
कहीं गैस का चूल्हा खुला तो नहीं रह गया। या मैंने दरवाजे ठीक से बंद किये हैं या नहीं। कभी-कभार अगर ऐसा होता है, तो कोई बा नहीं, लेकिन बार-बार लगातार ऐसा करना अच्छी बात नहीं। आप बार-बार हाथ धोते रहते हैं और आपकी यह आदत रोके नहीं रुकती। अगर आप लगातार ऐसे विचारों से जूझ रहे हैं तो संभव है कि आप ऑबसेसिव-कंपलसिव डिस्ऑर्डर (ओसीडी) के शिकार हों।
ऑबसेसिव-कंपलसिव डिस्ऑर्डर (ओसीडी) क्या है?
ओसीडी ऐसी मानसिक परेशानी है, जिसमें अनियंत्रित विचार और व्यवहार हमें घेर लेते हैं। हम एक ही चीज बार-बार करने लगते हैं। ऑबसेसिव-कंपलसिव डिस्ऑर्डर में कोई एक विचार दिमाग में आकर अटककर रह जाता है। उदाहरण के लिए आप बार-बार यह जांचते रहते हैं कि फ्रिज या लाइटें बंद हैं या नहीं। साफ होने के बावजूद बार-बार हाथ धोते हैं या अपने डेस्क को कई बार अरेंज करते हैं।
आप खुद को कई बार यह सब करने से रोकना भी चाहते हैं, लेकिन ऐसा कर नहीं पाते। कई बार हमें व्यवहार या आदत से जुड़ी ऐसी मजबूरियां घेर लेती हैं, जिससे हम एक ही काम बार-बार करते हैं। लेकिन, उस काम को बार-बार करने के बाद भी आपको राहत नहीं मिलती है।
लेकिन, ओसीडी जैसे मानसिक विकार के साथ कई अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
स्क्रिजोफ्रेनिया
ओसीडी हालांकि बहुत सामान्य रोग है, लेकिन यह स्वास्थ्य को किसी खास प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता। हां, इसमें आप कई कामों को बार-बार करते हैं और इससे चिड़चिड़ापन जरूर हो सकता है। लेकिन, ओसीडी के इलाज के हर मामले में यह बात निकलकर सामने आयी है कि इससे स्क्रिजोफनिया होने का खतरा बढ़ जाता है। जामा साइक्रेट्री में प्रकाशित शोध के अनुसार जिन माता-पिता को ओसीडी है उनके बच्चों को स्क्रिजोफ्रेनिया होने का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि ओसीडी से जुड़े अन्य जोखिक कारकों के लिए अभी और जांच करने की जरूरत है।
ईटिंग डिस्ऑर्डर
ओसीडी के पीडि़त 13 फीसदी लोगों को ब्लूमिया नर्वोसा और एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसे ईटिंग डिस्ऑर्डर होने का खतरा होता है। विशेषज्ञों ने इन दोनों के बीच समानताओं का भी अध्ययन किया। अगर आप ऐसी किसी समस्या से जूझ रहे हैं तो बेहतर है कि आप किसी ऐसे मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करें, जो दोनों परिस्थितियों से निपटने में सक्षम हो।
अवसाद
एफेक्टिव डिस्ऑर्डर में प्रकाशित जर्नल में बताया गया कि ओसीडी से पीडि़त मरीजों में अवसाद होने का खतरा, उन लोगों की अपेक्षा दस गुना होता है, जिन्हें ओसीडी नहीं है। अवसाद के लक्षणों में नाउम्मीदी और लाचारी, रोजमर्रा के कामों में रुचि न हो तथा वजन व भूख में बदलाव होना शामिल होता है। कुछ लोगों में अवसाद के दौरान ओसीडी के लक्षण और अधिक मुखर हो जाते हैं। ओसीडी के साथ अवसाद का मेल ईलाज को और मुश्किल बना देता है। जर्नल ऑफ क्लीनिकल साइक्रेट्री में छपे एक शोध के अनुसार जिन लोगों को केवल ओसीडी होता है, वे उन लोगों जिन्हें ओसीडी और असवाद दोनों होते हैं के मुकाबले, इलाज के बाद जीवन के प्रति बेहतर रवैया रखते हैं।
नशीले पदार्थों का सेवन
ओसीडी एक प्रकार का एन्जाइटी डिस्ऑर्डर है। और ऐसे में व्यक्ति के नशीले पदार्थों का सेवन करने का खतरा बढ़ जाता है। एंजाइटी एंड डिप्रेशन एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के अनुसार एंजाइटी डिस्ऑर्डर से पीडि़त 20 फीसदी लोगों में एल्कोहल एब्सूय डिस्ऑर्डर भी होता है। यानी उन्हें शराब की लत होती है। शराब और नशे का आदी हो चुका व्यक्ति कई बार स्वयं ही अपना ईलाज करने लगता है, लेकिन इससे समस्या और गंभीर हो सकती है।
दवाओं, व्यवहारगत थेरेपी और साइकोथेरेपी के जरिये ओसीडी का इलाज किया जा सकता है। लेकिन इसके संकेतों को समझना जरूरी है ताकि सही समय पर सही ईलाज किया जा सके।
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