अपने बच्चे को खुला आसमान देना, उन्हें हर सुख-सुविधा देना, सभी पेरेंट्स की इच्छा होती है। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा खूब ऊचांइयो तक जाए। अपना और हमारा दोनों का सपना वह पूरा करे। इस उम्मीद में हम बच्चों के साथ कभी-कभी कड़े नियम अपना लेते हैं। पेरेंट्स की परवरिश अलग-अलग होती है। कुछ अपने बच्चों को छोटी गलतियों पर डांट देते हों तो कुछ बड़ी गलतियों की भी नजरअंदाज कर देते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि बच्चों को सजा देना कितना सही है? इस विषय पर हमने अभिभावक और बच्चे दोनों की राय जानी। हमें पता चला कि दोनों पीढ़ियां इस विषय पर क्या सोचती हैं? कितनी मिलती है दोनों की सोच? साथ ही हमने एक्सपर्ट से भी बात की। पढ़ते हैं आगे...
सज़ा या डांटना है बेहद जरूरी
मुझे लगता है कि उन्हें अनुशासित करने के लिए कभी-कभी डांटना सही होता है। अगर हम उन्हें डांटेंगे नहीं या सज़ा नहीं देंगे तो वह उस गलती को बार-बार दोहराएंगे। ऐसे में बच्चों के मन में थोड़ा सा डर होना जरूरी है। वरना वे अपने पेरेंट्स की बातों को नहीं मानेंगे। अगर हम बच्चों के साथ थोड़ी सख्ती करेंगे तो उनके अंदर अच्छी आदतें विकसित होंगी। वे गलत रास्ते पर नहीं जाएंगे। लेकिन बच्चों को ज्यादा सख्त सजा देनी भी गलत है। इससे वे सुधरने की बजाय बिगड़ सकते हैं।- आशा महापात्रा, दिल्ली
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बच्चों की गलतियों के पीछे जानें कारण
पहले पेरेंट्स को अपनी परवरिश पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों को सजा देना सही नहीं है। उन्हें समझाना और सही तरीका बताना भी पेरेंट्स की ही जिम्मेदारी है। उन्हें डांटने से पहले मां बाप को यह सोचना चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। अगर मां-बाप उनके द्वारा की गई गलती के पीछे सही कारण जान लेंगे तो वे अपने बच्चे की परेशानी को अच्छी तरीके से समझ पाएंगे। माता-पिता की भी जिम्मेदारी है कि वह अपने व्यवहार से बच्चे के साथ एक दोस्ताना रिश्ता कायम करें। जिससे बच्चा निडर होकर उनके साथ सारी बातें शेयर करें। मुझे लगता हर कि बच्चों को सज़ा देने से बच्चों के विकास में परेशानी आ सकती है। - तुषार जैन, उत्तर प्रदेश
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विशेषज्ञ की राय
सज़ा देना या न देना बहुत सेंसिटिव मुद्दा है। अगल घर का माहौल पॉजिटिव है और बच्चों की बातों को सुना जाता है तो बच्चों को सज़ा देने की नौबत आएगी ही नहीं। अगर कोई बच्चा गलती करता भी है तो माता-पिता का फर्ज है कि वे अपने बच्चों से बैठकर बात करें। उनसे परिस्थिति समझें। हो सकता है कि बच्चे को उस वक्त कुछ और समझ में न आया हो। ऐसे में बच्चें को समझाना भी आपका फर्ज है। उसे परिस्थितियों से लड़ना सिखाएं। इसके अलावा अनुशासन के लिए बचपन से ही बच्चों के लिए कुछ नियम घर पर बनाएं, जिससे वे अनुशासन के अर्थ को समझे। अगर आप बचपन सेे बच्चे को अनुशासन का माहौल नहीं देंगे तो 5 साल के बाद वे इस शब्द की अहमियत को नहीं समझ पाएगा। बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उनकी दिनचर्या में कुछ हे्ल्दी आदतों को डालना भी आपकी जिम्मेदारी है।
(ये लेख कंसल्टेंट क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. अनम कौशल और आज के पेरेंट्स और बच्चों से बातचीत पर आधारित है।)
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