खुद को बीमार समझना हो सकता है मनचाउज़ेन सिंड्रोम, ये हैं लक्षण

कोई बीमारी न होने के बावजूद कुछ लोगों को लगता है कि वो बहुत बीमार हैं। अपनी काल्पनिक बीमारी के लिए ये लोग तरह-तरह के इलाज भी करवाते हैं। मगर ये एक तरह का मानसिक रोग होता है, जिसे मनचाउज़ेन सिंड्रोम कहते हैं।
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खुद को बीमार समझना हो सकता है मनचाउज़ेन सिंड्रोम, ये हैं लक्षण

कोई बीमारी न होने के बावजूद कुछ लोगों को लगता है कि वो बहुत बीमार हैं। अपनी काल्पनिक बीमारी के लिए ये लोग तरह-तरह के इलाज भी करवाते हैं। हम कई बार ऐसे लोगों को देखकर सोचते हैं कि वो बीमारी का नाटक कर रहे हैं। मगर ये एक तरह का मानसिक रोग होता है, जिसे मनचाउज़ेन सिंड्रोम कहते हैं। इस सिंड्रोम के कारण लोगों को ऐसा लगता है कि वो बीमार है। हालांकि वो अभिनय नहीं कर रहे होते हैं और उन्हें सच में ऐसा लगता है कि वो बीमार हैं मगर उनके अवचेतम में बीमार होकर दूसरों का प्यार और सहानुभूति पाने की इच्छा होती है।

क्या है मनचाउज़ेन सिंड्रोम

मनचाउज़ेन सिंड्रोम एक तरह का मानसिक रोग होता है जिसमे व्यक्ति खुद को बिना वजह बीमार समझता है। रोगी तरह-तरह के झूठे लक्षणों को बताकर परिवारजन और डॉक्टर से ध्यान, सहानुभूति और आश्वासन चाहता है। वो अपनी बीमारी को साबित करने के लिए अपने मन से बीमारियों के लक्षणों के बारे में बताता है। इस सिंड्रोम का ही एक विलक्षण प्रतिरूप है मनचाउसेन सिंड्रोम। कई बार इस सिंड्रोम का शिकार व्यक्ति अपने बीवी-बच्चों और मां-बाप को भी बीमार समझने लगता है और उनका भी इलाज करवाना चाहता है।

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क्या हैं मनचाउज़ेन सिंड्रोम के लक्षण

  • रोगी बिना वजह बीमार महसूस करता है।
  • बीमारी के लक्षण बढ़-चढ़ कर बताता है।
  • छोटी-छोटी परेशानी होने पर दवा और जांच का सहारा लेता है।
  • कई बार रोगी कुछ गंभीर मेडिकल टर्म्स यानी चिकित्सीय शब्दों का इस्तेमाल कर रोग की गंभीरता को बताना चाहता है।
  • रोगी हर किसी को काल्पनिक रोग के बारे में अपना ज्ञान बताने की कोशिश करता है।
  • किसी रिपोर्ट के निगेटिव आने पर भी असंतुष्ट रहना और दोबारा जांच या दूसरी जांच के लिए तत्पर रहना।
  • दूसरों की सहानुभूति हासिल कर दया-पात्र बनने में रोगी को मजा आता है।

क्या हैं मनचाउज़ेन सिंड्रोम के कारण

मनचाउज़ेन सिंड्रोम के कारण रोगी को रोग, इलाज और चिकित्सा के बारे में बातें करने में अच्छा लगता है। अक्सर ऐसे मरीज डॉक्टर को कम जानकार बताते हैं और लोगों को बताते हैं कि कितना पैसा खर्च करने के बाद भी रोग पकड़ में नहीं आया। अपने रोग के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित कर, चिंता, सहानुभुति व उनकी दिलचस्पी में उसे आदर भाव, आत्मतुष्टि मिलती है।

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मरीज के अन्य लक्षण

ऐसा मनोरोगी लत की तरह एक से दूसरे डॉक्टर के पास अपनी बीमारी के बारें में सलाह लेते रहते है।  हाथ में रोग संबंधी मोटी फाइल लिए, अस्पतालों के चक्कर काटते हैं। इस रोग  को हॉस्पिटल अडिक्सन सिंड्रोम, थिक चार्ट सिंड्रोम या हॉस्पिटल हॉपर सिंड्रोम भी कहा जाता है। ऐसे मनोरोगी चाहते है कि  डॉक्टर उसकी तरफ ध्यान दें, विश्वास कर उसका इलाज करें क्योंकि उसके रोग काल्पनिक होते हैं इसलिए लक्षणों का कारण नहीं मिलता।

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