लिवर हमारे पाचन तंत्र से आने वाले खून को छानता है और उसके बाद उस खून को शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचाता है। अगर लिवर अपना काम ठीक से नहीं कर पाता है तो उसका बुरा असर व्यक्ति के पाचन तंत्र और शरीर के अन्य सभी अंगों पर पड़ता है। लिवर हमारे शरीर में उन सभी कामों को पूरा करता है, जो अन्य अंगों के ठीक से काम करने के लिए जरूरी होते हैं।
लिवर, दिमाग के बाद शरीर का दूसरा सबसे बड़ा ठोस अंग है, जो अन्य सभी मुश्किल भरे काम करता है। लिवर रसायनों को डिटॉक्सीफाय करता है और दवाओं को मैटाबोलाइज़ करता है।
इसके अलावा लिवर पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिवर भोजन पचाने के लिए बाईल बनाने के अलावा, ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करता है व शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है और कॉलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य बनाए रखने में मदद करता है।
लिवर की बीमारियों से बचने और इनके प्रबंधन के लिए दिल्ली स्थित अपोलो हॉस्पिटल के पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएन्ट्रोलोजिस्ट और हेपेटोलोजिस्ट के सीनियर कन्सलटेन्ट डॉ. अनुपम सिब्बल ने कुछ सुझाव दिए हैं, जो कि इस प्रकार हैं।
- प्रत्येक बच्चे को जन्म के तुरंत बाद हेपेटाइटिस बी का टीका लगाना चाहिए।
- रक्त और रक्त उत्पादों के इस्तेमाल से पहले हेपेटाइटिस बी और सी के लिए इसकी जांच की जानी चाहिए। जांच के जरिए यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि खून में किसी तरह का संक्रमण न हो।
- साफ पानी ही पीना चाहिए।
- कच्चे फलों और सब्ज़ियों के इस्तेमाल से पहले उन्हें अच्छी तरह से धोना चाहिए।
- जब भी संभव हो हेपेटाइटिस ए का टीका लगवाना चाहिए।
- लिवर की ज़्यादातर बीमारियों में अगर प्रारंभ में ही उपचार मिल जाए तो इसके परिणाम अच्छे रहते हैं और मरीज़ को भविष्य में होनी वाली परेशानियों और ट्रांसप्लान्टेशन की ज़रूरत से बचाया जा सकता है।
- लिवर के मरीज़ को डॉक्टर की सलाह से उचित आहार को सेवन करना चाहिए।
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आरएण्डडी, एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के एडवाइज़र एवं मेंटर डॉ. बी.आर. दास का कहना है कि लिवर की ज़्यादातर बीमारियां जैसे वायरल हेपेटाइटिस, एल्कॉहल, ओबेसिटी (नॉन-एल्कॉहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़) और फॉल्टी इम्यून सिस्टम (यानि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस) संक्रमण के कारण होती हैं । ये रोग धीरे-धीरे बढ़ते हुए लिवर सिरहोसिस का रूप ले लेते हैं और अंत में लिवर फेलियर तक पहुंच जाते हैं।
उन्होंने कहा, "भारत में ओबेसिटी यानि मोटापे, शराब के बढ़ते सेवन और कुछ मामलों में जीवन की अनहाइजीनिक परिस्थितियों के चलते लिवर रोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। लिवर रोगों के इलाज में सबसे बड़ी बाधा यह है कि इसके लक्षण बहुत देर से दिखाई देते हैं, जिसके चलते रोग का प्रबंधन और इलाज करना मुश्किल हो जाता है। ज़्यादातर बीमारियों की तरह समय पर निदान और रोकथाम के द्वारा स्वस्थ लिवर को सुनिश्चित किया जा सकता है।"
डॉ. बी.आर. दास ने कहा, "भाग्य से लिवर एक महत्वपूर्ण अंग है। लिवर रोगों के लक्षण बहुत देर से दिखाई देते हैं, तब तक लिवर को बहुत अधिक नुकसान पहुंच चुका होता है। लिवर अपने आप को रीजनरेट भी कर सकता है। लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए डोनर के लिवर के छोटे से हिस्से की ही ज़रूरत होती है। यह छोटा सा हिस्सा धीरे-धीरे बढ़ते हुए पूरी तरह से विकसित हो जाता है और सामान्य लिवर के रूप में काम करने लगता है।"
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उन्होंने कहा हालांकि रोग की रोकथाम के उपाय करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि मरीज़ को ट्रांसप्लान्ट की ज़रूरत ही न पड़े। स्वास्थ्य की नियमित जांच के द्वारा समय पर रोग का निदान कर जल्दी उपचार किया जा सकता है और रोग को अंतिम अवस्था तक पहुंचने से रोका जा सकता है। चिकित्सा अनुसंधानों से साफ हो गया है कि गतिहीन जीवन शैली, दवाओं, शराब के सेवन के कारण लिवर रोगों की संभावना बढ़ती है।
डॉक्टरों का कहना है कि लिवर बिना रुके काम करता है और अक्सर इसमें किसी भी तरह की खराबी के लक्षण जल्दी से दिखाई नहीं देते। लिवर रोगों के आम लक्षण हैं आंखों का पीला पड़ना, पेशाब का रंग पीला होना, भूख न लगना, मतली और उल्टी। 100 से ज़्यादा ऐसी बीमारियां हैं जिनका असर लिवर पर पड़ता है। अगर आपको पेट के आस-पास सूजन, पैरों में सूजन, वज़न में कमी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
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