क्या आपको अपने बचपन के दिन याद हैं, जब आपके माता-पिता हजार बार कहते थें कि क्या तुम एक गिलास दूध भी नहीं पियोगे? रसोई चॉकलेट जैसे स्पलीमेंट और कुकीज के साथ भरा पड़ा रहता था ताकि आपको अपने आवश्यक पोषक तत्व मिलें किन दूध का नाम आते ही आपका मन उल्टी जैसा हो जाता था। खैर अब सामने आ चुका है कि आपको शायद अपने माता-पिता की बात सुननी चाहिए थी। द प्रॉस्पेक्टिव अर्बन रूरल एपिडेमियोलॉजी द्वारा किए गए एक नए अध्ययन से सामने आया है रोजाना दूध की कम मात्रा लेना बढ़ती उम्र और हृदय रोगों से पीड़ित होने के जोखिम से जुड़ी है।
1,40,000 लोगों पर किया गया यह अध्ययन
द लांसेट में प्रकाशित यह अध्ययन अपनी तरह का सबसे बड़ा अध्ययन है। यह अध्ययन उत्पादों व मृत्यु दर/हृदय रोगों के बीच संबंधों का मूल्यांकन करने वाली पहली बहुराष्ट्रीय परियोजना भी है। 'द प्योर' के शोधकर्ताओं ने 1,40,000 लोगों पर यह अध्ययन किया। पांच महाद्वीपों के 21 देशों के इन लोगों की उम्र 35 से 70 वर्ष के बीच थी। अध्ययन में नौ वर्षों से अधिक समय तक डेयरी आहार से संबंधित उनकी आहार संबंधी आदतों का अध्ययन किया गया, जिसमें विशेष रूप से डेयरी और वसा सामग्री के प्रकार पर अध्ययन किया गया । शोधकर्ताओं ने हृदय रोग, आयु, लिंग, धूम्रपान, शारीरिक गतिविधि जैसे अन्य स्वास्थ्य मुद्दों को ध्यान में रखते हुए हृदय संबंधी समस्याओं और डेयरी उत्पाद के सेवन के जुड़ाव का मूल्यांकन किया।
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नौ वर्षों के बाद शोधकर्ताओं ने निकाला निष्कर्ष
नौ वर्षों तक परिश्रमपूर्ण तालिका बनाने के बाद अध्ययन के शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि जिन लोगों ने एक दिन में दो या दो से अधिक बार दूध पिया उनमें न केवल हृदय रोगों का जोखिम कम देखा गया बल्कि उनमें हृदय रोग संबंधी मौत का प्रतिशत रहा। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन लोगों ने पूर्ण वसा वाले दूध का सेवन किया उनमें हृदय संबंधी जोखिम सबसे कम था। अध्ययन में यह भी पाया गया कि नियमित रूप से मक्खन का सेवन हृदय संबंधी समस्याओं के जोखिम को बढ़ाता है।
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पश्चिमी देशों में लोग डेयरी उत्पादों के खिलाफ
पश्चिमी देशों में उपभोक्ता अक्सर डेयरी उत्पादों को निशाना बनाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह एलर्जी, पाचन संबंधी बीमारियों, श्वसन संबंधी बीमारी और त्वचा विकारों का का प्रमुख कारण है। डेयरी उद्योग में पशुओं के दुरुपयोग के समस्या के साथ-साथ संभावित खतरनाक हार्मोन, एंटीबायोटिक्स और कीटनाशकों के उपयोग से भी उपभोक्ता डेयरी उत्पादों के सेवन से बचते हैं। इतने बड़े पैमाने पर किए गए इस अध्ययन से इन विचारों को चुनौती मिलती है और यह लोगों को दूसरे पक्ष की ओर देखने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
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दो लेखकों ने भी उठाए सवाल
लेकिन इस अध्ययन की वैधता को पहले ही चुनौती दी जा चुकी है क्योंकि लांसेट के इसी अध्ययन में दो लेखकों ने चिन्हित किया है कि अध्ययन में उन आहार परिवर्तनों के बारे में नहीं बताया गया, जो अध्ययन अवधि के दौरान कुछ लोगों में देखे गए। उन्होंने बड़ी उम्र (35-70 वर्ष) और अपेक्षाकृत कम अवधि (नौ साल) के खिलाफ भी तर्क दिया है।
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