
पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या ज्यादा है। अधिकतर भारतीय लोग विटमिन डी की कमी से ग्रस्त होते हैं। यही कारण है कि उनकी हड्डियां कमजोर हो रही हैं। यहां हर दस में से लगभग चार स्त्रियों और चार में से एक पुरुष को यह समस्या घेर रही है। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रैक्चर्स की आशंका बढने लगती है। लेकिन हड्डी रातों-रात कमजोर नहीं होती, यह प्रक्रिया सालों-साल चलती है। उम्र के साथ-साथ शरीर में कई बदलाव होते हैं। 20 की उम्र में शरीर पर जो नियंत्रण होता है, वह 40 की उम्र में नहीं रह सकता।
मांसपेशियां उतनी मजबूत नहीं रहतीं, आंखें कमजोर होने लगती हैं, त्वचा चमक खोने लगती है। इसी तरह हड्डियां भी कमजोर होने लगती हैं। उम्र के साथ ही बोन मास या डेंसिटी कम होने लगती है। स्त्री-पुरुष दोनों में यह दिखाई देता है, लेकिन स्त्रियों को ऑस्टियोपोरोसिस ज्यादा परेशान करता है। इसका कारण यह है कि मेनोपॉज के बाद उनकी हड्डियों में कैल्शियम, विटमिन डी और मिनरल्स की कमी होने लगती है और इससे हड्डियों की डेंसिटी कम होने लगती हैं। प्रौढ या वृद्ध लोगों को कूल्हे, घुटने या कंधों में फ्रैक्चर्स की शिकायत होती है। ऐसा ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में ही होता है।
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क्या हैं रोग के लक्षण
- धूम्रपान या शराब की लत
- खानपान में पौष्टिकता की कमी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार ज्यादा रिफाइंड खाद्य पदार्थ जैसे सफेद चावल, मैदा, पास्ता, सफेद ब्रेड, सैच्युरेटेड या ट्रांस फैट वाले खाद्य पदार्थ भी इस समस्या को बढा रहे हैं।
- कैल्शियम और विटमिन डी की कमी।
- एस्ट्रोजन स्तर का घटना।
- कीमोथेरेपी में ओवरीज पर टॉक्सिक प्रभाव के कारण मेनोपॉज जल्दी होता है।
- एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसी बीमारी, जिसमें लडकियां खाना नहीं खा पातीं।
- क्रैश डाइटिंग, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
- लो बॉडी फैट, जो अधिक और गलत व्यायाम करने वाली स्त्रियों को हो सकता है।
- लिवर संबंधी परेशानियां, अथ्र्राराइटिस, डायबिटीज की समस्या।
- शारीरिक गतिविधियां कम होना, जैसे किसी स्ट्रोक के बाद या कोई ऐसी बीमारी, जिसमें चलना-फिरना असंभव हो जाए।
- हाइपरथायरॉयड और अत्यधिक पसीना आने की समस्या।
- ओरल स्टेरॉयड्स या एंटी-सीजर दवाओं का लंबे समय तक सेवन।
मेनोपॉज के बाद होता है अधिक खतरा
भारतीय स्त्रियों में ऑस्टियोपोरोसिस के मामले काफी देखे जा रहे हैं। यूं तो यह समस्या किसी भी उम्र में घेर सकती है, लेकिन वृद्धावस्था में इसकी आशंका अधिक रहती है। 35 की उम्र के बाद बोन डेंसिटी 0.3 से 0.5 प्रतिशत तक कम होती है। स्त्रियों में मेनोपॉज के बाद बोन डेंसिटी को मेंटेन करने के लिए जरूरी हॉर्मोन एस्ट्रोजन के स्तर में कमी आती है। ऑस्टियोपोरोसिस के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कैल्शियम व विटमिन डी की कमी इसका महत्वपूर्ण कारण है। एक और बात यह है कि दर्द के अलावा शुरुआत में इसके कुछ खास लक्षण नजर नहीं आते। जब बार-बार फ्रैक्चर्स होने लगते हैं, तब पता चलता है कि ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हो चुकी है। मेनोपॉज के बाद 5 से 10 वर्षो में स्त्रियों की बोन डेंसिटी में हर साल 2 से 4 प्रतिशत तक कमी आती है। यानी 55-60 वर्ष की आयु तक बोन डेंसिटी 25-30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसी कारण कुछ स्त्रियां हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी लेती हैं, लेकिन इसका असर भी मेनोपॉज के पांच-छह वर्ष तक ही दिखता है।
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ऐसे करें बचाव
- विटमिन डी का सबसे बडा स्रोत सूरज है। इसके लिए रोज सुबह कम से कम 15 मिनट तक धूप में जरूर बैठें।
- आहार में कैल्शियम की मात्रा का ध्यान रखें। प्रतिदिन 1000 मिलीग्राम कैल्शियम स्त्री-पुरुष दोनों के लिए जरूरी है।
- अगर आपकी उम्र 35 की हो चुकी है तो साल में एक बार कैल्शियम व बोन डेंसिटी टेस्ट जरूर कराएं। इसके अलावा कंप्लीट हेल्थ चेक-अप कराते रहें। डायबिटीज या अन्य लाइफस्टाइल डिजीज से बचें।
- खानपान पौष्टिक होना चाहिए। विटमिन सी, डी, ई, एंटी-ऑक्सीडेंट्स और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स में ऑस्टियोपोरोसिस से लडने के गुण छिपे हैं।
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। सुबह की ब्रिस्क वॉक, जॉगिंग, डांस, वेट ट्रेनिंग और स्विमिंग से हड्डियों को मजबूती प्रदान की जा सकती है।
- 30 की उम्र के बाद रोज कम से कम 70 मिनट का वर्कआउट जरूरी है। जिम जाते हों तो किसी कुशल ट्रेनर की देखरेख में ही एक्सरसाइज शुरू करें।
- नशे, धूम्रपान से दूर रहें और कैफीन का सेवन कम करें। दिन भर में तीन कप से अधिक कॉफी या चाय का सेवन न करें।
- मलाई-रहित दूध व दही का सेवन करें। दुग्ध उत्पाद कैल्शियम के नैचरल स्रोत हैं।
- प्रोटीन की अधिकता से बचें। स्त्रियों के लिए नियमित लगभग 50 ग्राम और पुरुषों के लिए 65 ग्राम प्रोटीन पर्याप्त है। इससे अधिक प्रोटीन से कैल्शियम के अवशोषण में परेशानी आ सकती है।
- यदि कैल्शियम की कमी है तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम सप्लीमेंट्स ले सकते हैं, लेकिन इसे विटमिन डी के साथ लेना ही फायदेमंद होगा।
- तनाव, दबाव व अवसाद से बचें। तनावग्रस्त व्यक्ति अपनी सेहत और खानपान के प्रति लापरवाह हो जाता है। इससे बीमारी का निदान मुश्किल हो जाता है।
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