
मां सिद्धिदात्री नवमी तिथि पर मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाया जाता है, जैसे- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान किया जाता है। यही वजह है कि लोग नवमी के दिन कन्याओं को हलवा और चने का भोग लगाते हैं। इससे माता दुर्गा का आर्शिवाद मिलता है, इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है। इसके अलावा निर्बाध पशुओं का वध करते हुए जो भगवती को भेंट देते हैं और उससे बचने के लिए जगदंबा जी हो हलुआ प्रदान किया गया। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हलवा-चना कैसे बनाएं।
हलवा बनाने की सामाग्री
सूजी
देशी घी
चीनी
काजू
किशमिश
बादाम
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हलवा बनाने की विधि
सबसे पहले कढ़ाई को हल्की आंच पर रख दें। उसमें सूजी के मुताबिक घी डालें। घी में सूजी डालकर अच्छे से भूनें, जब वह ब्राउन होने लगे तो चीनी और पानी डालकर पकाएं। जब सूजी ठीक से पक जाए और हलवा रवादार हो जाए तो गैस बंद कर दें और उसमें ड्राई फ्रूट्स डालकर गर्मा गर्म सर्व करें।
चना बनाने की सामाग्री
काले चने
देशी घी
हल्दी
सूखा धनिया
लाल मिर्च, जीरा
गरम मसाला
अमचूर पाउडर
नमक
चना बनाने की विधि
आमतौर पर नवरात्र में कन्याओं को काले चने का भोग लगाते हैं। इसे बनाने के लिए सबसे पहले एक दिन पहले रात में ही चने को भिगो दें। अगले दिन उन्हें कुकर में एक या दो सीटी तक उबालें, जब तक वह सॉफ्ट न हो जाएं। जब यह चने ठीक से उबल जाएं तो उन्हें चावल छानने वाली चलनी में निकालें और पानी को निथार लें। इसके बाद एक कढ़ाई में देशी घी लें और गर्म करें। जब घी गर्म हो जाए तो उसमें जीरा, हल्दी, सूखा धनिया और चले को डालकर चलाएं। एक मिनट बाद मिर्च, नमक, मसाला, आमचूर मिलाकर गैस बंद कर दें। हलवा-चने के साथ आप पूड़ी का भी भोग लगा सकते हैं। पूड़ी देशी घी में तलकर बना सकते हैं।
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स्वास्थ्य के लिए भी है लाभदायक
ज्योतिष के अनुसार गुरू बृहस्पति सबसे अधिक वयोवृद्ध एवं सभी नक्षत्रों द्वारा पूजनीय हैं। पूजा पाठ भक्ति में यदि इनकी अनुकंपा मिला जाए तो व्यवसाय, संबंधी, स्वास्थ्य संबंधी, लाभ होने की संपूर्ण आशाएं बलवती हो जाती है। एवं गृह प्रवेश भी शांत होने लगते है और घर में सभी को सद्बुद्धि प्राप्त होते हुए सफलता के क्षेत्र प्रशस्त हो जाते हैं और जितने भी वक्री और पीड़ादायक ग्रह हैं वह सब बृहस्पति की दुष्टि पड़ने से शांत हो जाते हैं और अपनी जरूर दृष्टि के कारण पीड़ा नहीं दे पाते इसलिए भी चने का प्रसाद अनिवार्य किया गया है। हर दृष्टि हर प्रकार की सोच के अनुसार ऋषियों ने उचित रूप से ऐसे भोग की व्यवस्था ही। जब तक चने के साथ हलुआ न हो भोग अधूरा है।
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