कैटेगरी: पोषण वॉरियर
परिचय: रोटी घर मिशन चीनू क्वात्रा
योगदान: हर दिन खिलाते हैं गरीब और बेसहारा बच्चों को खाना
नॉमिनेशन का कारण: रोटी घर अभियान की शुरुआत करने वाले चीनू क्वात्रा हर दिन 1800 गरीब और बेसहारा बच्चों को एक टाइम का हेल्दी खाना खिलाते हैं।
कभी-कभी एक छोटी सी कोशिश हमारे जीवन में बड़े बदलाव की वजह बन जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र, ठाणे के रहने वाले 31 साल के युवा चीनू क्वात्रा की, जिन्होंने छोटी सी शुरुआत के साथ समाज सेवा के पथ पर अपने कदम आगे बढ़ाए। 2017 में अपने जन्मदिन के अवसर पर 100 जरूरतमंद बच्चों को खाना खिलाकर उन्होंने 'रोटी घर' अभियान का शुभारम्भ किया। अपने दोस्तों के साथ मिलकर इन्होंने अपने इस अभियान को सशक्त बनाया। बीतते दिनों के साथ बच्चों को खाना खिलाने का यह आंकड़ा बढ़ता गया जो प्रतिदिन 1800 बच्चों तक पहुँच गया। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य जरूरतमंद बच्चों को एक समय का पोषित भोजन उपलब्ध कराना था। 2020 में, कोरोना ने भारत में दस्तक दी जिससे देशभर में लॉकडाउन के हालात बन गए। इस समय चीनू क्वात्रा का 'रोटी घर' केवल बच्चों तक सीमित नहीं था। बल्कि अलग-अलग शहरों में तकरीबन 8 लाख मजदूरों और उनके परिवारों के लिए भरपेट भोजन की व्यवस्था करने में जुटा था। ऐसे मुश्किल समय में,उनके अतुलनीय योगदान के लिए चीनू क्वात्रा को 'Onlymyhealth' के हेल्थ केयर हीरोज अवार्ड्स की 'पोषण वॉरियर्स' कैटेगरी के लिए नॉमिनेट किया गया है।
जन्मदिन की पार्टी से हुई रोटी घर की शुरुआत
चीनू क्वात्रा के ‘रोटी घर’ की शुरुआत अगस्त, 2017 में हुई। चीनू बताते हैं कि जब अपने जन्मदिन के मौके पर बच्चों को दाल-चावल खिलाने के लिए मैंने 3500 रुपए खर्च किए तो मुझे महसूस हुआ कि आमतौर पर 3-4 लोग मिलकर पार्टी करने में इतना खर्च कर देते हैं। अगर देखा जाए तो यह अमाउंट बहुत कम है। जिसमें 100 बच्चों को स्वादिष्ट और सुपोषित भोजन कराया जा सकता है। कुछ महीनों की उधेड़-बुन के बाद मेरे दिमाग में यह बात एक दम साफ़ हो गयी कि मुझे रोटी घर जैसे किसी प्रोग्राम को शुरू करना है। 6 दिसम्बर, 2017 को रोटी घर की नींव रखी गयी जिसका एकमात्रा उद्देश्य कुपोषित बच्चों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन प्रदान करना था। चीनू कहते हैं कि, " इससे दुखद कुछ और नहीं है कि दुनिया में सबसे अधिक पैदावार करने वाले देश ही अत्यधिक कुपोषण की समस्या से जूझ रहा है।"
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खुद का बनाया पौष्टिक खाना ही खिलाते हैं चीनू
इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में चीनू ने इस बात को पहले ही सुनिश्चित कर लिया था कि शादी-पार्टी का बचा हुआ खाना बच्चों को नहीं दिया जाएगा। होटल बिजेनस से जुड़े होने के कारण वह अच्छे से जानते थे कि इस तरह के खाने को अधिक टाइम तक सेफ रखने के लिए प्रिजर्वेटिव (संरक्षक पदार्थ ) का इस्तेमाल किया जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। बच्चों को साधरण लेकिन पौष्टिक भोजन मिले इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने खुद ही खाना बनवाने का निश्चय किया। चीनू के पिताजी बहुत पहले से ही थाणे मुम्बई में ढाबा चला रहे थे, तो यह करना उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था।
