
प्रेम पर ऐसे नियंत्रण का एक वास्तविक उदाहरण है। मोहित और नैना (काल्पनिक नाम) की अरेंज्ड मैरिज हुई। नैना विदा होकर ससुराल आई तो पहले ही दिन मोहित ने मजाक-मजाक में उसका सेलफोन उठा लिया। वह दोस्तों के मेसेज और ऑफिशियल मेल्स देखने लगा। नैना को यह बात बुरी लगी लेकिन नई दुलहन थी, सो कुछ कह न सकी।
धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि मोहित उसे दिन में कई बार काम के बीच भी फोन करता है। उसके बॉस, कलीग्स और मीटिंग्स के बारे में बहुत पूछताछ करता है। वह किससे मिलती है, ऑफिस में क्या-क्या काम करती है...उसके बॉस के बारे में जानने की उत्सुकता मोहित को कुछ जयादा ही रहती। जल्दी ही नैना रिश्ते में घुटन महसूस करने लगी।
उसने मोहित को समझाना चाहा कि शादी से बाहर भी उसकी दुनिया है और दोनों को मिलाना नहीं चाहिए लेकिन मोहित नहीं समझा। नतीजा यह हुआ कि छह महीने के भीतर ही लड़ाई-झगड़ा शुरू हो गया और यह शादी एक साल भी पूरा न कर सकी।
प्रेम और एकाधिकार में फर्क
प्रेम की चाह और प्रेमी पर एकाधिकार में बड़ा फर्क होता है। अपनी ईष्या या असुरक्षा से लड़ते हुए कई बार दंपती या प्रेमी का व्यवहार पजेसिव होने लगता है। अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए वे कुछ गलत रास्ते चुन लेते हैं, जिनमें एकाधिपत्य की भावना भी एक है। ऐसे कई उदाहरण आसपास देखने को मिलते हैं, जहां पति-पत्नी एक-दूसरे पर इतना हावी हो जाते हैं कि दोनों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। दंपती भूल जाते हैं कि वे प्रेमी या पार्टनर हैं, अभिभावक नहीं।
उदाहरण के लिए अगर कोई पार्टनर दोस्तों के साथ वक्त बिताने के लिए दूसरे को ताने देता है तो वह कहीं न कहीं अपने साथी की दुनिया को सीमित कर रहा होता है। पति-पत्नी का कर्तव्य है कि वे एक-दूसरे के विकास में योगदान दें, न कि उसे बाधित करें। शोध और अध्ययन बताते हैं कि रिश्ते में ईष्र्या या दूसरे पर संदेह करने की आदत अंतत: असंतुष्टि और विध्वंसक व्यवहार को जन्म देती है।
स्त्री-पुरुष के रिश्ते जटिल होते हैं। एक-दूसरे के प्रति खुलापन हो और दूसरे से कुछ भी छिपाने की जरूरत न महसूस हो, इसमें आपसी संवाद की भूमिका अहम है। इसके साथ ही पार्टनर को पर्सनल स्पेस देना भी जरूरी है ताकि रिश्तों में घुटन न पैदा हो।
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क्यों होता है ऐसा
अतीत के अनुभवों, हीन-भावना, पारिवारिक और सामाजिक माहौल का व्यक्ति पर असर पड़ता है। बच्चा घर में रिश्तों को देखता-परखता है और इसका प्रभाव उसके भावी जीवन पर पड़ता है। जीवन में कभी विश्वासघात हो, तो भी व्यक्ति संबंधों में असुरक्षा से ग्रस्त हो जाता है। परिवार, आसपास या निजी अनुभवों से ही व्यक्ति के विचार बनते-बिगड़ते हैं। लगभग हर रिश्ते में थोड़ी ईष्र्या, असुरक्षा या भय की भावना होती है, कई बार रिजेक्शन का भय भी इसमें शामिल हो जाता है।
कुछ खास स्थितियों में भी ऐसी भावनाएं पनप सकती हैं लेकिन जब ये गहरी हो जाती हैं तो व्यक्ति समस्याओं का समाधान ढूंढने के बजाय दूसरे को नियंत्रित करने लगता है और अपनी कमियों से बचने के लिए दूसरे में कमियां तलाशने लगता है।
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ऐसे व्यवहार से कैसे बचें
रिश्ते में एकाधिपत्य की भावना या पैटर्न से कैसे उबरें, इसके दो तरीके हो सकते हैं...पहले यह समझना जरूरी है कि कोई ऐसी भावनाओं के साथ भी रिश्ते में क्यों बने रहना चाहता है? दूसरी बात यह है कि किसी के मन की उन अंतर्निहित पीड़ाओं को समझा जाए, जिस कारण उसका व्यवहार ऐसा हुआ है। कई बार थोड़ी संवेदनशीलता और धैर्य से भी स्थितियों में सुधार आ सकता है और कभी-कभी काउंसलिंग भी जरूरी होती है।
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