मधुमेह को साइलेंट किलर के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी की सही मायने में कोई इलाज नहीं है। ये शरीर को धीरे धीरे खोखला बना देती है। मधुमेह को लेकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। डायग्नोस्टिक चेन लैब मेट्रोपॉलिस हेल्थकेयर लिमिटेड के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में जमा किए गए लगभग 1.5 लाख लोगों के रक्त नमूनों में से 40.5 फीसदी में प्री.डायबीटिक और डायबीटिक कारक पॉजिटिव पाए गए हैं। डायबिटीज जब अपनी सीमा पार कर देता है तो डायबिटीक रेटिनोपैथी रोग हो जाता है। यह एक ऐसा रोग है जो तब होता है जब उच्च रक्त शर्करा आंख के पृष्ठ भाग में यानि रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं। आइए जानें, डायबिटीक रेटिनोपैथी क्या है, क्यों होती है, कारण क्या हैं और इसके इलाज के बार में जानें।
क्या है डायबिटीक रेटिनोपैथी
डायबिटीक रेटिनोपैथी तब होती है जब हाई ब्लड शुगर आंख के पिछले भाग यानी रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं। डायबिटीज वाले सभी लोगों में यह समस्या होने का जोखिम होता है। डायबिटीक रेटिनोपैथी एक ऐसा रोग है, जिसमें आंख की रेटिना पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की अनदेखी करने पर रोगी की आंख की रोशनी तक जा सकती है। इसका प्रभाव एक या दोनों आंखों पर भी हो सकता है।
कैसे होती है डायबिटीक रेटिनोपैथी
डायबिटीज हमेशा बने रहने वाला रोग है। डायबिटीज से किडनी, ब्लड प्रेशर व शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अनेक लोग अवगत हैं, लेकिन इस रोग से आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बहुत कम लोग ही जानते हैं। डायबिटीज के मरीजों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह मधुमेह रेटिनोपैथी के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।
रेटीनोपैथी के शुरूआती लक्षण
- चश्मे का नम्बकर बार-बार बदलना
- सफेद मोतियाबिंद या काला मोतियाबिंद
- आंखों का बार-बार संक्रमित होना
- सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना
- रेटिना से खून आना
- सरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम हो जाना
कितने प्रकार की होती है डायबिटीक रेटिनोपैथी
डायबिटीक रेटीनोपैथी दो प्रकार की होती है, बैकग्राउंड डायबिटिक रेटीनोपैथी और मैक्यूलोपैथी। बैकग्राउंड डायबिटीक रेटीनोपैथी आमतौर पर उन लोगों में पाई जाती है, जिन्हें बहुत लंबे समय से डायबिटीज हो। इस स्तर पर रेटिना की रक्त वाहिकाएं बहुत हल्के तौर पर प्रभावित होती हैं। वे थोड़ी फूल सकती है और उनमें से रक्त निकल सकता है। दूसरी मैक्यूलोपैथी उन लोगों को होती है जिनको बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या लंबे समय तक रहती हैं। ऐसा होने पर देखने की क्षमता प्रभावित होती है।
सुरक्षा के उपाय
- समय-समय पर आंखों की जांच करायें, यह जांच बच्चों में भी आवश्य क है।
- रक्त में कालेस्ट्राल और शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखें।
- अगर आपको आखों में दर्द, अंधेरा छाने जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।
- डायबिटीज़ के मरीज़ को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए।
- डायबिटीज़ होने के दस साल बाद हर तीन महीने पर आंखों की जांच करायें।
- गर्भवति महिला अगर डायबिटिक है तो इस विषय में चिकित्सीक से बात करे।
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