आस्टियोपोरोसिस नामक खतरनाक बीमारी को खामोश बीमारी के नाम से भी जाना जाता है, यानी कि साइलेंट किलर। ये बीमारी हड्डियों से संबंधित है। इस बीमारी का सबसे बड़ा नुकसान है कि जब तक हड्डिया मुलायम होकर टूटने नहीं लगती, तब तक इसके लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है। इसीलिए इसको साइलेंट किलर यानी खामोश बीमारी कहा जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस कई अन्य बीमारियों से मेल खाती है लेकिन इसकी पहचान हो पाना फिर भी मुश्किल होता है। आइए जानें साइलेंट बीमारी आस्टियोपोरोसिस के बारे में।
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- यह तो सभी जानते हैं बढती उम्र के साथ हड्डियाँ कमजोर होती चली जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर आठ पुरुषों में से एक पुरुष को और तीन महिलाओं में से एक महिला को ओस्टियोपोरोसिस की समस्या है। यह आंकड़ा ही इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
- ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी होने पर हड्डियां कमजोर हो जाती है और उनमें शक्ति नहीं रह जाती, नतीजन वे टूटने लगती हैं। ऐसे में हड्डियां छोटी-मोटी चोट या गिरने के दौरान भी टूटने लगती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्यों कि ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी के दौरान हड्डियां मुलायम हो जाती है।
- आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि हड्डियां प्रोटीन, कोलेजन और कैल्शियम से मिलकर बनी होती हैं। इन्हीं तत्वों से हड्डियों को मजबूती मिलती है, ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस होने पर हड्डियों को नुकसान पहुंचने लगता है।
- ऑस्टियोपोरोसिस के दौरान रीढ़ की हड्डी, नितंब, पसली और कलाई की हड्डियों में फ्रेक्चर होना आम बात हो जाती है, हालांकि इसके अलावा भी शरीर की बाकी हड्डियों में भी फ्रैक्चर होने की आशंका बढ़ जाती है।
- आमतौर पर 35 साल की उम्र के आस-पास हड्डियां कमजोर होनी शुरू हो जाती है और ऐसे में कैल्शियम की कम खुराक हड्डियों के घनत्व को और भी कम कर देती हैं, जिससे ये कमजोर होने लगती हैं।
- ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए डॉक्टर्स शुरू से ही यानी 30 की उम्र के बाद खाने में कैल्शियम और विटामिन डी मात्रा अधिक बढ़ाने की सलाह देते हैं।
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ऑस्टिपोरोसिस होने के कुछ कारण है जैसे
- कमजोर शरीर और कद छोटा होना इसका महत्वपूर्ण कारण है।
- जरूरत से ज्यादा धूम्रपान करना और शराब का सेवन।
- दिनचर्या में व्यायाम और योगा इत्यादि को शामिल न करना।
- खाने में विडामिन डी की मात्रा कम लेना और कैल्शियम युक्त पदार्थ न लेना।
- संतुलित आहार न लेना।
- मासिक धर्म नियमित न होना या जल्दी मीनोपोज हो जाना।
- आर्थराइटिस, टीबी जैसी कोई बीमारी पहले होना।
आस्टियोपोरोसिस का जल्दी पता चलने तथा समय पर उपचार शुरू कर दिए जाने से भविष्य में होने वाले फ्रेक्चर के जोखिम को कम किया जा सकता है। हालांकि अब तक ओस्टियोपोरोसिस को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। इसलिए यदि समय रहते ओस्टियोपोरोसिस के उपचार में यह ज्यादा महत्वपूर्ण इसके बचाव पर ध्यान दिया जाए तो इस बीमारी के होने की आशंका को टाला जा सकता है।