बढ़ते हुए बच्चों के आसपास का माहौल उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। इसलिए इश समय अपने बच्चें पर ध्यान देना बहुत आवश्यक होता है स्कूल और आस पास के बच्चों के साथ उनका आत्मविश्वास डगमगाता है तथा वह पढ़ाई तथा जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ जाता है। बच्चों का आत्मविश्वास कैसे बढ़ाया जाए तथा उसका व्यक्तित्व कैसे निखारा जाए, आइए हम देखते हैं।
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शालीन भाषा का प्रयोग करें
बच्चों से हम हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए ही वार्तालाप करें। इससे बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। हमको हमेशा बच्चों से मित्रवत् व्यवहार ही करना चाहिए, न कि शत्रुवत्। जैसा हम आचरण करते हैं, बच्चे भी वैसा ही सीखकर अपने व्यवहार में ढालते हैं अत: शालीनता सर्वोपरि है। यह तयप्राय: है कि जैसी भाषा का हम बार-बार प्रयोग करते हैं, वैसी की वैसी ही भाषा एक विज्ञापन ( मनोविज्ञान) के प्रचार अभियान की तरह बच्चों के मन-मस्तिष्क में घर करती जाती है तथा बच्चा धीरे-धीरे उसे ही सच मानने लग जाता है एवं उसकी वास्तविक प्रतिभा कहीं खो-सी जाती है अत: उसे कुंठित न करें।
ढीठ न बनाएं बच्चों को
ज्यादा डांटने-फटकारने, मारने-पीटने से बच्चा ढीठ बन जाता है फिर उस पर किसी बात का असर नहीं होता है, क्योंकि उसे पता रहता है मैं अच्छा या बुरा जो भी करूं, बदले में मुझे डांट-फटकार ही मिलेगी, प्यार-दुलार नहीं। ऐसी स्थिति में बाद में आगे चलकर बच्चा विद्रोही बन जाता है, जो कि समाज के लिए काफी घातक सिद्ध होता है।
अलग-अलग मनोविज्ञान
बच्चे और बड़ों का मनोविज्ञान अलग-अलग होता है। मनोविज्ञान यानी सोचने-समझने- विचारने का तरीका। अगर बड़े यह सोचें कि बच्चे भी मेरा ही अनुसरण करें व मेरी ही दिखाई राह पर चलें, व मेरे जैसा ही बने तो यह बड़ों का हठाग्रह व दुराग्रह ही कहा जाएगा। चूंकि बड़े समयानुसार अनुभव व परिपक्वता से लबरेज होते हैं अत: बच्चों से भी वही अपेक्षाएं करना नितांत ही गलत कहा जाएगा। स्वयं 'अपने जैसा' बच्चों को बनाने का हठीला प्रयास ना करें। यह एक प्रकार से बच्चों पर अन्याय ही कहा जाएगा।
बच्चे की भावनाओं को समझे और समस्याओं को दूर करने की कोशिश करें। इससे आप तो जीवन में खुश रहेंगे ही आपके बच्चें की परवरिश भी सामान्य बच्चों की तरह ही होगी।
Image Source-Getty
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