कसरत करने से बच्चों को परीक्षाओं में मिल सकते हैं अधिक अंक

व्‍यायाम करने से बच्‍चों को न केवल शारीरिक लाभ मिलते हैं, बल्कि इसके साथ ही इससे परीक्षाओं में भी उनका प्रदर्शन बेहतर होता है।
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कसरत करने से बच्चों को परीक्षाओं में मिल सकते हैं अधिक अंक


कसरत से बढ़ता है बच्‍चों का दिमागकरसत हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी होती है। कई शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि रोजाना व्‍यायाम करने से हमारा दिल और दिमाग बेहतर काम करता है। एक हालिया अध्‍ययन ने इस बात को और पुख्‍ता कर दिया है कि कुछ देर की कसरत बच्‍चों को पढ़ाई में बड़े पैमाने पर मदद कर सकती है।

 

करीब पांच हजार बच्चों पर किए गए अध्‍ययन के बाद यह परिणाम निकाले गए कि अंग्रेजी, गणित और विज्ञान विषय की परीक्षा और कसरत के बीच एक मजबूत संबंध है। अध्ययन के मुताबिक 17 मिनट तक कसरत करने पर लड़कों और 12 मिनट तक कसरत करने पर लड़कियों के प्रदर्शन में सुधार आता है।

 

स्ट्रैथक्लाइड और डूंडी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन में देखा गया कि जिन बच्चों ने नियमित कसरत की, उन्होंने न केवल 11 साल की उम्र में बल्कि 13 और 16 साल की उम्र में भी परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन किया। किशोरों को रोजाना एक घंटे तक शारीरिक गतिविधि करना चाहिए। हालांकि यह बात भी सामने आयी कि अधिकतर किशोर इससे काफी कम समय तक ही कसरत करते हैं।

 

बीबीसीडॉटकॉम की हिन्‍दी बेवसाइट में प्रकाशित खबर के मुताबिक अध्‍ययन में देखा गया कि कसरत करने से लड़कियों को विज्ञान जैसे विषय में काफी फायदा हुआ। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक इस अध्ययन से लिंग भेद के कारण कसरत का दिमाग पर अलग-अलग असर पड़ने का भी पता चलता है।

शोधकर्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया कि अगर किशोर रोजाना 17 मिनट के स्‍थान पर एक घंटा कसरत करते तो उनका प्रदर्शन कैसा होता। उन्होंने दावा किया कि 15 मिनट तक कसरत करने के कारण किशोरों का प्रदर्शन एक चौथाई ग्रेड बेहतर हुआ। ऐसे में यह संभव है कि अगर किशोर हर रोज़ एक घंटे तक कसरत करते तो उनके प्रदर्शन में पूरे एक ग्रेड का सुधार होता।

अध्ययनकर्ता डूंडी यूनिवर्सिटी के डॉ जोइस बोथ ने कहा, ''शारीरिक गतिविधियां स्वस्थ रहने के साथ-साथ अन्य चीजों के लिए भी ज़रूरी हैं। माता-पिता, नीति निर्माताओं और शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए ये नतीजे काफी मायने रखते हैं।'' ब्रिटेन के जर्नल स्पोर्ट्स मेडिसीन में छपे इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि इस बारे में आगे होने वाले अध्ययन के नतीजों से सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा नीति पर असर पड़ सकता है।

 

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