वजन बढ़ाने के लिए खाना नहीं बल्कि हॉर्मोंस होते हैं जिम्मेदार, ऐसे करें कंट्रोल

आपके शरीर में हॉर्मोन्स केवल मूड स्विंग के लिए जिम्मेदार नहीं होते बल्कि वजन बढ़ने के लगभग हरेक कारण में इन्हीं हॉर्मोन्स का हाथ होता है।
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वजन बढ़ाने के लिए खाना नहीं बल्कि हॉर्मोंस होते हैं जिम्मेदार, ऐसे करें कंट्रोल


आपके शरीर में हॉर्मोन्स केवल मूड स्विंग के लिए जिम्मेदार नहीं होते बल्कि वजन बढ़ने के लगभग हरेक कारण में इन्हीं हॉर्मोन्स का हाथ होता है। जैसे, आपको कब भूख लगती है और कब आपके शरीर में फैट इकठ्ठा होता है। यहां तक कि स्वयं फैट सेल्स भी कई प्रकार के हॉर्मोन्स रिलीज करती हैं। हमारे शरीर में कई ऐसे शक्तिशाली केमिकल्स का भी निर्माण होता है जिसका प्रयोग हम अपने फायदे के लिए कर सकते हैं। इन केमिकल्स का प्रयोग अपने हॉर्मोन पर एकाधिकार करने के लिए किया जा सकता है।

लेप्टिन हॉर्मोन

कई हॉर्मोन्स में लेप्टिन भी एक ऐसा हॉर्मोन है जिसका निर्माण फैट सेल्स करती हैं, जो कि भूख को नियंत्रित करने में महत्वूर्ण भूमिका निभा सकता है। शोध में यह बात सामने आई है कि अत्यधिक बॉडी फैट लेप्टिन रेजिस्टेंस की स्थिति के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब है कि आपका मस्तिष्क लेप्टिन की अत्यधिक मात्रा के बावजूद भी प्रभावित नहीं हुआ। इसलिए यह जान पाना अभी भी संभव नहीं कि ऐसा क्यों होता है।

चूंकि फैट सेल्स इन्फ्लेमेंटरी केमिकल्स का स्राव करते हैं जो कि लेप्टिन की प्रतिक्रिया को बाधित कर देते हैं और इससे शरीर को और फिर दिमाग को भूखे होने का संदेश जाता है। साथ ही ऐसा होता है कि मेटाबॉलिज्म की रफ्तार धीमी हो जाती है और हमारा मस्तिष्क लगातार भूखे होने का संदेश भेजता है, तब खासकर हाई कैलोरी फूड खाने की तलब होती है।

इस तरह कर सकते हैं नियंत्रित

लेप्टिन रेजिस्टेंस को डाइट और एक्सरसाइज के जरिए नियंत्रित भी किया जा सकता है। प्रत्येक दिन यदि सुबह 10 बजे से पहले एक कप सब्जियां खाई जाएं तो लेप्टिन की बढ़ती मात्रा को और बेहतर तरीके से कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है। ऐसा माना जाता है कि सब्जियों में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सूजन को कम करने में मददगार होते हैं और लेप्टिन में अवरोध पैदा करने से रोकते हैं। इससे फैट बर्न करने में मदद मिल सकती है। साथ ही हर वक्त कुछ ना कुछ खाने की तलब से भी बचा जा सकता है।

कोर्टिसोल और सेरोटोनिन

काम के बोझ तले आपको खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती। ऐसे में अक्सर वसा से भरपूर खाद्य पदार्थ लेते हैं इससे आपका एड्रिनल ग्लैंड स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल का स्राव करता है। इससे तनाव का स्तर और बढ़ जाता है और आप वसायुक्त या हाई शुगर वाली चीजें खाने को प्रेरित होते हैं। कोर्टिसोल से जुड़े शोध में यह बात सामने आई है कि यह फैट बढ़ाने का कारक बनता है खासकर पेट के आस-पास के हिस्से में।

वहीं दूसरी ओर सेरोटोनिन का उल्टा असर होता है। यह आपको प्राकृतिक रूप से शांत कराने का काम करता है और साथ ही इससे भूख भी शांत होती है। यहां तक कि इस आधार पर कंपनी ने दवा भी तैयार की है जो मस्तिष्क में सेरोटोनिन की प्रक्रिया को और बूस्ट करने का काम करे।

इस तरह कर सकते हैं नियंत्रित

सेरोटोनिन जैसे प्रभाव को लागू करने के लिए दवाओं के बिना या हाई शुगर वाले खाद्य पदार्थों की जगह फोलेट से भरपूर दालें, पालक लें। आपका मस्तिष्क इनमें मौजूद बी विटामिन का प्रयोग सेरोटोनिन बनाने में करता है। पर्याप्त मात्रा में नींद लेने से कोर्टिसोल हॉर्मोन को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी।

इंसुलिन हॉर्मोन

हर समय जब भी आप कार्बोहाइड्रेट युक्त या शुगरी ड्रिंक लेते हैं तो इससे ब्लड शुगर का स्तर तेजी से बढ़ जाता है और इसकी प्रतिक्रियास्वरूप हमारा शरीर इंसुलिन हॉर्मोन का स्राव करता है, जिसका काम होता है रक्तधाराओं में मौजूद अतिरिक्त ग्लूकोज या शुगर को बाहर निकालना।

पास्ता, ब्रेड या मीठे का ओवरडोज हो जाने की स्थिति में इंसुलिन इन अतिरिक्त कैलोरी को फैट के रूप में स्टोर कर लेते हैं। कई मामलों में अत्यधिक वजन बढ़ने से इंसुलिन प्रतिरोधकता की समस्या हो जाती है, इस स्थिति में कोशिकाएं इस हॉर्मोन के प्रति कम प्रतिक्रिया करती हैं और परिणाम होता है डायबिटीज।

इस तरह कर सकते हैं नियंत्रित

यदि आप इंसुलिन की मात्रा को नियंत्रित करना चाहते हैं तो ऐसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचें जिससे ब्लड शुगर तुरंत ही बढ़ता हो। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट जैसे व्हाइट पास्ता और ब्रेड की जगह साबुत अनाजों से तैयार खाद्य पदार्थ लें, जिनमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर हो। इससे रक्तधाराओं में शकर के अवशोषण की रफ्तार को कम करने में मदद मिलेगी। कम मात्रा में थोड़ी-थाेडी देर में खाएं। इससे इंसुलिन के स्तर को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलेगी।

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