क्या : गांव-गांव जाकर पीरियड्स से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ने का काम किया।
क्यों : ये संस्था पीरियड्स को लेकर इन भ्रांतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम कर रही है।
कोरोनावायरस ने हर किसी की जिंदगी को किसी न किसी तरीके से प्रभावित किया है। कोरोनावायरस के कारण हुआ लॉकडाउन और अब आर्थिक मंदी ने लोगों के लिए नई चुनौतियों को पैदा किया है। पर आपने कभी उन महिलाओं की चुनौतियों के बारे में सोचा है, जो इन तमाम कठिनाइयों के साथ देश के किसी छोटे से गांव में रह रही है। इन महिलाओं तक कोई भी स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से नहीं पहुंच पाती है और ना ही ये अपने स्वास्थ्य को लेकर खुल कर बात करती हैं। ऐसी ही महिलाओं को पीरियड्स और वैजाइनल हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर खुल कर बात करने को प्रेरित कर रही है 'सुखीभव्' (Sukhibhava)। सुखीभव् एक ऐसी संस्था है, जो पीरियड्स और महिला स्वास्थ्य को लेकर गांव-गांव में लगातार काम कर रही है और उनके इसी साहस और प्रयास को देखते हुए OMH Healthcare Heroes Award में उन्हें 'रूरल हेल्थकेयर कोविड हीरोज (RuralHealthcare- COVID Heroes)'की कैटेगिरी के लिए नॉमिनेट किया गया है।
लॉकडाउन के दौरान भी महिलाओं के लिए काम कर रही थी 'सुखीभव्' (Sukhibhava)
भारत में कई हिस्सों में आद भी पीरियड्स को लेकर कई सारी भ्रांतियां हैं। ऐसे में सुखीभव् लोगों में खास कर ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स को लेकर इन भ्रांतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। इतना ही नहीं से संस्था कोरोनावायरस महामारी के वक्त भी रूकी नहीं और गांव-गांव जाकर इन्होंने काम किया। इस दौरान इस संस्था ने न सिर्फ महिलाओं को पीरियड्स को लेकर बात की, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य पर Covid19 महामारी के प्रभावों को भी जानने की कोशिश की। इस संस्था ने महामारी के दौरान महिलाओं की चुनौतियों का भी विश्लेशण किया। इस दौरान संस्थान इस बात को भी जानने की कोशिश की महामारी के दौरान महिलाओं तक सैनिटरी नैपकिन और बाकी जरूर की चीजें पहुंची या नहीं।
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पीरियड्स की रूढ़ियों को तोड़ता 'हैलो सहेली'
इतना ही नहीं सुखीभव् मासिक धर्म से जुड़े रूढ़िवादी भावनाओं को बदलने के लिए 'हैलो सहेली' नाम का जागरूकता अभियान भी चला रही है। इसमें ये 4 तरीके मुंख्य बिंदुओं की मदद से ग्रामीण महिलाओं कर अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
- - इनकी पहली पहल जागरूकता ऑडियो जिंगल्स का निर्माण था, जिसे महिलाएं अपने फोन पर प्राप्त करने का विकल्प चुन सकती हैं।
- -दूसरी, स्थानीय भाषाओं में मासिक धर्म और यौन स्वास्थ्य हेल्पलाइन भी शुरू की गईं, जहां पीरियड्य में दर्द अनियमितताओं, स्वच्छता और पोषण पर विश्वसनीय जानकारी प्रदान करती है।
- - तीसरी पहल थी एक हेल्पलाइन नंबर है, जो कि मान्यता प्राप्त डॉक्टरों से कॉलर्स को जोड़ता है और महिलाओं को टेली-परामर्श प्रदान करने मदद करती है।
- - सुखीभवा का चौथा ध्यान जेंडर इशूज को लेकर लोगों को जागरूक करना है।

इस पहल को लेकर संस्था के सीईओ और सह-संस्थापक दिलीप पट्टुबाला कहते हैं कि , “एक बार मुझे मेरे ऑस्ट्रेलियाई सहयोगी से दलित समुदायों की महिलाओं की मासिक धर्म स्वच्छता की स्थिति के बारे में पूछा और कहा कि क्या सैनिटरी नैपकिन तक उनकी पहुंच है। मेरे पास कोई जवाब नहीं था और इसलिए मैंने और मेरे दोस्त ने सुखीभव् की शुरुआत की। " यह देखते हुए कि शहरी झुग्गी-झोपड़ियों और गांवों में रहने वाली महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान सैनिटरी पैड और चिकित्सा परामर्श की सुविधा नहीं मिल पाई, इसलिए हमने हैलो सहेली की शुरुआत की। दिलीप कहते हैं, “महिलाएं महामारी के दौरान अस्पतालों में जाने से डर रही हैं। वहीं उनके सामुदायिक केंद्रों में क्लीनिक चल नहीं रहे हैं। ऐसे में मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों तक पहुंचने में कठिनाई के कारण स्वास्थ्य जटिलताओं में वृद्धि हुई। हमने तब इन महिलाओं को हैलो सहेली की मदद से सहायता पहुंचाई।
संस्था ने काम करने के लिए हेल्पलाइन नंबर स्थापित किए हैं, जहां टीम के सदस्यों ने कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को मुफ्त मासिक धर्म और यौन प्रजनन स्वास्थ्य ज्ञान और टेली-स्त्री रोग परामर्श देने के लिए एक नेटवर्क तैयार किया है। यहां अपनी पसंदीदा भाषाओं में महिलाओं बात करती हैं, जिनमें तमिल, कनाड़ा और अंग्रेजी शामिल हैं। इन सबको करने में सुखीभव् को बहुत मेहनत लगी है। सुखीभावा कठिन समय में महिलाओं की लड़ाई में मदद कर रही है और उन्हें समाज को जागरूक बना रही है। उनके इस नेक प्रयास को और प्रोत्साहित करने के लिए, उन्हें अपना वोट दें। यहां आप जागरण न्यू मीडिया और ओनली माई हेल्थ हेल्थकेयर हीरोज अवार्ड्स में अपनी पसंदीदा नामांकित कहानी के लिए वोट कर सकते हैं।
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