Newborn Baby Blindness Causes: गर्भधारण करने के 9 महीने पूरे होने से पहले बच्चे का जन्म होना प्रीमेच्योर बर्थ कहलाता है। बच्चों का समय से पहले जन्म होना बहुत गंभीर माना जाता है। इसकी वजह से बच्चे जन्म से ही कई तरह की परेशानियों का शिकार भी हो जाते हैं। समय से पहले जन्म होने पर बच्चों में अंधेपन का खतरा भी बहुत जयादा बढ़ जाता है। हर मामले में समय से पहले बच्चे के जन्म के पीछे अलग-अलग कारण जिम्मेदार होते हैं। प्रीमेच्योर बर्थ यानी समय से पहले शिशु की डिलीवरी की वजह से बच्चों में अंधेपन का खतरा बढ़ जाता है। एक शोध के मुताबिक कम उम्र के बच्चों में अंधेपन का प्रमुख कारण ही समय से पहले जन्म या रेटिनोपेथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (ROP) है। आइए विस्तार से जानते हैं इस स्थिति के बारे में।
नवजात शिशुओं में अंधेपन का खतरा- Newborn Child Blindness
प्रीमेच्योर बर्थ के कारण नवजात शिशुओं में अंधेपन की समस्या बहुत तेजी से बढ़ी है। एससीपीएम हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शेख जफर कहते हैं, दरअसल गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास 9 महीने के भीतर होता है। 9 महीने गर्भ में पूरे होने के बाद बच्चे के शरीर में सभी जरूरी अंगों का विकास हो जाता है। कुछ मेडिकल स्थिति या अन्य कारणों के वजह से जब बच्चे का जन्म समय से पहले हो जाता है, तो उसके शरीर के अंग सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते हैं। ऐसे बच्चे जिनका जन्म 9 महीने से पहले होता है उनके शरीर का वजन भी बहुत कम होता है और आंख का सही ढंग से विकास नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चों की आंख का रेटिना सही ढंग से विकसित नहीं होता है, जिसकी वजह से उसे इस स्थिति का सामना करना पड़ता है।
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नवजात बच्चों में अंधेपन का कारण- Newborn Baby Blindness Cause in Hindi
प्रीमेच्योर बर्थ के कारण बच्चों में अंधेपन का प्रमुख कारण आंख और रेटिना का सही ढंग से विकास न हो पाना है। इस समस्या को Retinopathy of prematurity भी कहते हैं। शोध और अध्ययन कहते हैं कि गर्भ में शिशु की आंख और रेटिना का विकास गर्भावस्था के 20वें हफ्ते से 40वें हफ्ते के भीतर होता है। ऐसे में अगर 40 हफ्ते से पहले ही शिशु का जन्म हो जाता है, तो उसमें अंधेपन की समस्या का खतरा बढ़ जाता है।
कैसे करें बचाव?
बच्चों को जन्म के समय से अंधेपन की समस्या से बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह सही समय पर ली जाए। सही समय पर एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह नहीं लेने से शिशु की स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है। ज्यादातर मामलों में जागरूकता की कमी और और जानकारी के अभाव के कारण बच्चे जन्म पर्यंत इस समस्या का शिकार बने रहते हैं। सबसे पहले समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की स्क्रीनिंग कर इस स्थिति का पता लगाया जाना और फिर एक्सपर्ट डॉक्टर की देखरेख में इलाज लेने से आप इस समस्या से बच्चे को बचा सकते हैं।
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