
सभी जानते है कि मां का दूध बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। खासतौर से प्रीमैच्योर बच्चों के स्वास्थ्य में मां के दूध की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। एक शोध के मुताबिक प्रीमैच्योर बच्चे के हृदय के विकास के लिए मां का दूध बहुत लाभकारी होता है। शोध का दावा है कि जिन प्रीमैच्योर बच्चो को मां का दूध पीने को दिया गया उनके हृदय का कार्य फार्मूला दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में ज्यादा अच्छे से कार्य करता है।मां के दूध में जरूरी पोषक तत्व जैसे एंटीबॉडीज, लिविंग सेल्स, एंजाइम्स और हार्मोन्स बिलकुल सही अनुपात में होते हैं जिसे नवजात का सम्पूर्ण विकास होता है। प्रीमैच्योर बच्चो को होने वाली बीमारियों के बारे में जाने
श्वांस की समस्या
जन्म के तुरंत बाद शिशु श्वास लेना शुरू नहीं कर पाता, इसलिए उसे कृत्रिम श्वास की आवश्यकता होती है। अपरिपक्व फेफड़ों व मस्तिष्क की वजह से उसे सांस लेने में कठिनाई होती है। सांस लेने की प्रक्रिया में लंबे विराम को ऐपनिया कहते हैं, जो अपरिपक्व दिमाग के कारण होता है. छोटे आकार, पारदर्शी व नाजुक त्वचा के चलते ऐसे बच्चे का शारीरिक तापमान कम होता है और त्वचा के जरीए शरीर का बहुत सा तरल पदार्थ खो जाता है जिस से बच्चे में पानी की कमी हो जाती है। कम तापमान की वजह से उसे सांस लेने में दिक्कत होती है और ब्लड शुगर का स्तर कम रहता है। ऐसे बच्चे को अतिरिक्त गरमाहट चाहिए होती है, जो इन्क्युबेटर से दी जाती है।
रक्त और मस्तिष्क में समस्याएं
ऐसे बच्चे को दिमाग में रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है, जिसे इंट्रावैंट्रिक्युलर हैमरेज कहते हैं। अधिकांश हैमरेज हल्के होते हैं और अल्पकालिक असर के बाद ठीक हो जाते हैं।प्रीमैच्योर बच्चों में रक्तधारा में संक्रमण (सेप्सिस) आदि जैसी गंभीर जटिलताएं जल्दी विकसित हो जाती हैं। इस प्रकार के संक्रमण बच्चे की अविकसित रोगप्रतिरोधक प्रणाली की वजह से होते हैं। ऐसे बच्चे को रक्त संबंधी समस्याओं जैसे एनीमिया (हीमोग्लोबिन कम होना) और शिशु पीलिया का भी जोखिम रहता है। इन की वजह से बच्चे को कई बार खून चढ़ाने तथा फोटोथेरैपी लाइट की आवश्यकता पड़ती है।
गैस्ट्रोइंटैस्टाइनिल समस्याएं
प्रीमैच्योर बच्चे की पाचन प्रणाली अपरिपक्व हो सकती है। बच्चा जितनी जल्दी पैदा होता है उस में नैक्रोटाइजिंग ऐंटेरोकोलाइटिस (एनईसी) विकसित होने का जोखिम उतना ही ज्यादा होता है। यह गंभीर अवस्था प्रीमैच्योर बच्चे में तब शुरू होती है जब वे फीडिंग शुरू कर देते हैं।जो समय पूर्व जन्मे बच्चे केवल स्तनपान करते हैं उन में एनईसी विकसित होने का जोखिम बहुत कम रहता है। प्रीमैच्योर बच्चे के रिफ्लैक्स चूसने और निगलने के लिए कमजोर होते हैं जिस से उसे अपना आहार प्राप्त करने में मुश्किल होती है।
प्रीमैच्योर बच्चों की देखभाल
अगर बच्चा दूध चूस सकता है तो जन्म के तुरन्त बाद स्तनपान कराएँ और प्रति 2 घंटे दूध पिलाते रहें (दिन और रात) इससे बच्चे को ऊर्जा मिलेगी और शरीर का तापमान बना रहेगा।बच्चे को गरम रखने के लिए उसे मां की छाती को लगाकर ढक दें। ध्यान दें कि मॉं और बच्चे की त्वचा एक दूसरे को छू रही है। इसे कंगारू विधि कहा जाता है। दिन में कम से कम 3-4 घंटे बच्चे को इस प्रकार बांध कर रखने से उसे बचाया जा सकता है।
प्रीमैच्योर बच्चों की देखभाल और खान पान का बहुत ध्यान रखना पड़ता है इसके लिए आप डॉक्टर से पूरी जानकारी जरूर लें।
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