एड्स के खिलाफ कमर कस चुके थाइलैंको एक बहुत बड़ी जीत मिली है और इस जीत पर डब्ल्यूएचओ ने भी मुहर लगा दी है। डब्ल्यूएचओ ने इस कामयाबी को अहम बताते हुए कहा कि, "एचआईवी को पहली बार महामारी के रूप में झेल रहा थाईलैंड अब एड्स मुक्त नई पीढ़ी सुनिश्चित करने में कामयाब हो गया है।"
दरअसल थाइलैंड एड्स से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला एशिया का देश है। इसके लिए थाइलैंड पिछले कई सालों से एड्स को मिटाने की कोशिश में लगा था जिसे अब जाकर सफलता मिली है। वैसे बताते चलें कि क्यूबा ने पिछले साल ही मां से बच्चे को होने वाले एड्स से मुक्त पा ली थी लेकिन वो डब्लूएचओ के मानक पर खरा नहीं उतरा था। बेलारूस व आर्मेनिया ने भी मां से बच्चे में होने वाले एचआईवी संक्रमण पर थाईलैंड के साथ ही मुक्ति पा ली है। लेकिन इन तीनों देश में थाइलैंड की तुलना में एड्स का प्रभाव कम है। इन सब देशों के बीच में थाइलैंड डब्ल्यूएचओ के नए मानकों पर सबसे पहले खरा उतरा है।
मां से बच्चे को एड्स होने का 15 से 45 फीसदी तक खतरा
मां से बच्चे को एचआईवी का खतरा अधिक होता है। डबल्यूएचओ के अनुसार इलाज न करने पर एचआईवी पीड़ित मां से पैदा होने वाले बच्चे में एड्स से संक्रमित होने की संभावना 15 से 45 फीसदी तक होती है। ऐसा जन्म देने के बाद दूध पिलाने से भी होता है। लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान ऐंटिवायरल ड्रग्स देकर मां से बच्चे को होने वाले एड्स के खतरे को एक फीसदी तक घटाया जा सकता है।
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