सर्दियों के आते ही एलर्जी, सर्दी खांसी-जुकाम होना आम बात है। ऐसे में उन लोगों को सबसे अधिक परेशानी होती है, जो दमा यानी अस्थमा से पीड़ित है। अस्थमा के कारण श्वासनली या इसके आसपास के जुड़े हिस्सों में सूजन आ जाती है। जिस कारण सांस लेने में दिक्कतें आने लगती है। इतना ही नहीं इससे फेफडों में हवा ठीक से नहीं जा पाती। नतीजन सांस की समस्या, खांसी इत्यादि होने लगती है। यही अस्थमा की शुरूआत है। दमा फेफड़ों को खासा प्रभावित करता है। दमा के कारण व्यक्ति को श्वसन संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। दमा सिर्फ युवाओं और व्यस्कों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लेता है।
सर्दियों में पैदा होने वाले बच्चे दमा तथा फेफड़ों की अन्य बीमारियों के अधिक शिकार होते हैं। नार्वे की बर्गेन यूनिवर्सिटी का डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ एंड प्राइमरी केयर 12 हजार से अधिक लोगों पर शोध करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि नवंबर से जनवरी के बीच पैदा हुए बच्चे जब युवा होते हैं तो उनमें सांस से संबंधित बीमारी अधिक होने लगती है। फेफड़ों की क्षमता कम होने के अन्य कारण भी हैं जैसे संक्रमण, अधिक उम्र में बच्चे का जन्म या मां द्वारा धूमपान करना लेकिन एक बहुत बड़ा कारण तो सर्दी में पैदा होना ही बताया है।
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अन्य घातक बीमारियां
इस शोध में पाया गया कि अस्थमा के साथ-साथ फेफड़ों की कमजोरी से अन्य घातक बीमारी सीआपीडी( क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) का भी प्रकोप होने की आशंका लगातार रहती है। शोधकर्ताओं के अनुसार जन्म के समय का मौसम फेफड़ों की क्षमता में कमी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। इस शोध में ये भी बताया गया कि सर्दी में पैदा होने वाले बच्चे आरंभिक कुछ महीनों में सांस से संबंधित संक्रमण के शिकार होते हैं जो बाद में चल कर फेफड़ों के कमजोर होने का स्थायी कारण बन जाता है।
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कई तरह का होता है अस्थमा
अस्थमा कई कारणों से होता है और ये कई प्रकार का होता है। एलर्जिक अस्थमा के दौरान आपको किसी चीज से एलर्जी है जैसे धूल-मिट्टी के संपर्क में आते ही आपको दमा हो जाता है या फिर मौसम परिवर्तन के साथ ही आप दमा के शिकार हो जाते हैं वहीं नॉनएलर्जिक अस्थमा का कारण बहुत अधिक तनाव या बहुत तेज-तेज हंसना भी हो सकता है। कई बार आपको बहुत अधिक सर्दी लग गई हो या बहुत अधिक खांसी-जुकाम हो तब भी नॉनएलर्जिक अस्थमा हो जाता है। बच्चों को ज्यादातर चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा होता है। अस्थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है तो बच्चा इस प्रकार के अस्थमा से अपने आप ही बाहर आने लगता है। ये बहुत रिस्की नहीं होता लेकिन इसका सही समय पर उपचार जरूरी है।
अस्थमा से बचाव जरूरी है
- अस्थमा रोगी के लिए बचाव बेहद जरूरी है, ऐसे में आप धूल मिट्टी से दूर रहें। साफ-सफाई करने से बचें और पुराने धूल-मिट्टी के कपड़ों से दूर रहें।
- अस्थमा होने पर धूम्रपान से दूर रहें और धूम्रपान करने वाले लोगों से भी दूरी बनाएं।
- पालतू जानवरों के बहुत करीब ना जाएं और उन्हें हर सप्ताह नहलाएं।
- चिकित्सक के परामर्श अनुसार इनहेलर का प्रयोग करें।
- अस्थमा अटैक होने पर तुरंत डॉक्टर को संपर्क करें अन्यथा इनहेलर का प्रयोग करें।
- समय-समय पर अपनी जांच करवाएं।
- अस्थमा रोगियों के लिए व्यायाम करना बेहद जरूरी होता है।
- अत्यधिक चिंता, क्रोध और डर जैसी भावनाएं और मानसिक उत्तेजना के कारण तनाव होता है, जिससे हृदय गति और श्वास पैटर्न बदलता है। यह श्वासमार्ग में रुकावट का कारण बनता है। इसलिए बेवजह की टेंशन न लें।
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