राजस्थान में हाथियों से फैल रहा है टीबी रोग, लोगों को ऐसे प्रभावित कर सकता है संक्रमण

क्षय रोग यानी ट्यूबरकुलोसिस (टी.बी) एक संक्रामक बीमारी है जिसे टी.बी. तपेदिक, ट्यूबरकुलासिस, राजयक्ष्मा, दण्डाणु इत्यादि नामों से जाना जाता है। 
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राजस्थान में हाथियों से फैल रहा है टीबी रोग, लोगों को ऐसे प्रभावित कर सकता है संक्रमण


क्षय रोग यानी ट्यूबरकुलोसिस (टी.बी) एक संक्रामक बीमारी है जिसे टी.बी. तपेदिक, ट्यूबरकुलासिस, राजयक्ष्मा, दण्डाणु इत्यादि नामों से जाना जाता है। यह रोग या तो कमजोर लोगों को होता है या फिर जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है उनको टी.बी का खतरा सामान्य व्यक्ति से अधिक रहता है। हैरान करने वाली बात यह है कि टीबी रोग सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जानवरों को भी हो सकता है। दरअसल, राजस्थान में हाथियों में टीबी रोग के मामले देखे गए हैं। पेटा इंडिया द्वारा जारी अलर्ट के बाद केंद्र सरकार ने सोमवार को राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य में पालतू हाथियों द्वारा फैल रहे तपेदिक को रोकने के लिए निवारक उपाय करे। क्योंकि इससे इंसानों में भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।

पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स (पेटा) इंडिया ने एक बयान में कहा, “हाथियों के अप्रैल में किए गए परीक्षण में 91 में से 10 हाथियों में तपेदिक पाए गए हैं और अभी भी इनका प्रयोग आमेर किले में पर्यटकों को घुमाने के लिए किए जा रहे हैं।” स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राजस्थान सरकार को सभी हाथियों की तपेदिक को लेकर जांच करने के निर्देश दिए हैं। यह कदम जयपुर में इस साल अप्रैल में एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा पालतू हाथियों की जांच में पर्यटकों को घुमाने वाले 10 फीसदी हाथियों में तपेदिक की पुष्टि के बाद उठाया गया है। पेटा इंडिया का कहना है कि कई हाथियों की अभी भी जांच नहीं की गई है, जो आम लोगों के लिए खतरा हैं।

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टीबी के लक्षण

टीबी के डायग्नोसिस यानि पहचान के लिए बाहरी लक्षण तथा कुछ जांच प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है। क्लीनिकल, रेडियोलॉजिकल तथा बैक्ट्रियोलॉजिकल जांचों के बाद टीबी का प्रमाण सुनिश्चित होता है। टीबी बच्चों तथा व्यसकों में आम तौर पर पाया जाता है। बच्चों में पाए जाने वाले टीबी को प्राइमरी पुलमोनरी टीबी कहते हैं। यह संक्रमणकारी होता है। टीबी के आम बाहरी लक्षण हैं साधरणत:  दो हफ्ते से ज्यादा समय तक कफ होना। थूक बुखार आना, सांस लेने में कठिनाई, रात में पसीना, सीने में दर्द आदि। इसके अलाव लेबोरेट्री जांच में स्पूटम परीक्षण तथा कल्वर किया जाता है। टीबी शरीर के कई अंगों में हो सकत है और आज इसकी जांच के लिए आधुनिक संयंत्र भी हैं।

कितने प्रकार का होता है यह रोग

आमतौर पर तपेदिक तीन तरह का होता है। जो कि पूरे शरीर को संक्रमित करता है। टी.बी के तीन प्रकार हैं- फुफ्सीय टी.बी, पेट का टी.बी और हड्डी का टी.बी.। तीनों ही क्षयरोग के प्रकारों के कारण, पहचान और लक्षण अलग-अलग होते हैं। इसके साथ ही इन तीनों का उपचार भी अलग-अलग तरह से किया जाता है। क्या आप जानते हैं क्षयरोग की अवस्थाएं भी तीन ही तरह की होती हैं और क्षयरोग के प्रकारों की अवस्थाएं भी अलग ही होती हैं।

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टीबी का इलाज

टीबी के इलाज में प्रथम चरण में रोग को संक्रमणमुक्त बनाने की कोशिश की जाती है ताकि साथ रहने वावों और परिवार के सदस्यों में खतरा न रहे। रोग के लक्षण, रोगी की स्थिति और अन्य मापदंड़ो को ध्यान में रखते हुए इलाज के लिए दवा की खपराक तय की जाती है। टीबी के इलाज में इलाज प्रक्रिया के प्रभावी प्रबंधन के लिए रोगी का सतत निरीक्षण जरूरी है।

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