OMH HealthCare Heroes Awards: 'खाना चाहिए' की टीम ने जब जरूरतमंद लोगों का पेट भरने का उठाया जिम्मा

'खाना चाहिए' टीम के स्वयंसेवकों ने स्लम और सड़कों पर रहने वाले लोगों को फूड पैकेज देने के अलावा, श्रमिक स्‍पेशल ट्रेनों में प्रवासियों को भोजन कराए। 

सम्‍पादकीय विभाग
Written by: सम्‍पादकीय विभागUpdated at: Oct 01, 2020 12:39 IST
OMH HealthCare Heroes Awards: 'खाना चाहिए' की टीम ने जब जरूरतमंद लोगों का पेट भरने का उठाया जिम्मा

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Category : Covid Heroes
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कौन : खाना चाहिए
क्या : जरूरतमंद लोगों का पेट भरने का उठाया जिम्मा।
क्यों : महामारी में लोगों को भूखा रहने से बचाया।

भूखे को भोजन प्यासे को पानी देना सबसे बड़ा पुण्य का काम है, वो भी एक ऐसे समय में जब संपूर्ण मानवजाति कोरोना महामारी से जूझ रही है। दरअसल, महामारी ने उन लोगों पर ज्यादा प्रभाव डाला है, जो दो जून की रोटी जुटाने में असमर्थ हैं। लॉकडाउन के दौरान सब कुछ बंद हो जाने की वजह से इनके सामने कई दिक्कतें आईं। हालांकि कई ऐसे संगठन रहे, जो इस मुश्किल समय में ऐसे जरूरतमंद लोगों का पेट भरने के लिए सामने आए। ये ऐसे लोग थे जिन्हें मीडिया में आने से ज्यादा लोगों को सही समय पर उचित सेवा मिले, इसकी ज्यादा चिंता थी।

ऐसा ही एक संगठन है 'खाना चाहिए', जिसे कोरोना वायरस के दौरान गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए एक पहल के रूप में शुरू किया गया था। 'खाना चाहिए' ने पिछले कुछ महीनों में लाखों लोगों का पेट भरा है। यही वजह है कि आज यह संगठन OMH Healthcare Heroes Awards में अनसंग कोविड-19 हीरो के लिए नॉमिनेट हुआ है।

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भूखे को खाना खिलाना हमेशा से ही एक नेक काम माना गया है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि कोविड-19 जैसे मुश्किल समय में यह नेक काम करना मानवता के प्रति सच्ची सेवा भाव को दर्शाता है। 'खाना चाहिए' यह केवल शब्द नहीं है, बल्कि एक भावना है जिसे एक संगठन ने महसूस किया और जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की। ‘खाना चाहिए’ की शुरुआत एक टीम के रूप में रूबेन मस्करेनहास, शिशिर जोशी, नीती गोयल, पथिक मुनि, स्वराज शेट्टी, अनिक गाडिया और राकेश सिंह द्वारा की गई। इसे लॉकडाउन लागू होने के कुछ दिन बाद यानी 29 मार्च 2020 को शुरू किया गया। शुरुआत इन्होंने 1200 फूड पैकेट से की। लेकिन इन्हें जल्दी एहसास हो गया कि इन्हें बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है। इस टीम ने लोगों को खाना खिलाने के लिए उन रेस्तरां के किचनों को इस्तेमाल किया, जो लॉकडाउन की वजह से बंद हो गये थे।     

'खाना चाहिए' टीम में सेवाभाव का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ है। मुंबई की सड़कों पर बहुत सारे लोग भूखे सो रहे थे। 'खाना चाहिए' ने एनजीओ ’प्रोजेक्ट मुंबई’ के साथ भागीदारी की और ‘हंगर मैप’ तैयार किया। उन्होंने भूखे लोगों को खाना खिलाने के लिए एक वेबसाइट खोली, ताकि लोग इस वेबसाइट पर आकर दान दे सकें। यह शायद एकमात्र ऐसा चैरिटी संगठन है, जिसने विप्रो, गोदरेज, पेटीएम जैसे दिग्गज संगठनों द्वारा कॉर्पोरेट फंडिंग के अलावा डायरेक्ट फंडिंग अभियान से लगभग 12 करोड़ रुपये जुटाए। 'खाना चाहिए' के को-फाउंडर रूबेन मस्करेनहास कहते हैं, “हमारे पास एक टीम के रूप में काम करने वाले स्वयंसेवकों की संख्या 150 से ज्यादा हैं। हमने महामारी में हर तरह की चुनौतियों का जवाब डट कर दिया। मुंबई की स्लम और सड़कों पर रहने वाले लोगों को फूड पैकेज देने के अलावा, हमने श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों से यात्रा करने वाले प्रवासियों के लिए भोजन उपलब्ध करवाये। इसके लिए हमने सीएसटी, बांद्रा और कुर्ला स्टेशनों को चुना। हमने 284 ट्रेनों के लगभग सभी यात्रियों को फूड पैकेज, पानी आदि बुनियादी चीजें दिये।”

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'खाना चाहिए' की टीम रोजाना औसतन 50,000 लोगों को फूड पैकेट देती थी। कभी-कभी यह संख्या एक लाख तक पहुंच जाती थी। अब तक, खाना चाहिए द्वारा 47 लाख को भोजन करवाया गया और 20,000 परिवारों को मासिक किराने की किट भेजी गईं। यही नहीं, जब कोर टीम के दो लोगों को कोरोना हुआ, उस दौरान भी इसे जारी रखा गया। वैसे ‘खाना चाहिए’ ने पोषण संबंधी जरूरतों को भी ध्यान में रखा। टीम में खाद्य विशेषज्ञों का एक समूह भी था, जो महामारी से बचने के लिए आवश्यक भोजन के पोषण संबंधी पहलुओं की जांच कर रहा था।  

'खाना चाहिए' को सफल बनाने में टीमवर्क, दृढ़ संकल्प और एक अच्छी सोच ने महत्वपूर्ण ने भूमिका निभाई। सोच ऐसी, जो जरूरतमंद लोगों की मुश्किलों को दूर करे और उन्हें भोजन उपलब्ध कराए। कोविड-19 में 'खाना चाहिए' की टीम का प्रयास सचमुच सराहनीय है। ये उन दूसरों के लिए मिसाल बने हैं, जो मानवता की सेवा करना चाहते हैं, लेकिन कदम आगे नहीं बढ़ा पाते। 

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