बदली हुई जीवनशैली से आजकल महानगरों में डायबिटीज़ की समस्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से आंखों की दृष्टि भी कमज़ोर पड़ जाती है। ऐसी बीमारी को डायबिटिक रेटिनोपैथी कहा जाता है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइट आई हॉस्पिटल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. महिपाल सचदेव, इसके बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।
डायबिटिक रेटिनोपैथी की स्थितियां और गंभीरता
ऐसी समस्या होने पर आंखों की छोटी रेटिनल रक्तवाहिकाएं कमज़ोर हो जाती हैं। कई बार इनमें ब्रश जैसी शाखाएं बन जाती हैं और उनमें सूजन भी आ जाती है। इससे रेटिना को ऑक्सीजन का पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता, जो आंखों के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होता है। गंभीरता के आधार पर डायबिटिक रैटिनोपैथी के तीन स्तर होते हैं-
बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी : जो लोग लंबे अरसे से डायबिटीज़ की समस्या से ग्रस्त रहे हों, उनकी रेटिना की रक्त वाहिकाएं आंशिक रूप से प्रभावित होती हैं। कभी-कभी उनमें सूजन और रक्त का रिसाव जैसे लक्षण भी नज़र आते हैं।
मैक्यूलोपैथी : यदि बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी का लंबे समय तक उपचार न कराया जाए तो यह मैक्यूलोपैथी में बदल जाती है। इससे व्यक्ति की नज़र कमज़ोर हो जाती है।
प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी : समस्या बढऩे के साथ कई बार रेटिना की रक्तवाहिकाएं अवरुद्ध हो जाती हैं। ऐसा होने पर आंखों में नई रक्त वाहिकाएं बनती हैं। इसे प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी कहते हैं। यह शरीर का अपना मैकेनिज्म है ताकि रेटिना को शुद्ध ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति संभव हो।
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क्या है वजह
जब ब्लड में शुगर लेवल बढ़ जाता है तो इस अतिरिक्त शुगर की वजह से रेटिना पर स्थित छोटी रक्तवाहिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। ऐसी समस्या होने पर आंखों के टिश्यूज़ में सूजन आ जाती है, जिससे रक्तवाहिका नलियां कमज़ोर पडऩे लगती हैं। नतीजतन दृष्टि में धुंधलापन आने लगता है।
प्रमुख लक्षण
- नज़रों के सामने धब्बे नज़र आना,
- अचानक आंखों की रोशनी का कम होना
- आंखों में बार-बार संक्रमण
- रंगों को पहचानने में परेशानी
- सुबह जागने के बाद कम दिखाई देना
क्या है उपचार
अगर शुरुआती दौर में ही लेज़र ट्रीटमेंट द्वारा इसका उपचार शुरू दिया जाए तो रेटिना को पूर्णत: नष्ट होने से बचाया जा सकता है। इस बीमारी के तीन प्रमुख उपचार हैं- लेज़र सर्जरी, आंखों में ट्रायमसिनोलोन का इंजेक्शन तथा विट्रेक्टोमी। डॉक्टर मरीज़ की अवस्था देखने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि उसके लिए उपचार का कौन सा तरीका उपयुक्त होगा। वैसे तो ये तीनों ही उपचार सफल साबित हुए हैं लेकिन अधिकतर मामलों में लेजर सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सर्जरी के बाद भी नियमित आई चेकअप ज़रूरी है।
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उपचार से बेहतर है बचाव
दृष्टि से जुड़ी इस समस्या की असली वजह डायबिटीज़ है, इसलिए शरीर में शुगर और कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिएआप अपनी डाइट में चीनी, मैदा, चावल, आलू और घी-तेल का सेवन सीमित मात्रा में करें। कोई समस्या न हो, तब भी साल में एक बार आई चेकअप अवश्य कराएं, ताकि शुरुआती दौर में ही समस्या की पहचान हो सके। डॉक्टर द्वारा बताए गए सभी निर्देशों का पालन करें।
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