कुछ बच्चे तेजी से सीखते हैं तो कुछ बच्चों की सीखने की क्षमता धीमी होती है। इसके पीछे कई बार कुदतरी वजहें होती है़ं तो कई बार घर का माहौल भी इसका कारण बनता है। जी, हां! ऐसा है। क्या अपको पता है कि बच्चों की पढ़ाई के समय यदि बहुत तेज आवाज से टीवी देखा जाए या म्यूजिक सुना जाए तो इससे उनके सीखने, याद करने और समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है? वास्तव में आवाज यानी शोर के कारण वे पढ़ाई या कुछ भी सीखने पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। अतः सीखने में अड़चन का एहसास होता है जो धीरे धीरे उनके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। निश्चित रूप से ऐसी स्थिति से निपटने के लिए शोर कम किया जाना चाहिए। इसके अलावा शोर बच्चों की किन किन चीजों को प्रभावित करता है, आइये इन पर नजर दौड़ाते हैं।
एकाग्र क्षमता
तमाम शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि शोर से बच्चों की स्मार्टनेस यानी इंटेलिजेंसी में कमी आती है। साथ ही शोध यह भी बतलाते हैं कि शांत माहौल में पढ़ने से उनका ध्यान केंद्रित रहता है। चूंकि आसपास माहौल शांत है तो बच्चों का पूरा जोर सीखने पर रहता है। अतः आप कह सकते हैं कि शांत माहौल के कारण बच्चे तेजी से सीखते और उनकी एकाग्र क्षमता भी बेहतर होती है। सो, बच्चे चाहे छोटे हों या बड़े सीखने हेतु घर में शांत माहौल को ही तरजीह दें।
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याद्दाश्त
शोर में पढ़ने से इसका असर याद्दाश्त पर भी पढ़ता है। असल में शोर में पढ़ने से कुछ याद नहीं होता। इतना ही नहीं शोर में सीखी हुई चीजें या कही हुई बातें लम्बे समय तक याद भी नहीं रहती। यदि हर समय घर में टीवी या म्यूजिक सिस्टम चलता है तो इससे बच्चों की याद्दाश्त कमजोर होने लगती है। सहज है, यदि बचपन से ही याद्दाश्त कमजोर रही तो युवास्था तक आते आते यह उनके स्वभाव का अभिन्न हिस्सा बन जाता है। निःसंदेह बेहतर भविष्य के लिए यह सही नहीं है।
सीखना
जो बच्चे शोर में पढ़ते और सीखने की कोशिश करते हैं, उनकी सीखने की क्षमता बेहद कमजोर होती है। उन्हें अन्य बच्चों की तुलना में सीखने में ज्यादा वक्त लगता है। यही नहीं, उनका सीखा हुआ सही है, इसकी कोई गारंटी भी नहीं होती। असल में शोर में पढ़ने वाले बच्चे गणित या विज्ञान जैसे विषयों में तो कमजोर होते ही हैं। साथ ही अन्य विषय यानी जो पूर्णतया याद करने पर आधारित हैं, उनमें भी वह कमजोर होते हैं।
शब्दों की कमी
जिन बच्चों के घर में पढ़ते समय टीवी का शोर सुनाई देता है, उनके पास शब्दों की भरसक कमी होती है। दरअसल शब्द सीखने पर ही आते हैं। जबकि शोर के कारण बच्चा सीख नहीं पाता। अतः ऐसे बच्चों के पास अपनी बात रखने के लिए शब्दों की भी बेहद कमी होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक जो छात्र नए शब्द सीख रहे होते हैं, यदि उनके इर्द-गिर्द शोर हो तो वे नए शब्द कतई नहीं सीख सकते बल्कि उन्हें नए शब्द बोझ की माफिक लगते हैं।
नई चीजों से भागना
जिस तरह शांत माहौल नई चीजों की ओर आकर्षित करता है, उसी तरह शोर युक्त माहौल नई चीजों को सीखने से दूर करता है। दरअसल शोर में नई चीजें समझ नहीं आती। खासकर विज्ञान या गणित। ये विषय शोर में न तो समझ आते हैं और न ही इनके प्रति कोई रुचि पैदा हो पाती। वैसे भी नई चीजें सीखते समय रुचि और इच्छा दोनों का होना आवश्यक है। शोर युक्त माहौल रुचि पैदा नहीं होने देता। यही कारण है कि शोर में हम अकसर नई चीजों को सीखने से डरते हैं।
परिणाम
जैसा कि यह तय है कि शोर के कारण एकाग्र क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। अतः हमें यह भी आंकलन करना चाहिए कि अकसर शोर में पढ़ने वाले बच्चों का परिणाम भी बुरा ही होता है। उनके रिजल्ट अन्य बच्चों की तुलना में खराब होते हैं। हद तो तब होती है जब शोर में पढ़ने वाले बच्चे बमुश्किल पास हो पाते हैं। जबकि इसके उलट शांत माहौल में पढ़ने वाले बच्चे प्रतियोगिता का हिस्सा बने रहते हैं और अकसर अव्वल आते हैं। तमाम शोध भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि जो बच्चे शोर में पढ़ते हैं, उनके परिणाम खराब आते हैं।
स्वास्थ्य पर असर
यूं तो शोर मस्ती का पर्याय है। लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो शोरगुल हमेशा हमारे शरीर पर नकारात्मक असर छोड़ता है। दरअसल शोर हमारे हृदय गति को बढ़ाता है। इतना ही नहीं कोर्टिसोल के स्तर पर को भी प्रभावित करता है। अतः बच्चों के सामने खासकर छोटे बच्चों के लिए तेज आवाज में टीवी या म्यूजिक सुनने से इसका असर उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। अतः उनके सामने तेज आवाज करना सही नहीं है।
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