
कैटेगरी: डिजिटल हेल्थ केयर
परिचय: अर्पिता चौधरी
योगदान: अर्पिता चौधरी ने कोविड डेटाबेस तैयार किया जिसमें, हास्पिटल्स, मेडिसिन और आक्सिजन सिलैंडर से जुड़ी सभी जानकारी लोगों को दी।
नॉमिनेशन का कारण: एक स्टूडेंट के नाते अर्पिता ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकती थीं, लेकिन अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने कोविड की दूसरी लहर के दौरान दवा, इंजेक्शन, बेड्स, ऑक्सीजन आदि के लिए भटक रहे लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने के लिए एक डेटाबेस तैयार किया, जिससे हजारों लोगों की मदद हो सकी।
बहुत से लोगों के मुताबिक कोविड की दूसरी लहर देश के विभाजन (1947) के बाद आने वाली भारत की सबसे बड़ी और भयंकर आपदा थी। इस दौरान काफी सारे लोगों ने अपनी जान गंवा दी और भारत का हेल्थ केयर सिस्टम भी एक तरह से डगमगा गया था। अस्पतालों में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर्स की कमी पड़ गई थी। इस दौरान बहुत से लोग मदद के लिए आगे आए और उन्हीं में से एक हैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की 20 वर्षीय छात्रा अर्पिता चौधरी और उनके कुछ दोस्त जैसे आरुषि राज और शिवानी सिंघल आदि। स्टूडेंट्स के इस छोटे से ग्रुप ने अपने सोशल मीडिया चैनल के द्वारा जितना हो सका उतनी लोगों की मदद की। जैसा कि आपको याद होगा कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा मारा-मारी हॉस्पिटल में बेड्स, ऑक्सीजन, दवाओं, इंजेक्शन आदि की रही। इंटरनेट पर बहुत सारी जानकारियां मौजूद थीं, लेकिन इनमें से ज्यादातर गलत थीं। ऐसे में इन स्टूडेंट्स ने इंटरनेट पर मौजूद जानकारियों को वेरिफाई करके वास्तविक जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने का काम किया, जिससे काफी सारे लोगों की सच में मदद हो सकी। कुछ ही समय में न केवल भारतीयों बल्कि विदेश में रहने वाले भारतीयों के भी इनके पास कॉल आने लगे ताकि उनके भारत में रह रहे रिश्तेदारों को यह सुविधाएं प्राप्त हो सके।
अर्पिता ने क्यों शुरू किया #letsfightcovidtogether
#letsfightcovidtogether को शुरू करने से पहले अर्पिता व्हाट्सएप और टेलीग्राम के बहुत सारे सपोर्ट ग्रुप की एक मेंबर थी। जिनमें मेडिकल जरूरतों से जुड़ी कई जानकारियां आती थी। अप्रैल-मई के महीने में जब कोविड केस बढ़ने लगे तो अस्पतालों में बेड, दवाइयों और ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी कमी देखने को मिली। ऐसे में बहुत सारे लोग रैंडम मैसेज इन ग्रुप्स में शेयर कर रहे थे, जिनमें ज्यादातर नंबर्स या तो बंद थे या गलत थे। एक कॉलेज की छात्रा होते हुए अर्पिता कुछ ज्यादा नहीं कर सकती थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न वो अपने दोस्तों की मदद से इन जानकारियों को वेरिफाई करके और अधिक लोगों तक पहुंचाएं। इसलिए उन्होंने आसपास के सारे सरकारी अस्पतालों और संस्थाओं के नंबर व कोविड हेल्पलाइन नंबर का डाटाबेस बनाना शुरू कर दिया।
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उन्हें महसूस हुआ कि यह काफी नहीं है। इसलिए उसकी दो दोस्तों ने मिल कर सभी उन नंबरों पर फोन और मैसेज करना शुरू कर दिए जो सोशल मीडिया पर इधर-उधर शेयर किए जा रहे थे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन सी जानकारी सही है और कौन सी गलत। सही जानकारी को डाटाबेस में शामिल किया गया। यह सुनिश्चित भी किया कि यह डेटाबेस जितना हो सका उतना जल्दी शेयर हो सके।
जानकारी वेरिफाई करने के लिए फोन किए और मैसेज भेजे
अर्पिता बताती हैं कि उन्होंने एक ग्रुप बनाया जिसमें जानकारी को साझा किया जाता था। इन मैसेज में उपलब्ध जानकारी को तीनों दोस्तों ने आपस में विभाजित कर लिया और हर नंबर पर एक-एक करके पूछा गया कि क्या सच में वहां मेडिकल बेड और बाकी सुविधा उपलब्ध है या नहीं। कुछ समय बाद उन्हें महसूस हुआ कि बहुत से लोग फोन उठा पाने की स्थिति में नहीं हैं तो वह उनके पास मैसेज करने लगीं। जानकारी फ्रॉड न हो इसलिए वह इन बातों का स्क्रीनशॉट लेती और सप्लायर का जीएसटी नंबर भी मांगती।
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सोशल मीडिया का किया बहुत अच्छा प्रयोग
अर्पिता कहती हैं कि जानकारी साझा करना भी उतना ही जरूरी है जितना जानकारी प्राप्त करना। एक कॉलेज की छात्रा होने के साथ उनके पास संवाद करने के लिए सोशल मीडिया के अलावा कोई अच्छा चैनल नहीं था। इसलिए इन तीनों ने ग्रुप आदि के लिंक एक दूसरे के साथ शेयर किए। डेटाबेस का स्टेटस भी तुरंत अपडेट कर दिया जाता था ताकि लोगों को अपडेटेड जानकारी मिल सके। बहुत सारे यूथ पेजेस ने अर्पिता के साथ संपर्क साधा। उनके इस काम को एक बड़े लेवल पर पहचान दिलवाई ताकि काफी लोगों की और मदद की जा सके। एक इंटरनेशनल न्यूज आउटलेट ने भी भारत की कोविड स्थिति को जानने के लिए उनसे संपर्क किया। जब आर्टिकल पब्लिश हुआ तो बहुत से भारतीय जो यूरोप में रह रहे थे ने भी इनसे कॉन्टेक्ट कर अपने भारतीय रिश्तेदारों की मदद के लिए बेड और अन्य अप्लाई की जानकारी ली।
अर्पिता के अगर इस काम को जीत दिलाना चाहते हैं तो इनके लिए वोट जरूर करें।