पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम जिसे आमतौर पर पीसीओएस के नाम से जाना जाता है, एक एंडोक्राइन विकार है जिसका असर प्रजनन तंत्र पर पड़ता है, जिसके चलते अण्डे बनने की प्रक्रिया अनियमित या बंद हो जाती है। नेशनल हेल्थ पोर्टल इण्डिया के मुताबिक दुनिया में इसकी रेंज 2.2 फीसदी से 26 फीसदी है। दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र में क्रमशः 9.13 फीसदी और 22.5 फीसदी है। यह प्रजनन उम्र की 7-10 फीसदी महिलाओं को प्रभावित करता है तथा बांझपन के मुख्य कारणों में से एक है। वास्तव में यह सबसे आम हॉर्मोनल विकार है, जिससे प्रजनन वर्ग की महिलाएं प्रभावित होती हैं, किंतु तमाम महिलाएं यह जानती नहीं कि वे पीसीओएस से पीड़ित हैं।
पीसीओएस क्या है?
पॉलिसिस्टिक ओवरी सामान्य ओवरी से बड़ी होती है, जिसमें तरल से भरी कई फॉलिकल्स या सिस्ट होती हैं। इन महिलाओं में पुरूष हॉर्मोन एंड्रोजन सामान्य से अधिक मात्रा में पाए जाते हैं जिसके चलते उनमें कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे माहवारी अनियमित होना, शरीर और चेहरे पर ज़्यादा बाल आना, एक्ने या वज़न बढ़ना।
पीसीओएस के कारण गर्भधारण में आ सकने वाली जटिलताएं?
पीसीओएस से गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं जैसेः
गर्भपातः इसमें माहवारी का चक्र लम्बा हो जाता है, जिससे ओव्यूलेशन देर से होता है। जिसके चलते विकसित होता अण्डा ज़्यादा हॉर्मोनों के संपर्क में आता है और इसके खराब होने की संभावना होती है। इसके अलावा ब्लड शुगर नियन्त्रित न होने से भी गर्भपात हो सकता है, जिसमें महिला इंसुलिन रेजिस्टेन्ट हो जाती है और इंसुलिन का स्तर बढ़ने से अण्डे की गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती और गर्भपात हो सकता है।
गर्भावस्था में मधुमेहः कभी कभी महिलाएं, जिन्हें पहले कभी डायबिटीज़ न हुआ हो, गर्भावस्था में उनकी ब्लड शुगर बढ़ जाती है। यह आमतौर पर 25 से अधिक उम्रकी महिलाओं मं होता है, जिनका वज़न ज़्यादा हो, जो प्रीडायबिटिक हों या जिनके परिवार में किसी को टाईप 2 डायबिटीज़ हो। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इंसुलिन रेज़िस्टेन्ट होने के कारण यह संभावना बढ़ जाती है।
क्या सावधानी बरती जाए?
हालांकि सबसे ज़रूरी है कि आप नियमित रूप से अपने ऑब्सटेट्रिशियन और गायनेकोलोजिस्ट से सलाह लें, प्रीनेटल जांच करवाएं, ताकि किसी तरह की जटिलता को समय रहते रोका जा सके। नीचे दी गई सावधानियां बरतें:
- गर्भधारण से पहले डॉक्टर की सलाह लें, ताकि वे आपको जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव लाने के लिए बता सकें, जिससे गर्भावस्था में जोखिम कम किया जा सकता है।
- नियमित प्रीनेटल देखभाल करें।
- अपने ब्लड शुगर पर नियन्त्रण रखें।
- प्रोसेस्ड फेड, रिफाइन्ड शुगर और तले खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
- अपने आहार में फाइबर युक्त पदार्थ जैसे सब्ज़ियों, फल - सेब, आलु बुखारा, ब्रॉकली, गोभी, लीन प्रेटीन एवं साबुत अनाज शामिल करें।
- नियमित व्यायाम करें।
- शराब का सेवन कम करें, सोडियम का सेवन नियन्त्रित करें।
- ओमेगा 3 फैटी एसिड से युक्त आहार जैसे मेवे, एवेकैडो, ऑलिव ऑयल का सेवन करें, इनसे ब्लड प्रेशर नियन्त्रित रहता है।
- पीसीओएस का समय पर निदान ज़रूरी है क्योंकि इसके कारण कई अन्य समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है जैसे इंसुलिन रेज़िस्टेन्स, टाईप 2 डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, ब्लड प्रेशर बढ़ना और दिल की बीमारियां।
आज हर तीन में से एक महिला पीसीओएस से पीड़ित है। इसलिए स्वस्थ एवं सक्रिय जीवनशैली जीने की सलाह दी जाती है ताकि भविष्य में होने वाली जटिलताओं की संभावनाओं को कम किया जा सके।
लेखक: डॉक्टर दीपिका अग्रवाल ऑब्सटेट्रिशियन एवं गायनेकोलोजिस्ट, सीके बिरला हॉस्पिटल, गुरूग्राम!
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