
जीवनशैली और खान-पान में बदलाव के कारण कई तरह के रोग लोगों को घेर रहे हैं। लोगों ने हाल के कुछ वर्षों में अपने खाने में पौष्टिक चीजों की जगह फास्ट फूड्स और जंक फूड्स को तरजीह देना शुरू कर दिया है। इसके अलावा लोगों में आराम की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिसके कारण वो न तो व्यायाम करते हैं और न ही मेहनत वाले काम। इन्हीं सब कारणों से कई तरह के रोग जैसे मोटापा, डायबिटीज, हार्ट डिजीज और किडनी से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। फास्ट फूड्स में सोडियम, कैलोरी और कई हानिकारक तत्वों की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। इनके कारण किडनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है और किडनी से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती हैं। कि़डनी के गंभीर रोगों के मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है।
क्यों बढ़ रहे हैं किडनी रोगों के मरीज
किडनी से जुड़ी बीमारियों का पता ठीक समय से नहीं चल पाता है क्योंकि आदमी की किडनी आधी से ज्यादा खराब भी हो जाए, तो भी काम करती रहती है। किडनी से जुड़े रोगों का पता आमतौर पर तब चलता है जब किडनी 70 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो चुकी हो। इसीलिए किडनी के गंभीर रोगियों की संख्या हमारे देश में बहुत ज्यादा पाई जाती है। शुरुआत में रोग के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं लेकिन लोग उन्हें सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। अगर किडनी से जुड़े रोगों का इलाज ठीक समय से किया जाए, तो इसे बहुत हद तक नुकसान होने से बचाया जा सकता है।
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क्या करती है किडनी
किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है तो शरीर और खून में गंदगी जमा होने लगती है। खून में जमा इसी गंदगी को बाहर करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसे डायलिसिस यानि अपोहन कहा जाता है। किडनी यानि गुर्दा शरीर में पानी और खनिज पदार्थों जैसे सोडियम, पोटैशियम, फास्फोरस और क्लोराइड आदि का सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। जब किसी रोग या परेशानी के कारण किडनी अपना काम नहीं कर पाती है तो शरीर में यूरिया और क्रिएटिनिन जैसे अपशिष्ट पदार्थ जमा होने लगते हैं जिनकी वजह से किडनी तो प्रभावित होती ही है साथ ही साथ अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं।
गंभीर रोगों में डायलिसिस
किडनी के ज्यादा खराब होने पर इसका दो ही इलाज है। एक तो डायलिसिस और दूसरा किडनी का प्रात्यारोपण। डायलिसिस रक्त शोधन यानि ब्लड डिटॉक्सिफाई करने की एक प्रक्रिया है। गुर्दे हमारे शरीर में मौजूद गंदगी को बाहर निकालते हैं। शरीर के अंगों को ठीक से काम करने और शरीर में जरूरी पदार्थों का सामंजस्य बिठाने के लिए किडनी जीवनपर्यंत काम करती है। इसके इसी महत्वपूर्ण काम की वजह से प्रकृति ने किडनी को ऐसा बनाया है कि थोड़ी बहुत खराबी आने के बावजूद ये अपना काम करती रह सकती है और इंसान को खास परेशानी का अनुभव नहीं होता है। लेकिन जब यही किडनी 70-80 प्रतिशत तक खराब हो जाती है तब परेशानी के लक्षण दिखने लगते हैं और अगर यही किडनी 80-90 प्रतिशत तक खराब हो जाए तो डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।
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क्या है पेरिटोनियल डायलिसिस
पेरिटोनियल डायलिसिस भी खून को साफ करने की एक प्रक्रिया है जिसमें एक ट्यूब के द्वारा खून को साफ किया जाता है। इसके लिए डायलिसिस के कुछ हफ्ते पहले ही मरीज के पेट में लैप्रोस्कोपिक कील होल सर्जरी की मदद से एक मुलायम और लचीला ट्यूब डाला जाता है। पेट में एक जगह होती है जिसे पेरिटोनियम कहते हैं। इस ट्यूब की मदद से डायलिसिस सॉल्यूशन को पेरिटोनियल कैविटी तक पहुंचाया जाता है। ये सॉल्यूशन ब्लड में घुली गंदगियों को पेरिटोनियम में इकट्ठा करता रहता है। इस इकट्ठा की गई गंदगी को इसी ट्यूब के सहारे बाहर निकाला जाता है।
क्यों है आसान प्रक्रिया
पेरिटोनियल डायलिसिस आसान है क्योंकि इसके लिए न तो किसी मशीन और बिजली की जरूरत है और न ही इसके लिए अस्पताल में बार-बार जाने की जरूरत है। एक बार ट्यूब डाले जाने के बाद मरीज को थोड़ा सा प्रशिक्षण दे दिया जाए, तो वो घर और ऑफिस में कहीं भी ये डायलिसिस आसानी से कर सकता है। साथ ही इसे डायबिटीज के मरीज भी आसानी से कर सकते हैं। हीमो-डायलिसिस की तुलना में पेरिटोनियल डायलिसिस में कम पानी की जरूरत होती है। एक बार की डायलिसिस में 6-7 घंटे लगते हैं लेकिन इससे आपका काम बहुत ज्यादा डिस्टर्ब नहीं होता है।
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