ब्लैडर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को ब्लैडर कैंसर कहते है। ब्लैडर की बाहरी दीवार की मांसपेशियों की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्यू, एडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है। ब्लैडर वो गुब्बारेनुमा अंग है जहां पर यूरीन का संग्रह और निष्कासन होता है। ब्लैडर की आंतरिक दीवार नये बने यूरीन के सम्पर्क में आती है और इसे मूत्राशय की ऊपरी परत कहते हैं। यह ट्रांजि़शनल सेल्स द्वारा घिरी होती है जिसे यूरोथीलियम कहते हैं।
पुरुष-महिला, दोनों को होता है
ब्लैडर कैंसर महिलाओं और पुरूषों दोनों को ही हो सकता है। लेकिन महिलाओं में यह कैंसर अधिक होता है। ब्लैडर कैंसर के कई कारण है, प्रॉस्टेट ग्रंथि का बढ़ना, मूत्रमार्ग में संकुचन होना, गर्भ के समय आने वाली समस्याएं, मूत्राशय में पथरी का होना, गर्भपात होना, किसी बीमारी के कारण इत्यादि ब्लैडर इंफेक्शन के जिम्मेदार है। कोशिकाओं की परत के नीचे मांसपेशियों की एक परत होती है जो कि ब्लैडर के सिकुड़ने के साथ यूरीन को निष्कासित करती है जिससे यूरीन यूरेथ्रा नामक ट्यूब से निष्कासित किया जाता है।
ब्लैडर कैंसर का पता कब चलता है
- ब्लैडर की बाहरी दीवार की मांसपेशियों की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्यू, एडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है। ब्लैडर कैंसर ब्लैडर की परत से शुरू होता है। लगभग 70 से 80 प्रतिशत ब्लैडर कैंसर के मरीज़ों में कैंसर का पता तभी लग जाता है जब यह बाहरी सतह में होता है जबकि यह ब्लैडर की दीवार की आंतरिक सतह में होता है।
- कैंसर जब ब्लैडर की बाह्य दीवार में शुरू होता है तो इसे सुपरफीशियल कैंसर कहते हैं और यह असामान्य कोशिकाओं में आइसोलेटेड पैच की तरह दिखता है। अगर ब्लैडर की आंतरिक दीवार पर उंगलीनुमा निकला हुआ हिस्सा पाया गया तो इसे पैपिलरी ट्रांजिंशनल सेल कैंसर कहते हैं।
- कभी–कभी ट्यूमर का पता तब लगता है जबकि यह गहरे तौर पर ब्लैंडर की आंतरिक दीवार से लेकर लिम्फ नोड्स और दूसरे अंग में फैल चुका होता है।
ब्लैडर कैंसर के अन्य प्रकार
ब्लैडर कैंसर का एक और प्रकार है जिसे कि कारसिनोमा इन सीटू कहते हैं, जिसका अर्थ है कि यह कैंसर सिर्फ उसी स्थान पर रहता है जहां पर इसकी शुरूआत हुई होती है। हालांकि यह कैंसर ब्लैडर को बहुत गहराई से नहीं प्रभावित करता है लेकिन इसके कुछ लक्षण हैं, यूरीनेशन के दौरान जलन होना। ऐसा भी हो सकता है कि चिकित्सक द्वारा साइटोस्कप से जांच करने के बाद भी यूरोलोजिस्ट इस बीमारी को ना पकड़ पाये। जांच के लिए ब्लैडर की बाह्य दीवार का जो हिस्सा लाल लगे वहां की बायोप्सी करनी होती है।
इसका पता एक दूसरी जांच से भी लगाया जाता है जिसे कि यूरीन साइटालाजी कहते हैं और इसमें यूरीन की कोशिकाओं की जांच की जाती है। इस जांच में यूरीन का एक नमूना लिया जाता है और माइक्रोस्कोप के अंदर उसकी जांच कर कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाया जाता है।
ब्लैडर कैंसर के तीन प्रकार हैं और सभी में अलग–अलग तरह की कोशिकाएं होती हैं
- लगभग 90 प्रतिशत ब्लैडर के कैंसर ट्रांजि़शनल सेल कार्सिनोमाज़ कहलाते हैं।
- 6 से 8 प्रतिशत स्क्वामस सेल कार्सिनोमा।
- 2 प्रतिशत एडेनोकार्सिनोमाज़ होते हैं।
एक और प्रकार का परजीवी संक्रमण जिसे कि सीज़ोसोमियासिस कहते हैं वो ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ाता है। वो मरीज़ जिनमें लम्बे समय से ब्लैडर की पथरी है उनमें ब्लैडर की दीवार पर सूजन और लम्बे समय तक जलन के कारण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। वो मरीज़ जिनमें पहले कभी ब्लैडर कैंसर हो चुका है उनमें इस बीमारी के दोबारा होने की आशंका होती है।
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ब्लैडर कैंसर के लक्षण
- शौच या पेशाब के समय खून आना।
- हमेशा बुखार रहना।
- खांसने में खून आना।
- स्तन में गांठ हो जाती है।
- महावारी के दौरान अधिक खून आता है।
ब्लैडर कैंसर का इलाज
इसका इलाज बहुत ही मुश्किल और महंगा होता है। कई बार सर्जरी के जरिए भी इसे ठीक किया जाती है और कई बार इलाज के चारों प्रकार का भी एक साथ इस्तेमाल किया जाता है। इलाज के ये चार प्रकार प्रमुख हैं-
- सर्जरी
- इंट्रावेसीकल थेरेपी
- कीमोथेरेपी
- रेडिऐशन थेरेपी
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