चिंता को चिता समान कहा जाता है। और चिंता के मूल में होता है बदलाव का डर। किसी अनजाने का डर। डर परिस्थितियों के नियंत्रण से बाहर हो जाने का। और यही डर मिलकर चिंता, तनाव और फिर अवसाद का रूप ले लेते हैं। और इन्हीं का रूप बन जाता है मौत का डर। एक ऐसा डर जो हमारे अवचेतन में बैठकर हमारे चेतन की गतिविधियों को प्रभावित करता रहता है।
मौत आनी है तो आएगी इक दिन
कहूं किससे मैं कि क्या है, शबे-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता।
गालिब ने कहा है कि यूं तो मौत एक दिन आनी है, लेकिन लोग उसके डर में रोज मरते हैं। मौत का एक दिन मुअय्यन होने के बावजूद, सारी रात नींद क्यों नहीं आती। आप इन बातों को जितना दिल से लगाकर रखेंगे, उतना ही ये आपकी शख्सीयत पर हावी होने लगेंगी। अपने जन्मदिन को आप खुशी या उत्सव नहीं समझेंगे। आपको लगेगा कि लो जीवन का एक बरस और गया। छुट्टियों का मजा लेने के स्थान पर आप अगले दिन के काम की चिंता में दुबले हुए जाएंगे।
अनजाना डर बिगाड़े खेल
अधिकतर लोगों को जीवन में अनजाने का डर सताता है। इस डर की नींव कहीं न कहीं बचपन में ही रखी जाती है। बचपन की घटनायें, वातावरण, माहौल, परिस्थितियां और अपेक्षायें कहीं न कहीं आगे चलकर डर में बदल जाती हैं। किसी को खोने का डर है, तो किसी को कुछ न पा पाने का डर। संवेदनशील होना बुरा नहीं, लेकिन इस स्तर तक संवेदनशील होना कहीं न कहीं आपके जीवन में परेशानी बढ़ा सकता है।
क्या है तरीका
बदलाव प्रकृति का नियम है। इस शाश्वत सत्य को स्वीकार करें। बदलाव के साथ खुद को बदलने के तैयार रहें। जड़ न बनें, चेतन रहें। याद रखें चेतन ही चैतन्य है। अपनी संवेदनशीलता को अपनी कमजोरी न मानें। संवेदनशील होने का अर्थ है कि आपके भीतर कहीं न कहीं एक निष्कलंक और निष्पापी व्यक्ति बैठा है। जरूरत संवेदनशीलता को नियंत्रण में रखने की है, ताकि वह आपकी शक्ति बने, ना कि आपकी कमजोरी।
चिंता यानी रचनात्मकता
यदि आप चिंता से जूझ रहे हैं, तो इसका अर्थ यह है कि आप कहीं न कहीं एक बेहद रचनात्मक और संवेदनशील व्यक्ति हैं। तो अपनी चिंता को बुरी चीज समझने के स्थान पर उसमें सकारात्मकता तलाशने का प्रयास करें। इसे देखने का नजरिया बदलें। अपनी चिंता के क्षणों में अपनी समस्याओं को विभिन्न आयामों से देखें। आपकी यही क्रियाशीलता और रचनात्मकता न केवल आपको अंधेरे से बाहर निकलने में मदद करेगी, बल्कि आपको जीवन की मुश्किल परिस्थितियों के लिए भी तैयार करेगी।
खुद पर करें यकीं
अपनी संवेदनशीलता को नकारात्मक रूप में न लें। जरूरत इस बात की है कि आप अपनी चिंता को एक पैकेज के रूप में देखें। इस बात को हमेशा याद रखें कि यदि आपको खुद पर ग्लानि नहीं है, तो आपके लिए इस दर्दनाक परिस्थिति को झेलना मुश्किल नहीं होगा। इन मुश्किल हालात से लड़ने की शक्ति और प्रेरणा अंतर्मन से ही आएगी। आपको दुनिया से पहले अपने आप के लिए जवाबदेह बनना है। अगर आप अपनी नजरों से नहीं गिरे हैं, तो आपके लिए चिंता उस चिंगारी का काम कर सकती है, जो आपको सबसे आगे निकलने का ईंधन मुहैया करा सके।
जीवन बहता दरिया
जीवन रूपी दरिया बहता रहता है। अनवरत, निरंतर। इसमें भावनाओं और संवेदनाओं के उतार-चढ़ाव मौजूद हैं। जब आप भावनाओं को बांधते हैं, तो वास्तव में आप जीवन को बांधने का प्रयास करते हैं। बांधने का यही प्रयास आपके भीतर डर पैदा करता है। जीवन को बांधने की नहीं नियंत्रण करने की आवश्यकता है। सही मार्ग पर चलते रहने से नदी रूपी जीवन सागर रूपी लक्ष्य तक जरूर पहुंचता है।
आल इज वेल
क्या कभी आपने सोचा है कि यदि हमारे जीवन में कमी अथवा दुख न हो, तो। हमारा जीवन कितना खुशनुमा हो जाएगा। आपकी अति संवेदनशीलता करूणा का रूप ले लेगी। यदि आप अपने दिल पर हाथ कर बोलेंगे कि उदासी इतनी बुरी नहीं, यह जीवन का हिस्सा है। तो आपका अंतर्मन आपको 'आल इज वेल' कहेगा। यह प्रेरणा और शक्ति भीतर ही अवतरित होगी। यह छोटा सा काम आपको जीवन की मुश्किलों को स्वीकार करने का साहस देगा।
डर के आगे ही तो जीत है
अपने डर और चिंता का सामना करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप उसका सामना करें। ऐसे स्थानों पर जाएं, जहां जाने से आपको डर लगता है। यह मुश्किलों की आंख में आंख डालकर बात करने जैसा है। हो सकता है कि आपको यह तरीका जरा मुश्किल लगे, लेकिन जब तक आप अपने डर पर काबू नहीं पा सकते, आप हमेशा चिंता में ही डूबे रहेंगे। तो डर का सामना कीजिए और अपने जीवन को बेहतर बनाइए।
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