दरभंगा (बिहार) की ज्योति पासवान अब साइकल गर्ल के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। ये नाम उन्हें तब मिला जब लॉकडाउन में वह अपने बीमार पिता को 1200KM साइकिल पर बिठाकर दिल्ली से दरभंगा लेकर पहुंची। इसके बाद वह अखबार, चैनल और सोशल मीडिया पर 'साइकल गर्ल' के नाम से लोकप्रिय होने लगी। उनके साहस की चर्चा भारत ही नहीं अमेरिका तक होने लगी। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी ज्योति पासवान के साहस और इच्छाशक्ति की तारीफ की थी। सरकार और कई संगठनों ने ज्योति को सम्मानित किया साथ ही उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा भी लिया है। ज्योति की इसी साहत और दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते उन्हें जागरण ग्रुप ने सम्मान देने का निर्णय लिया है। ज्योति को OMH Healthcare Heroes Award के लिए नॉमिनेट किया गया है। उन्हें Editor's Choice के तहत नामित किया गया है।
दरअसल, ज्योति पासवान को 'मजबूरी' नहीं बल्कि 'मजबूती' के दृष्टिकोण से देखना सही होगा। ज्योति ने दिल्ली से दरभंगा तक का सफर भले ही मजबूरी में तय किया हो मगर ये उनकी मजबूत दृढ़ इच्छा शक्ति को दर्शाता है। बीमार पिता को साइकल पर बिठाकर 7 दिनों तक 1200KM की यात्रा करना आम इंसान के बस में नहीं है ये वही कर सकता है, जिसमें दृढ़ता के साथ लगन होगी। ज्योति ने OnlyMyHealth के साथ अपनी कहानी साझा की और अपनी यात्रा का वृतांत सुनाया।
आसान नहीं थी ज्योति की दिल्ली से दरभंगा की यात्रा!
कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा था। इस दौरान अधिकांश प्रवासी मजदूर महानगरों में फंसा हुआ था। जब भोजन का आभाव हुआ तो सभी शहर छोड़कर अपने-अपने गांव की ओर निकल पड़े। जिन्हें जो साधन मिला वे उसी से निकल पड़े। कुछ लोग पैदल और साइकल से ही अपने गांव की ओर चले जा रहे थे। हालांकि सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए स्पेशल श्रमिक ट्रेनें चलवाई थी। इस दौरान बिहार के दरभंगा की रहने वाली 13 साल की बेटी ज्योति पासवान चर्चा में आ गई। दरअसल, उन्होंने अपने बीमार पिता को साइकल पर बिठाकर 7 दिनों तक 1200KM की यात्रा गुरूग्राम से दरभंगा तक तय किया।
ज्योति पासवान ने अपने पिता मोहन पासवान को साइकल पर बिठाकर गुरुग्राम से अपने गांव दरभंगा के लिए निकली। यात्रा के दौरान रास्ते में उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। ज्यादा समय भूखे रहकर ज्योति ने साइकल चलाई। हालांकि, रास्ते में किसी ने खाना खिलाया तो किसी ने पानी पिलाया, मगर ज्योति ने चलती रही।
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किसी ने नहीं की मदद!
ज्योति ने बातचीत के दौरान बताया कि, रास्ते में कई ट्रक वाले थे जो लोगों को ले जा रहे थे, हमने जब मदद मांगी तो उन्होंने 6000 रूपए की मांग की। मगर हमारे पास इतने पैसे नहीं थे। मगर हमारे लिए घर जाना जरूरी था। इसलिए बाद में मैने साइकल से घर जाने का फैसला लिया। 10 मई को गुरूग्राम से चली थी और 16 मई की शाम ज्योति अपने घर पहुंची थी।
ज्योति के पिता गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते थे
ज्योति ने बताया कि उनके पिता गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते थे। ई रिक्शा उनका खुद का नहीं बल्कि किराए पर था। कुछ महीने पहले ज्योति के पिता मोहन का एक्सिडेंट हो गया था। जिससे उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी। इसी दौरान कोरोना वायरस के का कारण लॉकडाउन कर दिया गया था। इससे उनका काम ठप हो गया था।
ज्योति के पिता मोहन पासवान ने OnlyMyHealth से बातचीत करते हुए कहा कि, आज मुझे मेरी बेटी की वजह से सब लोग जानने लगे। हम इतनी गरीबी में जी रहे थे, मगर बेटी की वजह से लोग हमारी मदद के लिए आगे आए। बेटी अभी बोर्ड की परीक्षा देगी। उसे और आगे पढ़ाऊंगा। मां-बाप का सहारा सिर्फ बेटे ही नहीं होते, बेटियां भी होती हैं, जो मेरी बेटी ने कर दिखाया।
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