बच्चों को क्यों होती है टीबी? जानें इसके कारण और बचाव के तरीके

टीबी एक बहुत ही खतरनाक रोग है। यह जैनेटिक और लाइफस्टाल दोनों से संबंधित हो सकता है। बड़ों के साथ ही आजकल बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यदि गौर से देखा जाए तो इससे बचा जा सकता है। क्योंकि यह एक ऐसा रोग है जिसके लक्षण शुरुआत में ही दिखने लगते हैं।
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बच्चों को क्यों होती है टीबी? जानें इसके कारण और बचाव के तरीके

टीबी एक बहुत ही खतरनाक रोग है। यह जैनेटिक और लाइफस्टाल दोनों से संबंधित हो सकता है। बड़ों के साथ ही आजकल बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यदि गौर से देखा जाए तो इससे बचा जा सकता है। क्योंकि यह एक ऐसा रोग है जिसके लक्षण शुरुआत में ही दिखने लगते हैं। बच्चों में टी.बी. के अधिकतर मामले सांस तंत्र से परे अन्य अंगों में ज्यादा होते हैं, जिसे मेडिकल भाषा में एक्सट्रा पल्मोनरी टी.बी. कहते हैं। इसी कारण बच्चों में टी.बी. की पहचान थोड़ी मुश्किल हो जाती है। बच्चों में टी. बी. अपने ही परिवार के किसी व्यक्ति से लगती है। टी.बी. के जीवाणु उस व्यक्ति की खांसी के साथ हवा में उड़कर बच्चे के फेफड़े से होते हुए शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच जाते हैं।

टी.बी. के प्रकार

टी.बी. के जीवाणुओं का फैलाव दो तरह से होता है। पहला लसीका प्रणाली या लिमफैटिक सिस्टम से और दूसरा रक्त से। लिमफैटिक सिस्टम के जरिये होने वाले फैलाव को लसीका ग्रंथि रोकने का प्रयास करती है और इस प्रयास में स्वयं संक्रमित हो जाती है। फेफड़े के अंदर ही संक्रमित ग्रंथि को प्राइमरी काम्प्लेक्स कहते हैं और गर्दन या बगल में संक्रमित होने पर सरवाइकल एक्सीलरी लिमफैडिनाइटिस, पेट की ग्रंथि के संक्रमित होने पर मेसेन्ट्रिक लिमफैडिनाइटिस की समस्या पैदा होती है।

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अगर लसीका ग्रंथि से जीवाणु बच कर निकल जाएं, तो वे आगे के अंगों को संक्रमित कर देते हैं। दिमाग में संक्रमण को- टी. बी. मेनिनजाइटिस, फेफड़े की झिल्ली में संक्रमण को- प्ल्युरिसी, आंतों की टी. बी. को कोक्स एब्डोमेन कहते हैं। टी. बी. का इंफेक्शन त्वचा पर भी हो सकता है। यानी कोई भी ऐसा अंग नहीं बचता, जो टी. बी. से संक्रमित न हो। कारण और जांचें: लंबे समय तक बुखार रहना, भूख की कमी या संक्रमित अंग से संबंधित लक्षणों के प्रकट होने पर डॉक्टर को तपेदिक का शक शुरू होता है। संबंधित अंगों का एक्सरे, सी टी स्कैन या एम. आर. आई. और उस अंग से संबंधित द्रव्य या पस की जांच से तपेदिक का पता चलता है। बच्चों की टी.बी. की जांच में मानटूक्स टेस्ट बहुत महत्व रखता है।

बच्चों में टीबी का इलाज

तपेदिक की पुष्टि होने पर डॉक्टर की सलाह लेकर बच्चे का पूरे समय तक इलाज अवश्य करवाएं। तपेदिक एक राष्ट्रीय समस्या है। टी. बी. की पुष्टि होने पर जिला टी.बी. अधिकारी को सूचित करना आवश्यक है। इस अधिकारी की मदद से पूरा इलाज सफलतापूर्वक नि:शुल्क किया जा सकता है।

याद रखें यह टिप्स

टी.बी. का फैलाव फेफड़े की टी.बी. के मरीज के जरिये ही हो सकता है अन्य किसी प्रकार से नहीं। मरीज के बलगम में जब तक टी.बी. के जीवाणु मौजूद हों, तब तक बच्चे को टी.बी. से ग्रस्त परिवार के सदस्य से दूर रखें, उसके बाद बेवजह अलग न करें।

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