क्या : कोरोना महामारी में महिलाओं को रोजगार देने का काम किया।
क्यों : महामारी में समाज सेवा।
कोरोना वायरस का पहला मामला भारत में जनवरी 2020 में ही आ गया था, मगर ये फैलना शुरू हुआ मार्च के महीने में। दिल्ली और मुंबई के बाद अप्रैल महीने में गुजरात कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट था। इसी समय गुजरात के भरूच जिले में अंकलेश्वर नाम की छोटी सी जगह पर भी इस वायरस के कुछ मामले आना शुरू हुए। अंकलेश्वर टाउन की कुल आबादी लगभग 1.5 लाख होगी। महामारी फैल चुकी थी, भारत भर में लॉकडाउन लगा दिया था। इसी समय अंकलेश्वर की रहने वाली एक 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता अपनी छोटी सी टीम के साथ इस वायरस के खिलाफ लड़ाई के लिए हथियार तैयार करने लगीं। इन सामाजिक कार्यकर्ता का नाम मीरा पांजवानी है।
कोरोना वायरस से दुनिया की जंग जारी है। ऐसे कठिन समय में उम्मीद का दिया बन कर सामने आए सभी कर्मयोद्धाओं को हम, Onlymyhealth.com, HealthCare Heroes Awards के जरिए सलाम करते हैं। इसी कड़ी में हम आपको बता रहे हैं गुजरात की उस 70 वर्षीय महिला की कहानी, जिन्होंने अपनी समझदारी और सूझबूझ से न सिर्फ बहुत सारी महिलाओं को रोजगार दिया, बल्कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जरूरी हथियार जैसे- मास्क, पीपीई किट्स आदि की कमी को भी अपने स्तर पर पूरा करने की कोशिश की।
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क्या है मीरा पांजवानी की कहानी?
मीरा पांजवानी की उम्र 70 साल हो चुकी है, इसीलिए बहुत सारे लोगों के लिए ये दादी मां हैं। ये तो आप भी जानते हैं कि कोरोना वायरस इस उम्र के लिए लोगों के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। इसके बाजवूद जब मीरा को पता चला कि लॉकडाउन के दौरान मास्क की किल्लत हो रही है, तो उन्होंने इस आपदा को अवसर में बदलने का प्रण लिया। मीरा के पास पहले के समय में रोटेटरी क्लब के अध्यक्ष पद का अनुभव था। मीरा पहले ही Rotary Women Empowerment Center (RWEC) नामक संस्था चलाती थीं, जहां गरीब महिलाओं को सिलाई सिखाने का काम किया जाता था। आपदा के समय में मीरा ने इसी सेंटर का इस्तेमाल करते हुए मास्क और पीपीई किट्स बनाने की सोची।
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सरकार से अनुमति लेकर शुरू किया काम
चूंकि लॉकडाउन के कारण सभी प्रतिष्ठान बंद थे, तो ये सेंटर भी बंद हो गया था। मीरा ने ऐसे समय में गुजरात सरकार से सेंटर को दोबारा शुरू करने की अनुमति ली। लेकिन सिर्फ अनुमति ही पर्याप्त नहीं थी। मास्क और पीपीई किट्स बनाने के लिए कपड़े का इंतजाम भी करना था। इसलिए उन्होंने कुछ कपड़े की दुकानें खुलवाने की भी परमिशन ली। इसके बाद भी एक बड़ी चुनौती इंतजार कर रही थी और वो थी कि महिलाओं को इस काम के लिए राजी करना कि वो सेंटर पर आकर काम करें। इसके लिए उन्होंने सुरक्षा के सभी इंतजामों का प्रबंध किया और महिलाओं को विश्वास दिलाया।
मीरा ओनलीमायहेल्थ को बताती हैं, "हमने सरकार के निर्देशों और कानून का बहुत सख्ती से पालन किया। हमने सिर्फ 40% महिलाओं के साथ काम शुरू किया"। काम शुरू होते ही 2 ट्रेनर्स ने महिलाओं को कपड़े काटने और सिलने की ट्रेनिंग देना शुरू कर दी और प्योर कॉटन के 3 लेयर वाले मास्क बनाए जाने लगे।
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65,000 से ज्यादा मास्क बनाकर बांटे
मीरा ने इस सेंटर पर बने 65,000 से ज्यादा क्वालिटी मास्क को पुलिस, सरकारी दफ्तरों, प्रशासन से जुड़े लोगों को बांटा। इसके अलावा लोकल हॉस्पिटल्स में भी तमाम हेल्थ वर्कर्स में ये मास्क बांटे गए। कुल मिलाकर मीरा और उनकी टीम का जुनून बन चुका था कि उन्हें कोविड-19 की लड़ाई लड़ने वाले फ्रंटलाइन वारियर्स क मदद करनी है। मीरा के इस काम को ही देखते हुए उन्हें प्रवासी मजदूरों के लिए मास्क बनाने के लिए भी कहा गया। सेंटर की महिलाओं ने ओवरटाइम कर करके इस जरूरत को पूरा किया।
इसी सेंटर की 30 महिलाओं को मेडिकल एप्रन बनाने के लिए ट्रेनिंग दी गई। आज भी मीरा पांजवानी लगातार काम कर रही हैं और कोविड-19 फ्रंटलाइनर्स की मदद कर रही हैं। उनके सेंटर पर हर दिन लगभग 700 मास्क तैयार किए जाते हैं।
मीरा के इस काम में उनका परिवार भी पूरा सपोर्ट करता है। उनके परिवार में उनके पति, 2 बेटियां और पोते हैं। मीरा घर पर हों या सेंटर में, हर जगह कोविड-19 से जुड़े सुरक्षा निर्देशों का पालन करती हैं, क्योंकि उनकी उम्र बहुत ज्यादा है। अगर महामारी के समय में मीरा पांजवानी की कहानी इस कहानी ने आपको प्रेरित किया है, तो आप उन्हें वोट करें।
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