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परिचय: मंतशा फातिमा
योगदान: मंतशा फातिमा ने कोविड-19 के दौरान अपनी पेंटिंग्स के जरिए सोशल मीडिया पर लोगों को कोरोना वायरस से बचाव के बारे में जागरूक किया।
नॉमिनेशन का कारण: 19 साल की मंतशा फातिमा ने सोशल मीडिया पर पेंटिंग्स के जरिए कोविड के बारे में लोगों को जागरूक किया और राशन, पैसे आदि देकर भी बहुत सारे लोगों की मदद की।
स्कूल पूरा होने के बाद मंतशा फातिमा को गिफ्ट के तौर पर स्मार्टफोन मिला। उन्होंने फोन में इंस्टाग्राम डाउनलोड किया। शुरुआत में वो इस पर पत्थरों (जेम्स) की तस्वीरें साझा करती थीं। यही वो समय था, जब कोविड भारत में नया-नया आया था (2020)। अपने आसपास के लोगों को परेशान देखकर मन्तशा ने इस सोशल प्लेटफॉर्म को नए तरह से यूज करने के बारे में सोचा। उन्होंने कोविड के बारे में जागरूकता फैलाने वाली पेंटिंग्स बनानी शुरू की और उसे अपने सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू किया। 19 साल की इस कलाकार की तस्वीरों को यूनिसेफ द्वारा पहचान मिली और यूनिसेफ ने भी इनके प्रयासों की सराहना की।
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सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई कोविड से जुड़ी जागरूकता
मंतशा कहती हैं कि कोविड से पहले उनको नहीं पता था कि कैसे एनजीओ काम करते हैं। वो किस तरह लोगों की मदद कर सकती हैं। जब उनको स्मार्टफोन मिला तो रास्ता खुद ही मिलता चला गया। उन्होंने कोविड के प्रति जागरूकता फैलाना शुरू किया और इसके लिए सोशल मीडिया का प्रयोग किया। जैसे मास्क कैसे पहनते हैं, इस पर पेंटिंग बनाई और उसे पोस्ट किया। यह समय-समय पर कोविड के समय में किस तरह से व्यवहार करना चाहिए, इस विषय पर वीडियो बना कर भी शेयर करती रहीं और आज भी जारी है। उस समय मंतशा केवल पेंटिंग बना कर ही नहीं रुकीं बल्कि जरूरतमंदो के लिए भी इन्होंने और भी कई तरह के काम किए।
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कोविड-19 के समय बांटा राशन
मंतशा और इनकी कुछ सहेलियों ने इनके साथ मिल कर अपने घर के राशन से कुछ राशन लेकर जरूरत मंदो को बांटना शुरू किया और साथ ही कुछ पैसे भी हर थैले में डाले ताकि कुछ सामान वह खुद भी खरीद पाएं। इनका कहना है कि इनके पिता महीने भर का राशन एक ही बार में ले आते थे। उसमें से ही बाकी लोगों की मदद भी की जाती थी। इनका परिवार भी काफी सपोर्ट कर रहा था। इसलिए हर जगह सामान बांटने वह खुद अपनी स्कूटी पर गईं। हालांकि उनके इस सफर में ताने मरने वाले लोगों की भी कमी नहीं रही। लेकिन किसी भी चीज से वह रुकी नहीं। उनके मुताबिक शुरू में उन्होंने अपनी गुल्लक से पैसे लिए। फिर जब उनके पैसे खत्म हो गए तो घर वालों से मांगे और ऐसे ही कुछ दोस्तों ने भी इस काम में मदद की। यही नहीं एक पिता के कहने पर उसके बच्चे के स्कूल की फीस भी दी। जैसे-जैसे खबर फैलती गई कई एनजीओ ने भी उन से संपर्क किए और वे काफी सारे एनजीओ का हिस्सा बनती चली गईं।
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बस्तियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाया
घर के पास एक बस्ती के बच्चों को पढ़ाना भी मंतशा ने शुरू किया। इस काम को करते अभी तीन महीने ही हुए हैं और अभी से इन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक एनजीओ खोलने का सोच लिया है। जिसमें यह उन बच्चों को शिक्षा देंगी जिनके पास शिक्षा प्राप्त करने के संसाधन नहीं हैं। तीसरी लहर के दौरान उनकी खुद की शिक्षा और दूसरों के पढ़ाने से उन्हें थोड़ा ही समय मिल पाता है, अब वह अपनी वेरिफाइड सोशल प्रोफाइल से काफी सारी पोस्ट भी शेयर करती रहती हैं। इस कोविड भरे समय में इतने अच्छे माध्यम से जागरूकता फैलाने के लिए हम मन्तशा के इस जज्बे को सलाम करते हैं। अगर आप भी इनके इस प्रयास को आगे और अधिक पहचान दिलवाना चाहते हैं तो इनके लिए जरूर वोट करें, ताकि यह अवार्ड की विजेता बन सकें और आगे भी ऐसे ही सामाजिक समस्याओं को लेकर जागरूकता फैलाती रहें।