बचपन में मोटापे के शिकार बच्चों में अस्थमा और फेफड़ो के दूसरे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल शुरुआती 3 सालों में बच्चों के तमाम अंगों का विकास होता है। अगर बचपन में ही बच्चे मोटापे का शिकार हो जाते हैं, तो उनके फेफड़ों के विकास पर असर पड़ता है। ऐसे में 10 साल की उम्र से पहले ही बच्चों को अस्थमा जैसी बीमारियां घेर लेती हैं। फेफड़े के इन रोगों के कारण बच्चों में जल्दी थक जाने, सांस फूलना और आलस के लक्षण दिखाई देते हैं।
हाल में नीदरलैंड्स के एरास्मुस यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि जिन शिशुओं का वजन बचपन में तेजी से बढ़ता है वे बच्चे अस्थमा या लोअर लंग फंक्शन जैसी बीमारियों का शिकार 10 साल की उम्र से पहले ही हो जाते हैं। यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मेरिबेल कासस ने कहा कि शिशु का बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई जितने ज्यादा समय तक नार्मल रहेगा, फेफड़े के रोगों का खतरा उतना ही कम होगा।
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कासस ने आगे कहा कि शोध के परिणामों से इस बात की पुष्टि हो गई है कि शिशु के शुरुआती 3 वर्ष फेफड़ों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस शोध में 10 साल तक के 4,435 बच्चों को शामिल किया गया। शोध के दौरान इन सभी बच्चों के जन्म से 3 साल की उम्र तक वजन और लंबाई पर नजर रखी गई और पाया गया कि ज्यादा बीएमआई वाले बच्चों को 10 साल से पहले फेफड़े के रोग हो गए।
बच्चों में अस्थमा के लक्षण
बच्चे को होने फेफड़ों की समस्या में अस्थमा सबसे ज्यादा आम कारण है। बच्चों में अस्थमा के निम्न लक्षण हो सकते हैं।
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- सांस लेने में कठिनाई होती है।
- सीने में जकड़न जैसा महसूस होता है।
- बच्चा जब साँस लेता है तब एक घरघराहट जैसा आवाज होती है।
- साँस तेज लेते हुए पसीना आने लगता है।
- बेचैनी-जैसी महसूस होती है।
- सिर भारी-भारी जैसा लगता है।
- जोर-जोर से साँस लेने के कारण थकावट महसूस होती है।
जरूरी हैं ये सावधानियां
अगर आपका बच्चे लंबे समय से खांसी के परेशान है तो उसकी अस्थमा की जांच जरूर कराएं। हर बच्चे में लक्षण एकसमान नहीं होते है, लेकिन अस्थमा का सामना कर रहे बच्चों में हल्के से गंभीर लक्षणों के उतार चढ़ाव दिख सकते है। कुछ बच्चों को लंबे समय के अंतराल के बाद अस्थना के लक्षण दिख सकते है और अस्थमा का अटैक आ सकता है।
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