कहते हैं मन स्वस्थ तो आप स्वस्थ। चिकित्सीय विज्ञान भी इस बात को मानता है कि आपका मन आपके शरीर को रोगमुक्त करने में अहम भूमिका निभाता है। इसे 'प्लेसबो इफेक्ट' भी कहा जाता है। कई चिकित्सीय परीक्षणों में मरीजों को कैप्सूल में चीनी भरकर दवा दी जाती है। इसके साथ ही खारे पानी के इंजेक्शन व नकली सर्जरी की भी की जाती हे।
यह बात तो हमें मालूम हे कि सकारात्मक विचार और यकीन बीमारी से उबरने में काफी मदद करते हैं, वहीं नकारात्मकता हमारी सेहत को काफी नुकसान भी पहुंचा सकती है। डॉक्टर भी इस बात को मानते हैं कि नकारात्मक विचार बीमारी से ठीक होने की हमारी क्षमता को प्रभावित करते हैं। इसे ही नोसेबो इफेक्ट कहा जाता है।
सेन डियागो के शोधकर्ताओं ने 30 हजार चीनी-अमेरिकी लोगों के मृत्यु रिकॉर्ड का आकलन किया। उन्होंने इसके नतीजों को 4 लाख बेतरतीब तरीके से चुने गोरे लोगों के आंकड़ों से मिलाया। शोध के
नतीजों में यह बात सामने आयी कि चीनी-अमेरिकी लोग गोरे लोगों की अपेक्षा पांच बरस कम जीते हैं। ऐसा तब होता है जब उनके जन्म और बीमारी के वर्षों में कोई मेल हो। इसे चीनी ज्योतिष और चीनी दवाओं में दुर्भाग्य माना जाता है।
शोधकर्ताओं का गहरा विश्वास था कि परंपरागत चीनी अंधविश्वासों से जुड़े चीनी-अमेरिकी लोगों का जीवन छोटा पाया गया। जब शोधकर्ताओं ने आंकड़ों का और गहन अध्ययन किया तो उन्होंने पाया कि जीवन छोटा होने के पीछे, अनुवांशिक कारण, जीवनशैली अथवा माता-पिता का स्वभाव, डॉक्टरी कारण अथवा कोई अन्य कारण नहीं था।
तो फिर चीनी-अमेरिकी कम जीते हैं
आंकड़ो व तमाम पहलुओं का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि जल्दी मृत्यु के पीछे चीनी अनुवांशिक गुण नहीं, बल्कि चीनी मान्यतायें कारण थीं। वे ऐसा मानते थे कि वे जल्दी मर जाएंगे क्योंकि सितारे उनके खिलाफ हैं। और उनकी इसी नकारात्मक मानसिकता के कारण उनका जीवन छोटा रहा।
सिर्फ चीनी-अमेरिकी लोगों का डर ही उनकी सेहत पर बुरा असर डालता हो, ऐसा नहीं है। एक अन्य शोध में यह बात सामने आयी कि 79 फीसदी मेडिकल स्टूडेंट्स ने उस बीमारी के लक्षण महसूस होने की बात कही, जिसके बारे में वे पढ़ रहे हैं। वे लोग दिन-रात उसी के बारे में विचार करते रहते। इससे उन्हें लगने लगा कि वे बीमार हो जाएंगे। और फिर उनके शरीर ने उनकी इसी मानसिकता का पालन किया और वे वाकई बीमार भी हुए।
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बीमारी के बारे में ना सोचें
बुद्ध ने कहा है कि आप जैसा सोचेंगे, आप वैसे बन जाएंगे। लोग अकसर अचेतन में यही सोचते रहते हैं कि मैं जल्दी बीमार पड़ जाता हूं या मेरे परिवार में इस बीमारी का इतिहास है। यह बात साबित हो चुकी है कि बीमारी पर ध्यान केंद्रित करने से आपके बीमार पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों के बारे में आवश्यकता से अधिक जानकारी कई बार आपको नुकसान पहुंचा सकती है। आप बीमार पड़ने के जितने कारणों के बारे में विचार करते जाएंगे, आपको उस बीमारी के लक्षण उतने ही अधिक नजर आने लगते हैं।
एक ओर जहां प्लेसबो इफेक्ट सकारात्मक विचारों की शक्ति, आशा, पोषण देखभाल और उम्मीद की बात करता है, वहीं नेकेबो इफेक्ट नकारात्मक प्रभाव के मनोवैज्ञानिक पक्ष दिखाता है। इसमें डर, चिंता और अन्य कई प्रकार की समस्यायें होती हैं।
ये नकारात्मक विचारों के कारण मस्तिष्क स्ट्रेस हॉर्मोन को 'लड़ो या भागो' विचार उत्तेजित करने की सलाह देता है। और जब आपका नर्वस सिस्टम इस मोड पर होता है, तो शरीर का सुरक्षा तंत्र सही प्रकार काम नहीं करता और शरीर बीमार हो जाता है। यह सब इसलिए होता है क्योंकि आप खुद को बीमार समझते हैं।
विचार बदलो सेहत बदलो
अपने विचार बदलकर आप अपनी सेहत सुधार सकते हैं। बेका लेवी (Becca Levy) स्टडी में यह बात सामने आयी है कि कैसे हमारे विचार, हमारी जिंदगी बढ़ा सकते हैं। शोध में कहा गया था कि जो लोग सोचते हैं कि वे अधिक जियेंगे, वे अधिक जीते हैं।
ऐसा नहीं है कि सकारात्मक सोच एकमात्र पक्ष है। बेशक, दुर्घटनायें होती हैं, अनुवांशिक कारण भी आपकी सेहत को प्रभावित करते हैं। सकारात्मक विचारों वाले अच्छे लोगों के साथ भी बुरी चीजें होती हैं। इन सबके बावजूद आपको अपने विचारों में सकारात्मकता बनाये रखनी चाहिए। नकारात्मक विचार आपके शरीर में हानिकारक कोरटिसोल और एपिनेफ्रिरिन जैसे खतरनाक हॉर्मोन सक्रिय होते हैं। वहीं सकारात्मक विचार हमारे नर्वस सिस्टम को आराम देते हैं और शरीर को जल्दी ठीक होने में मदद करते हैं।
आप हैं अपने मन के पहरेदार
सकारात्मक विचारों की कोई दवा नहीं कि खायी और असर शुरू। लेकिन हर बार आपके मस्तिष्क में आने वाले नकारात्मक विचार आपके तन को विषैला बना रहे हैं। और आपके शरीर की सुरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आप स्वयं अपने मन के पहरेदार हैं और यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने विचारों पर नियंत्रण रखें।