
पतले बच्चों के मुकाबले मोटापे से परेशान बच्चों में मानसिक समस्याएं कहीं अधिक होती हैं। इस बात की पुष्टि हाल ही में हुए शोध में भी हो चुकी है।
जो स्कूली बच्चें मोटापे से परेशान हैं, उनमें उनके पतले सहपाठियों की तुलना में मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना बहुत अधिक होती है। ऐसा निष्कर्ष हाल ही में हुए अध्ययन द्वारा प्राप्त किया गया है। मोनाश विश्वविद्यालय द्वारा तैवान में स्थित 6 से 13 साल की उम्र के 2000 से अधिक स्कूली बच्चों को लेकर एक सहयोगपूर्ण अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में इस बात की जांच की गयी थी कि अयोग्य वर्तन, रिश्तों से जुड़ी समस्याएं, उदासी या पढ़ाई करने में सक्षम ना होने की भावना इस तरह की मानसिक समस्याओं का संबंध मोटापे से होता है या नहीं।
स्केल फॉर असेसिंग इमोशनल डिस्टर्बंस (एसएईड़ी)-(भावनात्मक अशांति का मूल्यांकन करने का परिमाण) इस प्रणाली का उपयोग करते हुए मोनाश विश्वविद्यालय के नेशनल हेल्थ रिसर्च इंस्टिट्यूट, तैवान (तैवान की राष्ट्रीय स्वास्थ्य संशोधन संस्था), चाइना मेडिकल यूनिवर्सिटी,तैवान (चीन चिकित्सा विश्वविद्यालय) और नैशनल डिफेंस मेडिकल सेंटर,तैवान (तैवान का राष्ट्रीय संरक्षण चिकित्सा केंद्र) इन संस्थाओं के शोधकों ने,भावनात्मक अशांति से मोटापा एवं लिंगभेद का संबंध होता है या नहीं, इस बात की जांच की। एसएईडी यह एक परिमाण है, जो उन बच्चों को पहचानने के लिए बनाया गया है, जिन्हें पाठशाला में भावनात्मक और, वर्तन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इस लेखन के सहलेखक और मोनाश विश्वविद्यालय के एपिडेमियोलॉजी और प्रिवेंटिव मेडिसीन विभाग और मोनाश एशिया इंस्टिट्यूट के प्राध्यापक मार्क वाह्लक्विस्ट ने कहा, बचपन में पाए जानेवाले मोटापे की वजह से शारीरिक स्वास्थ्य पर होने वाले नकारात्मक परिणाम सर्वज्ञात हैं, क्योंकि यह परिणाम बच्चों की मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से अधिक मात्रा में जुड़ते जाते हैं।
प्राध्यापक वाह्लक्विस्ट ने कहा, बचपन में पाए जानेवाले मोटापे बच्चों की मनोवैज्ञानिक समस्याएं जुड़ी हुई होती हैं, लेकिन इस मोटापे से उनकि शिक्षा से संबंधित भावनात्मक समस्याओं के रिश्ते के बारे में,और विशेष रूप से लिंगभेद के अनुसार बदलनेवाली समस्याओं के बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है।
विशेष रूप से आशिया खंड़ में, जहां बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है, जहां समाज और माता-पिता का ध्यान अधिकतम रूप से पाठशाला में किए जानेवाले अध्ययन पर केंद्रित होता है और साथ ही जहां अक्सर लिंगभेद पर आधारित पक्षपात किया जाता है; इस तरह की सामाजिक स्थितियों में भावनात्मक अशांति और मोटापा यह दो चीज़ें किस तरह से जुड़ी होती हैं, इस विषय पर सीमित जानकारी उपलब्ध हैं। इस संशोधन में देखा गया कि लड़कों में (16.5 प्रतिशत) मोटापे की समस्या लड़कियों की तुलना में (11.7 प्रतिशत) अधिक होती है। लेकिन, जब बच्चें अगली कक्षा में जाते हैं और उनकि भावनात्मक अशांति की मात्रा बढ़ती जाती है, तब मोटापे में होने वाली वृद्धि निष्पक्ष रूप से निरंतर रहती है।
इस संशोधन में पाया गया है कि मोटापे से परेशान बच्चों में (23.5 प्रतिशत) साधारण बच्चों की तुलना में (14.4 प्रतिशत) और अधिक वज़नदार बच्चों की तुलना में (14.8 प्रतिशत) रिश्तों से जुड़ी समस्याएं अधिक होती हैं। इसके विपरीत, जिन बच्चों में अध्ययन अक्षमता और दुख या उदासी जैसी समस्याओं की वजह से भावनात्मक अशांति हैं उनमें (16.9 प्रतिशत) मोटापा बढ़ने की मात्रा, ऐसी समस्याएं ना होनेवाले बच्चों की तुलना में (13.7 प्रतिशत) अधिक होती हैं।
इस अध्ययन के विषय में नोवा स्पेशालिटी हॉस्पिटल, मुंबई के वरिष्ठ बैरिऐट्रिक और मेटाबॉलिक सर्जन डॉ.रमन गोएल ने टिप्पणी करते हुए कहा, मुझे विश्वास है कि इस अध्ययन में भारत की वर्तमान स्थिती भी स्पष्ट की गयी है। माता-पिता द्वारा बढ़ता हुआ दबाव, समाज द्वारा की जानेवाली अपेक्षाएं और मोटापे से संबंधित शारीरिक सीमाओं की वजह से अधिकतम बच्चें को आत्म गौरव और मनोविज्ञान से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं । यह बच्चें उपवास,अपरिमित कसरत और फिर से वज़न बढ़ने की भारी संभावना इस चक्र से गुज़रते रहते हैं। यह बच्चें भावनात्मक आघातों से परेशान होते हैं और उन्हें तुरंत मनोवैज्ञानिक आधार प्राप्त करने की ज़रूरत होती है, जो हमारे समाज में कहीं दिखाई नहीं देता है।
प्राध्यापक वाह्लक्विस्ट ने कहा, हमनें देखा कि लड़कें रिश्तों से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे थें और लड़कियां अयोग्य वर्तन से जुड़ी समस्या से परेशान थीं। लेकिन, ऐसा नहीं है कि, मोटापा होने से बच्चें भावनात्मक अशांति की समस्या से अपने आप जुड़ जाएंगे। जब मोटापा के साथ मनोवैज्ञानिक समस्याएं होती हैं, तब अगली कक्षाओं की ओर बढ़ने के साथ यह समस्याएं भी प्रबल होती जाती हैं। इन संशोधकों ने कहा कि इस अध्ययन में प्राप्त किए गए निष्कर्षों के अनुसार बच्चे कि विकास प्रक्रिया के दरम्यान शारीरिक रचना और भावनाओं में मिश्रित और कठिन पारस्परिक प्रभाव रहता है।
प्राध्यापक वाह्लक्विस्ट ने कहा, बच्चों में शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का यह संयुक्त रूप विकसित होने का खतरा शुरूआती स्तर पर पहचानने से कुछ ऐसे उपाय किए जा सकते हैं, जिनकी मदद से उम्र के अगले पड़ाव में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अधिक गंभीर समस्याएं होने से टल सकती हैं।
मोटापा और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जुड़े बच्चों के स्वास्थ्य पर अधिक अध्ययन और संशोधन करने की ज़रूरत इन परिणामों की वजह से स्पष्ट हो गयी है। इस अध्ययन के परिणाम हाल ही में रिसर्च इन डिवलपमेंटल डिसैबिलिटी इस पत्रिका मे प्रकाशित किए गए थे।
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