम है, जिसका इलाज केवल सर्जरी के द्वारा ही होता है। कई बार ये ट्यूमर 10 सेमी से अधिक बड़े हो जाते हैं जिससे बड़ी नाड़ियां इनकी चपेट में आ जाती हैं, जो कि हाथ-पैरों तक रक्त पहुंचाती हैं। इसी कारण सर्जन इस ट्यूमर से प्रभावित हुए अंग को सर्जरी के जरिए हटा देते थे।
सैल्वेज सर्जरी के जरिये बिना अंग काटे होगा इलाज
सारकोमा अधिकतर हाथ-पैरों और गले वाले क्षेत्र को प्रभावित करता है। मिश्रा ने कहा, ‘शरीर के किसी भी अंग को, विशेष कर हाथ-पैरों को हटाए जाने पर व्यक्ति अपंग हो जाता है। इससे जीवन आगे बसर करने में कई मुश्किलें होती हैं। भारत में इसके कारण कई नुकसान उठाने पड़ते हैं क्योंकि यहां पुनर्वास की प्रक्रियाएं उतनी अधिक विकसित नहीं हैं। इसके अलावा कृत्रिम हाथ-पैरों से जुड़ी तकनीक के अभाव और महंगे होने के कारण मरीज जिंदगी भर अपंग और अभाव में जिंदगी जीता है’।
उन्होंने कहा, ‘इसीलिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन मरीजों के अंग हटाने की जरूरत ही न पड़े। लिंब सैल्वेज सर्जरी के जरिए अंग काटे बिना ही इन घातक ट्यूमरों का सुरक्षित ढंग से इलाज किया जा सकता है’। सर्जिकल ओन्कोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर सुनील कुमार के मुताबिक, इलाज के तहत प्रभावित रक्त नलिकाओं का पुनर्निर्माण किया जाता है और मरीज के अपने शरीर से ली गई नाड़ियां और इनसे जुड़े ग्राफ्ट (टुकड़े) लगा दिए जाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘यह प्रक्रिया मरीज की शारीरिक दिखावट और उसका आत्मविश्वास बनाए रखती है। जब ट्यूमर में हड्डियां भी प्रभावित होती हैं तो हम कृत्रिम धात्विक रॉड भी लगाते हैं। इन ग्राफ्ट के जरिए हाथ-पैर में रक्त का संचार बनाए रखा जाता है और इस तरह हाथ-पैर की सक्रियता बनाई रखी जा सकती है। तब व्यक्ति कम से कम पुनर्वास सहयोग के साथ भी अपने सामान्य जीवन में लौट सकता है’।
सर्जरी में लगते हैं पांच से छह घंटे
हाल ही में इन डॉक्टरों की टीम ने बिहार के एक 21 साल युवक की ये सर्जरी कर उसे सारकोमा से मुक्त किया है। इस युवक की जांघ पर 12 सेमी का सारकोमा था, जिससे इसके पैरों तक रक्त पहुंचाने वाली नलिकाएं प्रभावित हो गई थीं। कुमार ने कहा कि सामान्य स्थितियों में यह व्यक्ति अपनी टांग खो बैठता। लेकिन हमने इसकी दोनों रक्त नलिकाओं का निर्माण किया। इसके लिए कृत्रिम नलिका और गर्दन से ली गई नलिका के ग्राफ्ट की मदद ली गई।
यह सर्जरी पांच से छह घंटों में पूरी हो जाती है। इस सर्जरी में पहले ट्यूमर हटाया जाता है और फिर पुनर्निर्माण शुरू की जाती है।
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