
यदि आप एक स्वस्थ संतुलित डाइट फॉलो कर रहे हैं तो उसमें से फैट को पूरी तरह हटाना बेकार है। कुछ लोग पूरी तरह फैट को हटा देते हैं लेकिन ये भी सेहत के लिए सही नहीं है। आजकल, लोग फैट फ्री या जीरो फैट डाइट अपना रहे हैं। लेकिन ऐसी कुछ बीमारियां भी हैं जिनमें मरीजों को अपने आहार में फैट की मात्रा कम रखनी पड़ती है। इन बीमारियों में पैनक्रिएटाइटिस, कोलेसिस्टेक्टॉमी (पित्ताशय सर्जरी) आदि शामिल हैं। आज हम आपको लो फैट फास्फोरस डाइट के बारे में बता रहे हैें। इनके बारे में पढ़ते हैं आगे...
जानें कौन से हैं लो फैट आहार
फैट एक माइक्रो न्यूट्रिएंट्स है, जो मानव शरीर के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन हाई-फैट डाइट से दूरी बनानी चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। ऐसे में आपको लो फैट आहार के बारे में पता होना चाहिए।
लो-फैट आहार
- हरी पत्तेदार सब्जियां
- फल
- सब्जियों का जूस
- होल ग्रेन
डाइट में शामिल हो फास्फोरस
फास्फोरस एक जरूरी मिनरल है, जिसका इस्तेमाल शरीर मजबूत हड्डियों और दांतों, ऊर्जा उत्पन्न करने और नई कोशिकाओं और उतकों के निर्माण के लिए किया जाता है। कैल्शियम के बाद यह मानव शरीर में दूसरा सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। कैल्शियम के समान, फॉस्फोरस को भी अवशोषण के लिए विटामिन डी की आवश्यकता होती है। आईसीएमआर आरडीए (2010) के अनुसार, फॉस्फोरस का सेवन निम्नलिखित प्रकार से करना चाहिए है:
- बच्चे (1-9 वर्ष)- 600 मिलीग्राम
- लड़के और लड़कियां (10-17 वर्ष)- 800 मिलीग्राम
- पुरुष और महिलाएं- 600 मिलीग्राम
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं- 1200 मिलीग्राम
खाने की अधिकतर चीजों में फास्फोरस मौजूद होता है लेकिन कुछ चीजों में यह प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। जैसे कि:
- सभी प्रकार के समुद्री भोजन और सार्डिन, सूखे झींगो का पेस्ट
- डेरी खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध, दही, चीज़
- बीन प्रॉडक्ट्स जैसे कि, हर प्रकार के नट्स, फलियां, बीज, बूम सूप
- माल्टेड ड्रिंक्स जैसे कि बॉर्नविटा, हॉर्लिक्स
- चॉकलेट
- ऑर्गन मीट
फास्फोरस का अधिक सेवन
शरीर में फास्फोरस की मात्रा ज्यादा हो जाए तो उपचार के लिए सही समय पर जांच कराना आवश्यक है। विभिन्न उपचार प्रक्रियाओं की मदद से खून में फॉस्फोरस के स्तर को कम किया जा सकता है। विशेषकर किडनी के मरीजों के मामले में डाइट में बदलाव करना या कम फॉस्फोरस वाली डाइट लेना बहुत जरूरी है। इसके अलावा, कुछ खानों में फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है जैसे कि रिफाइंड तेल (राइस ब्रैन), अण्डे का सफेद हिस्सा, सेब, अंगूर, लो फैट कॉटेज चीज़।
हालांकि, फास्फोरस अधिकतर लोगों के लिए फ़ायदेमंद होता है लेकिन इसका अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए नुक़सानदेह होता है। जब खून में फॉस्फोरस की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो यह हड्डियों से कैल्शियम छीन लेता है, जिसके कारण हड्डियां कमज़ोर और नाज़ुक हो जाती हैं। फॉस्फोरस का अत्यधिक सेवन त्वचा में खुजली पैदा करता है और नसों को कड़ा कर देता है। इसके अलावा रोगियों की मांसपेशियों में ऐंठन, सुन्नता या झनझनाहट की समस्या होती है। आमतौर पर उनमें हड्डी या जोड़ों में दर्द, थकान, सांस की समस्या, एनोरेक्सिया, मिचलन, उल्टी और नींद में गड़बड़ी आदि जैसे लक्षण नजर आते हैं।
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किडनी के रोगियों में इसे उनके खून से निकालना मुश्किल होता है इसलिए उन्हें फॉस्फोरस का कम से कम सेवन करना चाहिए। यहां तक कि डॉक्टर ऐसे लोगों को फॉस्फोरस का सेवन पूरी तरह बंद करने की सलाह भी दे सकता है। किडनी के रोगियों को डाइट में बदलाव करने से पहले पोषण विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
ये लेख मैक्स अस्पताल, वैशाली और नोएडा की डायटीशियन प्रियंका अग्रवाल से बातचीत पर आधारित है।
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