तकनीक की मदद से बधिर इंसान सुनने लगा, विकलांग चलने लगा ... तकनीक ने हर किसी की जिंदगी आसान बना दी। लेकिन केवल नेत्रहीनों की रोशनी वापस नहीं ला पाई। लेकिन अब इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा। जीन थैरेपी की मदद से नैत्रहीनों की रोशनी वापस लाना आसान होगा। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह शोध दस साल तक जानवरों पर करके किया है। अब ये प्रयोग इंसानों पर किया जा रहा है जिसके कामयाब होने के बाद लाखों लोगों के आंखों की रोशनी आंशिक रूप से वापस लौटाई जा सकेगी।
पहली बार किया जा रहा मानव पर प्रयोग
इस प्रयोग में नेत्रहीनों की आंखों में डीएनए के साथ हानिरहित वायरस का टीका लगाया जाएगा। यह प्रयोग मिशिगन में रेट्रो सेंस थेराप्युटिक्स कंपनी द्वारा 15 नेत्रहीनों पर किया जाएगा। इस प्रयोग को ओप्टोजेनेटिक्स नाम दिया गया है जिसमें स्नायु तंत्र को जेनेटिकली मॉडिफाइड करके प्रकाश के प्रति संवेदनशील बनाया जाएगा।
फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं का काम करेगी अन्य कोशिकाएं
यह प्रयोग साउथ वेस्ट रेटिना फाउंडेशन के चिकित्सक करने जा रहे हैं। इसमें फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं का काम अन्य दूसरी कोशिकाओं से लिया जाएगा जिससे आंखों की रोशनी वापस लौट सके। फोटोरिसेप्टर कोशिकाएं प्रकाश को तरंगों में परिवर्तित करने वाली कोशिका है जो रेटिना में होती है। आंखों की कोशिकाओं का समूह प्रकाश को इलेक्टि्रक तरंगों में बदल देता है, इसके बाद इनका प्रसंस्करण होता है और मस्तिष्क में तस्वीर बनने की प्रक्रिया पूरी होती है।
नेशनल आइ इंस्टीट्यूट के निदेशक थॉमस ग्रीनवेल तथा रेटिना फाउंडेशन के निदेशक यी जूंग ने कहा है कि, इस प्रयोग पर उतावले होने की जगह प्रयोग के परिणाम आने का इंतजार करना चाहिए। इससे पहले ऐसा प्रयोग चूहों और बंदरों पर किया जा चुका है जो पूरी तरह सफल रहा था। निदेशकों के अनुसार सबसे अहम चुनौती यह है कि पशुओं पर किया गया प्रयोग क्या मानव पर सफल हो पाएगा। हम बेहद उत्साहित और रोमांचित हैं।
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