चावल का नाम सुनते ही बच्चों ही नहीं बड़ों के मुंह में भी पानी आने लगता है। छोले-चावल, कढ़ी चावल हो या राजमा चावल नाम सुनते ही भूख बढ़ने लगती है। जी हां मुख्य भोजन माने जाने वाला चावल जिसे हर वर्ग का व्यक्ति सेवन करता है और हमारी थाली का अहम हिस्सा है। यह हमारे शरीर को कई पोषण तत्व देता है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन, फाइबर, नियासिन, कैल्शियम, आयरन जैसे पोषक तत्व पाए जाते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चावल सेहत के लिए उतना भी अच्छा नहीं जितना की आप सोचते हैं।
एक शोध के अनुसार खाने की लगभग हर चीज में केमिकल्स मिले होते हैं। मसलन कृषि के समय फसल बढ़ाने के लिए केमिकल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद दूषित पानी और कीटनाशक आदि के उपयोग से फसल जहरीली बन जाती है और लंबे समय तक इन चीजों को खाने से कैंसर का खतरा हो सकता है।
क्या कहता है शोध
इंग्लैंड में क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफ़ास्ट द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, मिट्टी में औद्योगिक विषाक्त पदार्थों और कीटनाशक केमिकल्स युक्त पदार्थों ने लाखों लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है। कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों पर विभिन्न रिपोर्ट हैं, जिनमें बताया गया है कि आपके भोजन में केमिकल्स किस तरह तेजी से बढ़ रहे हैं और इनसे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा होता है। चावल को भी आर्सेनिक जहर के रूप में जाना जाता है।
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आर्सेनिक जहर क्या है?
आर्सेनिक एक केमिकल है, जो स्वाभाविक रूप से कई मिनरल्स में होता है, आमतौर पर सल्फर और धातुओं के संयोजन में पाया जाता है। औद्योगिक रूप से, यह आमतौर पर कीटनाशकों के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। विभिन्न देशों के ग्राउंड वाटर में नैचुरल आर्सेनिक का लेवल अधिक है, जिसमें भारत और पश्चिम बंगाल जैसे देश भी हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है।
दूषित पानी या भोजन के माध्यम से लंबे समय तक इसके सेवन से उल्टी, पेट में दर्द और दस्त, और यहां तक कि कैंसर और त्वचा के घाव भी हो सकते हैं। डब्लूएचओ के अनुसार, आर्सेनिक से हृदय रोग, न्यूरोटॉक्सिसिटी और डायबिटीज का भी खतरा होता है। विभिन्न अध्ययनों ने इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि अनुचित कृषि पद्धतियों से चावल में आर्सेनिक का टॉक्सिक लेवल बढ़ सकता है। इसके अलावा अगर आप चावल को अच्छी तरह से नहीं पकाते हैं, तो इससे आपके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
आर्सेनिक जहर को रोकने के उपाय
आर्सेनिक जहर को रोकने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि चावल को बनाने से पहले रातभर भिगोकर रखें। इससे टॉक्सिन का लेवल लगभग 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। शोधकर्ताओं ने अलग-अलग तरीकों से चावल पकाने का टेस्ट किया। पहला, उन्होंने पानी के दो हिस्सों के अनुपात को चावल के एक हिस्से में इस्तेमाल किया, जहां खाना पकाने के दौरान पानी उबाला गया था। दूसरे चरण में, चावल का एक हिस्सा और पानी के पांच हिस्से थे और चावल को अतिरिक्त पानी से धोया गया।
इन प्रयोगों से पता चलता है कि जिस तरह से चावल को पकाया जाता है वह विषाक्त और स्वाभाविक रूप से होने वाले रासायनिक के जोखिम को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कारक है।
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