रोटी घर कैसे पड़ा नाम
'रोटी घर' नाम दिए जाने की क्या वजह रही ? यह सवाल पूछे जाने पर चीनू जी ने बताया कि-" मैं एक पंजाबी परिवार से हूँ, जहां सीधे "रोटी दे दो" कहकर खाना माँगा जाता है और घर एक ऐसी जगह होती है जहाँ प्रेम और स्नेह से खाना परोसा जाता है, इसलिए इसका नाम 'रोटी घर' रखा गया। इस अभियान के तहत हम मुंबई, दिल्ली, उड़ीसा और बंगलौर इन जगहों पर कुल मिलाकर रोजाना तकरीबन 1800 बच्चों को खाना खिलाते हैं। रोटी घर की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
2010 में, जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था, मेरा परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था। हालात ऐसे थे कि तीन दिन तक हमको बिना खाने के रहना पड़ा। उन्हीं दिनों को याद करके 'रोटी घर' शुरू करने की सोच पैदा हुई। साथ ही होटल बैकग्राउंड होने की वजह से खाने से लगाव होना लाजमी है। 2014 में, जब चीनू डिप्रेशन का शिकार हुए, उसी समय उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया जिससे धीरे-धीरे वह डिप्रेशन से उबरने लगे। साथ ही उन्होंने बताया कि "बच्चों को पढ़ाते वक़्त मुझे महसूस हुआ कि, खाना किसी भी बच्चे की पहली जरूरत होती है।"
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मिल रहा है लोगों का सहयोग
एक परिवार का पेट पालना ही बहुत मुश्किल काम होता है और आप रोजाना इतने सारे बच्चों का पेट भर रहें हैं। आपने आर्थिक रूप से किस तरह इस परिस्तिथि को संभाला ?
इस सवाल का जवाब देते हुए चीनू ने बताया कि उन्होंने WhatsApp और दूसरे सोशल मिडिया प्लेटफार्म पर अपने इस अभियान को शेयर किया। जिसको लोगों ने खूब सपोर्ट किया। इस तरह भोजन व्यवस्था के लिए पर्याप्त पैसा जुटाने में वह सफल रहे। वह कहते हैं कि, मैं कभी भी यारी-दोस्ती के लिए Facebook और instagram पर पोस्ट नहीं करता था। मैंने इस प्लेटफार्म का इस्तेमाल लोगों को अपना काम दिखाने के लिए किया। मैंने अपनी सोच को लोगों के साथ सांझा किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे इस प्रोग्राम से जुड़ सकें। उन्होंने बताया कि, " मैं FSSAI के तहत ट्रेनिंग ले चुका हूँ, जिससे मुझे अपने रसोईघर को साफ़ और स्वच्छ रखने में मदद मिलती।"
कोविड के समय पैदा हुई भयावह परिस्तिथियों में जब लोग दो वक़्त के भोजन की समस्या से जूंझ रहे थे उस समय 'रोटी घर' के जरिए चार राज्यों में कुल मिलाकर लगभग 8 लाख लोगों को खाना खिलाया गया। जिन लोगों को खाना नहीं मिल पाया उनको राशन दिया गया। परिवार से मिले सहयोग की वजह से चीनू को यह अभियान शुरू करने का हौसला मिला। अपने इस इंटरव्यू के जरिए चीनू सन्देश देते हैं कि -"इंसान बनो, सबसे ज्यादा सुख इसी में है।"
वास्तव में,चीनू क्वात्रा द्वारा की गयी यह पहल मानवता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें निःस्वार्थ सेवा का भाव झलकता है।