अस्थमा के कारण श्वासनली या इसके आसपास के जुड़े हिस्सों में सूजन आ जाती है। जिस कारण सांस लेने में दिक्कतें आने लगती है। इतना ही नहीं इससे फेफड़ों में हवा ठीक से नहीं जा पाती। नतीजन सांस की समस्या, खांसी इत्यादि होने लगती है। यही अस्थमा की शुरूआत है। अगर किसी को प्रेग्नेंसी के दौरान या प्रेग्नेंसी से पहले अस्थमा होता है, तो ये कई बार खतरनाक हो सकता है। भारत में करीब आठ से 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं अस्थमा से प्रभावित होती हैं। आइए आपको बताते हैं कि प्रग्नेंसी में अस्थमा के क्या खतरे होते हैं और इस दौरान किन बातों की सावधानी जरूरी है।
गर्भावस्था और अस्थमा
अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी से पहले अस्थमा की समस्या है, तो कई बार गर्भावस्था के दौरान समस्या बढ़ सकती है और कई बार सामान्य भी रह सकती है। आमतौर पर दमा के लक्षण दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान ज्यादा गंभीर होने लगते हैं। ज्यादातर महिलाओं में गर्भावस्था के छठें महीने के बाद अस्थमा की समस्या बढ़ना शुरू हो जाती है। इसका एक कारण गर्भावस्था के दूसरी तिमाही के बाद महिला के शरीर में प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन्स का बढ़ना भी होता है। कई बार गर्भावस्था के 24वें से 36वें सप्ताह के बीच सांस की समस्या उन महिलाओं को भी परेशानी करती है, जिनमें पहले से दमा की शिकायत नहीं होती है।
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क्या हैं गर्भावस्था में अस्थमा के लक्षण
गर्भावस्था में होने वाला अस्थमा के लक्षण सामान्य अस्थमा से बहुत अलग नहीं होते हैं। अस्थमा के सामान्य लक्षणों की तरह इस दौरान भी महिलाओं को सीने में जकड़न के साथ साथ सांस लेने में भी तकलीफ होती है। इसके कारण गर्भवती स्त्री को आम दिनों की तुलना में जल्दी थकावट महसूस होने लगती है। कई बार जब अस्थमा गंभीर अवस्था में होता है, तो सांस न ले पाने के कारण महिलाएं जोर-जोर से खांसने लगती हैं और उन्हें सांस लेने में बहुत तकलीफ होती है। अगर आपको पहले से अस्थमा है, तो प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही अपने डॉक्टर से इस बारे में जरूरी राय ले लें और इन्हेलर या दवाओं के प्रयोग के बारे में पूछ लें।
क्या प्रेग्नेंसी के दौरान अस्थमा से शिशु पर पड़ता है प्रभाव?
गर्भावस्था के दौरान मां के शरीर में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों का सीधा असर उसके शिशु पर पड़ता है। ऐसे में अस्थमा का प्रभाव भी होने वाले बच्चे पर पड़ना स्वाभाविक है। दरअसल अस्थमा का सीधा प्रभाव महिला के ब्लड प्रेशर पर पड़ता है इसलिए इस दौरान प्रीक्लेम्पसिया का भी खतरा बढ़ जाता है। ये माता और शिशु दोनों के लिए खतरनाक है। प्रीक्लेम्पसिया से ग्रस्त महिलाओं में शिशु को सही मात्रा में खून और ऑक्सीजन नहीं पहुंचता। इसका दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं की लीवर, किडनी और मस्तिष्क पर भी पड़ता है। इसके अलावा अस्थमा गर्भवती महिला के लिए पहली तिमाही में मॉर्निंग सिकनेस को और भी कठिन बना देती है जिसके कारण अपरिपक्व प्रसूति का डर बना रहता है। इससे बच्चे का वजन कम होने की भी संभावना होती है।
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क्या प्रेग्नेंसी के दौरान अस्थमा की दवाएं सुरक्षित हैं?
हालांकि गर्भावस्था के दौरान अस्थमा की दवाओं को सुरक्षित माना जाता है मगर इस बारे में एक बार अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें। सांस के जरिये ली जाने वाली स्टेरॉइड, जिन्हें रोज लिया जाता है, वे गर्भावस्था में सुरक्षित मानी जाती हैं मगर इसके प्रयोग से पहले डॉक्टर से पूछ लें। बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवा न खाएं। कई महिलाएं एल्ब्युटेरोल नेब्युलाइज़र का भी प्रयोग करती हैं। हालांकि इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन फिर भी यह होने वाले बच्चे के लिए कई बार हानिकारक हो सकता है क्योंकि इससे होने वाले शिशु के हार्ट रेट बढ़ने का खतरा हो सकता है।
बरतें ये सावधानियां
- अस्थमा रोगी के लिए बचाव बेहद जरूरी है, ऐसे में आप धूल मिट्टी से दूर रहें। साफ-सफाई करने से बचें और पुराने धूल-मिट्टी के कपड़ों से दूर रहें।
- पालतू जानवरों के बहुत करीब ना जाएं और उन्हें हर सप्ताह नहलाएं।
- डॉक्टर से संपर्क करें और उनके दिशा-निर्देशानुसार इनहेलर का प्रयोग करें।
- अस्थमा होने पर धूम्रपान से दूर रहें और धूम्रपान करने वाले लोगों से भी दूरी बनाएं।
- अस्थमा अटैक होने पर तुरंत डॉक्टर को संपर्क करें अन्यथा इनहेलर का प्रयोग करें।
- समय-समय पर अपनी जांच करवाएं।