OMH Healthcare Heroes Awards 2020: कोविड-19 के दौरान डॉ. अरुणा कालरा मां बनकर गर्भवती महिलाओं को दी अपनी सेवा

डॉक्टर कालरा के लिए रोगियों का स्वास्थ्य हमेशा सर्वोपरि रहा है। उन्होंने स्वेच्छा से प्रसवोत्तर जांच के लिए कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों को चुना। 

सम्‍पादकीय विभाग
Written by: सम्‍पादकीय विभागUpdated at: Sep 21, 2020 18:23 IST
OMH Healthcare Heroes Awards 2020: कोविड-19 के दौरान डॉ. अरुणा कालरा मां बनकर गर्भवती महिलाओं को दी अपनी सेवा

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कौन : डॉ. अरूणा कालरा
क्या : मां बनकर गर्भवती महिलाओं को दी अपनी सेवा।
क्यों : कोरोनावायरस महामारी के दौरान नई माताओं की सेवा की।

कोविड-19 में डॉक्टर्स के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। जिस तरह से डॉक्टर्स जान की परवाह किए बगैर अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर मानव सेवा के लिए खुद को समर्पित कर रहे हैं, वो हर किसी के लिए मिसाल है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुणा कालरा भी उन्हीं डॉक्टर्स में से एक हैं। डॉ. अरुणा कोरोना काल में मां और उसके पेट में पल रहे बच्चे को बचाने का काम कर रही थी। उनके इस योगदान के लिए OMH Healthcare Heroes Awards में ‘बियोंड दी कॉल ऑफ ड्यूटी - डॉक्टर के लिए नॉमिनेट किया गया है।

लॉकडाउन के शुरुआती महीनों में डॉक्टर्स के लिए एक युद्ध जैसी स्थिति थी। उस दौरान ये सभी काम के बोझ तले दबे हुए थे। न तो खाना खाने का समय था और न ही आराम करने का। इस संघर्ष के बावजूद भी डॉक्टर्स अपना अमूल्य योगदान दे रहे थे और आज भी दे रहे हैं। कोविड-19 के दौरान डॉ. अरुणा कालरा का भी योगदान एक सीनियर गायनोकॉलोजिस्ट सर्जन के रूप में काफी सराहनीय रहा है। दो दशक से ज्यादा का अनुभव लिए डॉ. अरुणा कालरा ने महामारी के दौरान गर्भवती महिलाओं की मदद की ताकि बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई असर न हो।

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महामारी में डॉ. अरुणा ने अपने चिकित्सा कौशल का उपयोग रोगियों के इलाज के लिए किया। उन्होंने न केवल मुफ्त में रोगियों का इलाज किया, बल्कि उन्हें एंटीबायोटिक्स और विटामिन जैसी महंगी दवाएं भी दिए, जो कि उपचार के लिए आवश्यक थीं। डॉ. अरुणा कालरा कहती हैं, "महामारी में डॉक्टर्स को थकान के साथ-साथ भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मरीजों की देखभाल के लिए बिना कुछ खाए-पिए हमें 9 घंटे तक PPE किट में रहना होता है। उस दौरान घुटन भी होती है। जब कोई मां अपने बच्चे को जन्म देती है, उस दौरान भी हमें PPE किट में रहना होता है।" 

कोविड-19 के दौरान डॉ. अरुणा कालरा को गर्भवती महिलाओं का इलाज करने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। समस्या तब और बढ़ जाती थी जब गर्भवती महिलाएं कोरोना की शिकार हो जाती थी। यह ऐसी स्थिति थी, जहां पर महिलाएं डर के साये में जीती थी। यह उनके लिए किसी मनोवैज्ञानिक आघात से कम नहीं था। वह अपनी स्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती थी और न ही अपने हार्मोनल असंतुलन के बारे में डॉक्टर को सूचित करती थी। ये महिलाएं भी अपनी बॉडी को छूने नहीं देती थी। यहां तक कि पति को भी उस दौरान पत्नी का साथ देना मुश्किल लगता था। कोरोना वायरस का इतना डर था कि स्वस्थ्य महिलाएं भी प्रेग्नेंसी के दौरान प्री और पोस्ट नेटल चेकअप से भी घबराती थी।

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डॉ. अरुणा कालरा ने फैसला किया कि अगर उनके मरीज उसके पास नहीं आएंगे, तो वो उनके पास जाएंगी। अपनी सेहत को जोखिम में डालकर वह कोविड पॉजिटिव मरीजों के घर उनका चेकअप करने के लिए गईं। उन्होंने न केवल फ्री में मरीजों को परामर्श दिया, बल्कि जो महिलाएं महंगी दवाएं, विटामिन और सप्लीमेंट नहीं खरीद सकती थी, उन्हें भी बिना किसी शुल्क के दवाईयां दी। डॉ. अरुणा कालरा कहती हैं “महामारी के कारण कई लोग अपनी नौकरी खो चुके थे। मैंने सोचा कि अपनी चिकित्सा कौशल से रोगियों की मदद करनी चाहिए।”

डॉक्टर कालरा के लिए रोगियों का स्वास्थ्य हमेशा सर्वोपरि रहा है। उन्होंने स्वेच्छा से प्रसवोत्तर जांच के लिए कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों को चुना। उन्होंने एक मां के रूप में गर्भवती महिलाओं को अपनी सेवा दी। उन्होंने रोगियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है, जो कोविड -19 में ठीक हो गये हैं। इस ग्रुप ने न केवल गर्भवती महिलाओं की आशंकाओं को दूर किया, बल्कि गर्भावस्था के दौरान संक्रमण के बारे में सवालों का भी जवाब दिया। डॉक्टर कालरा संक्रमित मरीजों के लिए उनके पूर्वाग्रह और सवालों के जवाब देने के लिए हाउसिंग सोसाइटी के लोगों को बुलाती थी।

इन सब कामों के अलावा डॉ. अरुणा कालरा की यह भी चिंता थी कि उनके स्टाफ में कोई खाना खा रहा है या नहीं। डॉ. कालरा ने देखा कि अस्पताल के कुछ कर्मचारी काम के बोझ और सीमित समय और कैंटीन के सख्त सेवा मानदंडों के कारण बिना खाए ही सेवा दे रहे हैं। उनके अंदर अपने स्टाफ के प्रति जिम्मेदारी का भाव था। इसलिए वह उनके लिए खाना भी बनाकर लाती थी। 

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